उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव तैयारियाँ क्यों अटकी हैं पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन का इंतजार जारी
उत्तर प्रदेश में अगले साल अप्रैल‑मई में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की तैयारियाँ पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन में देरी के कारण अटकी हुई हैं। वार्ड पुनर्गठन पूरा होने के बावजूद आरक्षण सूची जारी नहीं हो रही और प्रशासक तैनात नहीं हो पा रहे हैं। मतदाता सूची सुधार भी धीमी गति से हो रहा है, जिससे चुनाव समय पर कराने में अनिश्चितता है।


उत्तर प्रदेश में अगले साल अप्रैल‑मई में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की तैयारियाँ पिछले कई महीनों से सुस्त दिखाई दे रही हैं और इसका सबसे बड़ा कारण समर्पित पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन में लगातार देरी है। पिछले दो महीने से चुनावी प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पा रही है। प्रशासनिक रूप से वार्डों का पुनर्गठन पूरा होने के बावजूद आरक्षण सूची जारी नहीं हो पा रही है तथा पंचायतों में प्रशासक तैनात नहीं किए जा पा रहे हैं, जिससे पूरी चुनावी मशीनरी अटकी हुई है। इस देरी ने संभावित उम्मीदवारों तथा ग्रामीण मतदाताओं में असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है और चुनावी समय‑सीमा पर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। इस वर्ष मई के अंतिम सप्ताह में पंचायतों के वार्डों के पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू हुई थी। सितंबर तक यह कार्य पूरा हो गया और इसके परिणामस्वरूप ग्राम पंचायतों की संख्या घटकर 57,695 रह गई है, जिसमें 504 ग्राम पंचायतों को मिलाया गया या समायोजित किया गया। इसी तरह जिला पंचायतों में 30 और क्षेत्र पंचायतों के 830 वार्ड कम कर दिए गए हैं, जिससे कुल पंचायत संरचना में बड़ा बदलाव आया है। इस पुनर्गठन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जनसंख्या और भौगोलिक मापदंडों के आधार पर पंचायत वार्डों का पुनर्वितरण हो और चुनाव प्रक्रिया अधिक निष्पक्ष और व्यवस्थित तरीके से संचालित हो सके।पुनर्गठन पूरा हो जाने के बाद पंचायती राज निदेशालय ने सरकार को समर्पित पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन का प्रस्ताव भेजा, लेकिन अभी तक आयोग का गठन नहीं हो पाया है। यह आयोग त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में पिछड़ा वर्ग आरक्षण तय करने का एकमात्र संवैधानिक माध्यम है। आयोग के गठन के बिना सीटों पर पिछड़ा वर्ग आरक्षण को अंतिम रूप देना संभव नहीं है और न ही पंचायतों में प्रशासक तैनात किए जा सकते हैं, जो आगे की चुनावी प्रक्रिया का अगला महत्वपूर्ण चरण है।
समर्पित पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन की प्रतीक्षा में रुक चुकी चुनावी प्रक्रिया की वजह से संभावित उम्मीदवार परेशान हैं। ग्राम प्रधानों से लेकर जिला पंचायत सदस्य तक के दावेदार यह जानने के लिए इंतजार कर रहे हैं कि आरक्षण कब तय होगा और आयोग कब गठन किया जाएगा। पिछली बार 2022 के पंचायत चुनावों में भी 25 दिसंबर 2021 को पंचायतों में प्रशासक तैनात किए गए थे, मार्च 2022 में पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी हुई थी और 26 मई 2022 तक नई पंचायतें गठित कर दी गई थीं। इसका मतलब यह हुआ कि आयोग के गठन के बाद ही चुनाव की पूरी प्रक्रिया शुरू हो पाई थी। मतदाता सूची की तैयारी भी अपेक्षित गति से आगे नहीं बढ़ रही है। राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा 23 दिसंबर तक ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी करने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन जिलों में डुप्लीकेट मतदाताओं के नाम हटाने का कार्य बहुत धीमी गति से चल रहा है। इस सूची में लगभग दो करोड़ डुप्लीकेट नाम हटाने हैं और इसके लिए बूथ स्तर पर कई त्रुटियों को ठीक करना आवश्यक है, लेकिन यह काम निर्धारित समय पर पूरा नहीं हो रहा है। मतदाता सूची में देरी होने से चुनाव की समय‑सीमा प्रभावित हो सकती है और इसे लेकर चिंता बढ़ रही है।