लुधियाना से केजरीवाल की किस्मत तय होगी या बंद होगा सियासी दरवाज़ा?

अजय कुमार,वरिष्ठ पत्रकार

पंजाब की राजनीति के केंद्र में इस समय केवल एक सीट है लुधियाना पश्चिम। यह कोई साधारण उपचुनाव नहीं है, बल्कि इसे पूरे राज्य और शायद राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय करने वाले सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है। वजह साफ है यह उपचुनाव अब सिर्फ आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार संजीव अरोड़ा की जीत-हार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह सीधे तौर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री और AAP के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक भविष्य से जुड़ गया है। 19 जून को इस सीट पर वोटिंग होनी है और इसी दिन यह भी तय होगा कि क्या केजरीवाल संसद की राजनीति में लौट पाएंगे या उन्हें अगले चार साल तक किनारे बैठकर देखना होगा।

गुरप्रीत सिंह गोगी के निधन के बाद खाली हुई यह सीट भले ही एक विधान सभा उपचुनाव है, लेकिन इसका महत्व किसी लोकसभा सीट से कम नहीं आंका जा रहा। आम आदमी पार्टी ने यहां से राज्यसभा सांसद और लुधियाना के बड़े उद्योगपति संजीव अरोड़ा को मैदान में उतारा है। केजरीवाल खुद उनके लिए पूरे दमखम से प्रचार कर रहे हैं, लगातार रोड शो, सभाएं और गारंटी वाले भाषण दे रहे हैं। वह जनता से खुलेआम कह रहे हैं कि अगर संजीव अरोड़ा जीतते हैं, तो 20 जून को उन्हें मंत्री बना देंगे। उनके इस बयान से दो बातों के संकेत साफ मिलते हैं एक, पार्टी इस चुनाव को जीवन-मरण का सवाल मान रही है; और दो, संजीव अरोड़ा की जीत दरअसल अरविंद केजरीवाल की राज्यसभा में संभावित एंट्री का रास्ता खोल सकती है। राजनीतिक हलकों में यह पहले ही चर्चा का विषय बन चुका है कि यदि अरोड़ा विधानसभा सदस्य बनते हैं और राज्यसभा से इस्तीफा देते हैं, तो आम आदमी पार्टी उस खाली सीट से अरविंद केजरीवाल को संसद भेज सकती है। दिल्ली की सत्ता कमजोर हो चुकी है, विधानसभा में अधिकार सीमित हैं, और केंद्र से लगातार टकराव के बीच केजरीवाल को अब एक नया राजनीतिक मंच चाहिए ऐसा मंच जो उन्हें राष्ट्रीय बहसों में बराबरी से खड़ा करे और केंद्र के खिलाफ बोलने की संवैधानिक ताकत भी दे।

हालांकि, यह राह इतनी आसान नहीं है। लुधियाना पश्चिम की सीट पर मुकाबला बहुत रोचक और बहुकोणीय हो चुका है। कांग्रेस ने अपने पुराने विधायक भारत भूषण आशु को टिकट दिया है, जो क्षेत्र में मजबूत जनाधार रखते हैं। बीजेपी से जीवन गुप्ता मैदान में हैं और शिरोमणि अकाली दल ने एडवोकेट उपकार सिंह घुम्मन को उतारा है। वहीं अकाली दल (अमृतसर) से नवनीत गोपी भी अपनी सियासी किस्मत आजमा रहे हैं। यानी आम आदमी पार्टी के लिए यह मुकाबला केवल अपनी सरकार के कामकाज पर जनादेश लेने भर का मामला नहीं रह गया है, बल्कि चारों तरफ से हो रहे हमलों और सवालों का जवाब देने की चुनौती भी है। विपक्ष खुलकर आरोप लगा रहा है कि AAP पंजाब को दिल्ली की राजनीति का मोहरा बना रही है। कांग्रेस और अकाली दल बार-बार कह रहे हैं कि यह उपचुनाव विकास पर नहीं, अरविंद केजरीवाल को राज्यसभा भेजने की स्कीम पर लड़ा जा रहा है। कांग्रेस नेता आशु ने यहां तक कहा कि “पंजाब की जनता किसी की राज्यसभा की टिकट की बलि नहीं चढ़ेगी।”

इन आरोपों से पार्टी बैकफुट पर आती नहीं दिख रही। भगवंत मान और केजरीवाल दोनों लुधियाना में डटे हुए हैं। प्रचार अभियान पूरी तरह हाईटेक और आक्रामक है। हर नुक्कड़, हर गली में AAP के कार्यकर्ता घर-घर संपर्क कर रहे हैं और यह बता रहे हैं कि अरोड़ा को जिताना दरअसल पंजाब के विकास को गति देना है। लेकिन मतदाता समझ चुका है कि यह चुनाव पंजाब सरकार की नीतियों पर जनमत संग्रह भी है। तीन साल तीन महीने बीत चुके हैं—पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य और नशामुक्ति जैसे वादों का क्या हुआ, अब लोग उसका हिसाब मांग रहे हैं। अगर इस शहरी सीट, जो AAP का मजबूत गढ़ मानी जाती रही है, पर पार्टी हार जाती है तो यह केवल एक सीट की हार नहीं होगी बल्कि केजरीवाल की दिल्ली से बाहर विस्तार की महत्वाकांक्षा को करारा झटका होगा।

लुधियाना पश्चिम पूरी तरह शहरी इलाका है, और यही वो वर्ग है जिसे आम आदमी पार्टी अपना कोर वोट बैंक मानती है। ऐसे में अगर पार्टी यहां हारती है तो उसका सीधा मतलब होगा कि उसके अपने मतदाता अब उससे नाराज हैं या निराश। दूसरी तरफ अगर जीत मिलती है, तो पार्टी इसे सरकार के प्रति जनता के विश्वास का प्रमाणपत्र बताकर पूरे राज्य में इसका प्रचार करेगी। लेकिन सबसे बड़ा असर अरविंद केजरीवाल के व्यक्तिगत भविष्य पर पड़ेगा। इस समय दिल्ली और पंजाब में कोई भी राज्यसभा सीट खाली नहीं है। ऐसे में अगर अरोड़ा नहीं जीतते हैं, तो केजरीवाल को 2029 तक संसदीय राजनीति का सपना त्यागना पड़ सकता है। यह उनके लिए बड़ा झटका होगा, खासकर तब जब वह खुद कोर्ट और एजेंसियों की जांचों से जूझ रहे हैं और दिल्ली की सरकार भी अब पूरी तरह एलजी के अधीन हो चुकी है।

लुधियाना की जनता के सामने अब सवाल सिर्फ यह नहीं है कि कौन बेहतर विधायक होगा, बल्कि यह भी है कि क्या वे किसी नेता के राज्यसभा जाने का रास्ता बनाना चाहते हैं या नहीं। विपक्ष की पूरी कोशिश यही है कि इस चुनाव को केजरीवाल बनाम पंजाब बना दिया जाए। वहीं आप की रणनीति यह है कि विकास और “काम की राजनीति” को आधार बनाकर भावनात्मक अपील की जाए। नतीजा चाहे जो भी हो, 19 जून को मतपेटी में गिरने वाला हर वोट केवल एक विधायक का नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय नेता के भविष्य का फैसला करेगा। इसीलिए लुधियाना की गलियों में इस समय हर चर्चा का केंद्र एक ही सवाल है क्या पंजाब की एक सीट से दिल्ली का रास्ता खुलेगा या बंद हो जाएगा?

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