जनगणना के बाद भी OBC की असली संख्या नहीं होगी सामने, जानिए क्यों?

देश में 2027 में होने वाली जनगणना को लेकर एक बड़ा ऐलान सामने आया है। मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बार की जनगणना में जाति आधारित जानकारी जुटाई जाएगी, लेकिन इसमें ‘वर्ग’ को नहीं गिना जाएगा। यानी पिछड़ा वर्ग (OBC) की कुल संख्या का कोई स्पष्ट आंकड़ा सामने नहीं आएगा। सरकार ने यह फैसला 30 अप्रैल 2025 को हुई कैबिनेट बैठक में लिया था, जिसके बाद अब आधिकारिक तौर पर 1 अप्रैल 2026 से जनगणना शुरू करने की घोषणा कर दी गई है। यह प्रक्रिया मार्च 2027 तक चलेगी।यह जनगणना पूरी तरह डिजिटल माध्यम से की जाएगी और इसमें कागज की बजाय मोबाइल एप्लिकेशन या टैबलेट का इस्तेमाल होगा। यह पहली बार है जब जनगणना डिजिटल फॉर्मेट में की जा रही है। सरकार का कहना है कि इससे प्रक्रिया पारदर्शी और तेज होगी। पहले जहां जनगणना में 5 साल का वक्त लगता था, इस बार इसे सिर्फ 3 साल में पूरा कर लिया जाएगा।
जनगणना में जाति गिनी जाएगी, लेकिन वर्ग नहीं। इसका सीधा मतलब यह है कि आपसे आपकी जाति पूछी जाएगी, लेकिन सरकार यह नहीं बताएगी कि OBC की संख्या कितनी है। इसके पीछे एक बड़ी वजह यह बताई जा रही है कि भारत के अलग-अलग राज्यों में एक ही जाति का वर्गीकरण अलग-अलग है। उदाहरण के लिए, कोई जाति एक राज्य में ओबीसी है तो दूसरे में सामान्य वर्ग में आती है। ऐसे में OBC की कुल संख्या निकालना सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।इस बार जो सवाल पूछे जाएंगे, उनमें व्यक्ति का नाम, माता-पिता का नाम, जन्म तिथि, लिंग, वैवाहिक स्थिति, वर्तमान और स्थायी पता, परिवार के मुखिया का नाम और सबसे महत्वपूर्ण जाति की जानकारी शामिल होगी। सूत्रों के मुताबिक कुल 30 सवाल पूछे जाएंगे।
हर व्यक्ति को अपनी जाति बतानी होगी, चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों न हो। यानी मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध जैसे अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को भी अपनी जाति का उल्लेख करना अनिवार्य होगा। हालांकि, अगर कोई व्यक्ति गलत जाति बताता है, तो सरकार के पास उसे जांचने का कोई ठोस तरीका नहीं है।कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे विपक्षी दल लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रहे थे। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने तो यहां तक कहा है कि उत्तर प्रदेश में 2027 की जाति जनगणना ‘पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक’ यानी PDA गठबंधन की सरकार में ही होगी। उन्होंने केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए इसे विपक्ष की जीत बताया।
भारत में आखिरी बार पूरी जाति जनगणना साल 1931 में हुई थी। 2011 में सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) जरूर हुई थी, लेकिन उसके आंकड़े कभी सार्वजनिक नहीं किए गए। 2021 में कोविड महामारी के कारण जनगणना नहीं हो सकी। अब 2026-27 में एक बार फिर जातिगत जनगणना कराई जा रही है, जो आधुनिक भारत की सबसे अहम सामाजिक कवायद मानी जा रही है।हालांकि, यह जनगणना परिसीमन पर कोई असर नहीं डालेगी। 2026 में जो परिसीमन होना है, वह 2011 की जनगणना के आधार पर ही होगा। इसके अलावा 50% आरक्षण की सीमा पर भी जनगणना का कोई प्रभाव नहीं होगा क्योंकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है। जब जातिगत आंकड़े सामने आएंगे, तब सरकार की आरक्षण नीति में क्या बदलाव होंगे और क्या वाकई इससे सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिलेगा। फिलहाल तो इतना तय है कि यह जनगणना देश की सामाजिक संरचना को उजागर करने वाला ऐतिहासिक कदम साबित होने वाली है।