मतदाता सूची में त्रुटियों की समस्या कुछ जिलों में स्पष्ट रूप से देखने को मिली है। उदाहरण के तौर पर गाजियाबाद जिले में मतदाता सूची जांच के दौरान 10 लाख से अधिक मतदाता लापता पाए गए हैं, जिससे यह प्रश्न उठा कि पूरी सूची में जवाबदेही कैसे सुनिश्चित की जाएगी। साहिबाबाद क्षेत्र में सूची अपडेट में अंतर आया और स्थानीय मतदाताओं को मतदाता सूची में बदलाव के बारे में विशेष जानकारी न मिल पाने से असमंजस की स्थिति पैदा हुई है। यह स्थिति चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और सही निष्पादन के लिए चिंता का विषय बन गई है।
इसके अलावा कुछ स्थानों पर राजनीतिक दलों ने मतदाता सूची संशोधन के तरीके पर सवाल उठाए हैं। कुछ रिपोर्टों में यह आरोप लगाए गए हैं कि मतदाता सूची से अनैतिक हटाने किए जा रहे हैं और ऐसे लगभग दो करोड़ नाम हटाए जा रहे हैं, जो विशेष रूप से कुछ समुदायों को प्रभावित कर सकते हैं। इस तरह की आलोचनाओं ने मतदाता सूची को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया पर और संदेह पैदा कर दिया है और यह चुनाव के लिए तैयारियों को और जटिल बनाता है।राजनीतिक हलकों में यह भी चर्चा है कि स्थानीय चुनावों के परिणाम 2027 के विधानसभा चुनाव की रूपरेखा को प्रभावित कर सकते हैं और इसलिए पार्टियाँ पंचायत चुनावों की तैयारियों को लेकर विशेष ध्यान दे रही हैं। लेकिन पिछले आधिकारिक कदमों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि प्रशासनिक प्रक्रिया में पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन के बिना आगे की क्रियाएँ बाधित हैं और यही स्थिति चुनाव कार्यक्रम को अंतिम रूप देने में बाधक बन रही है।पंचायत चुनावों में तकनीकी तैयारियों का भी बड़ा महत्व है। पिछले चुनावों में बैलेट पेपर का उपयोग किया गया था और इस बार भी इसी तरह की व्यवस्था रहेगी। पिछली बार पंचायत चुनाव में लगभग 12 करोड़ 43 लाख 89 हजार 135 मतदाता थे, जिसमें पुरुष और महिला दोनों मतदाताओं की संख्या शामिल थी। इस बार चुनावों के लिए भी इसी बड़ी संख्या को ध्यान में रखते हुए मतदाता सूची का अंतिम रूप देना आवश्यक है, ताकि हर योग्य मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग कर सके।
इन सब तैयारियों के बीच मुख्यमंत्री सहित कई वरिष्ठ नेताओं ने पंचायत प्रतिनिधियों से संवाद किया है और स्थानीय शासन के सशक्तिकरण पर ज़ोर दिया है। उनके अनुसार पंचायत चुनाव ग्रामीण विकास और स्थानीय शासन को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम हैं। लेकिन प्रशासनिक स्तर पर आयोग के गठन का काम रुका हुआ है और मतदाता सूची तथा आरक्षण की प्रक्रिया भी अंतिम चरण तक नहीं पहुंच पाई है, जिससे चुनाव के समय पर सम्पन्न होने को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। पंचायतों के वर्तमान कार्यकाल को देखें तो ग्राम प्रधानों का कार्यकाल मई 2026 को समाप्त होने वाला है, क्षेत्र पंचायत प्रमुखों का जुलाई 2026 को समाप्त होगा और जिला पंचायत अध्यक्षों का कार्यकाल जुलाई 2026 को पूरा होगा। इन समय‑सीमाओं को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है कि चुनाव समय पर सम्पन्न हो ताकि निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपने कार्यकाल के साथ नए कार्यों की शुरुआत करने का समय मिल सके।समग्र रूप से देखा जाए तो त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की प्रक्रिया फिलहाल समर्पित पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन के इंतजार में अटकी हुई है। वार्डों का पुनर्गठन तो पूरा हो गया है और मतदाता सूची के संशोधन की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन जल्द से जल्द आयोग का गठन और आरक्षण सूची का अंतिम रूप देना आवश्यक है ताकि पंचायत चुनावों की पूरी प्रक्रिया समयबद्ध तरीके से आगे बढ़ सके। संभावित उम्मीदवारों, ग्रामीण मतदाताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के लिए यह एक बड़ा चुनौतीपूर्ण चरण है और सभी की नजरें अब सरकार और निर्वाचन आयोग की अगली कार्रवाई पर टिकी हुई हैं।



