यूपी में वोटर लिस्ट का महाअभियान 22 साल बाद फर्जी और डुप्लीकेट नामों पर शिकंजा
UP SIR Investigation: यूपी में 22 साल बाद स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन होगा। 2003 में प्रदेश में वोटर की संख्या 6 करोड़ से भी कम थी। अब यह संख्या बढ़कर 15.35 करोड़ हो चुकी है।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में वोटर लिस्ट का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) 22 साल बाद होने जा रहा है, और इसे लेकर तैयारियां जोरों पर हैं। बिहार में इस प्रक्रिया ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया, जहां विपक्ष ने इसे अल्पसंख्यकों और गरीबों के खिलाफ साजिश करार दिया। यूपी में भी राजनीतिक दल इस मुद्दे पर नजर रखे हुए हैं। केंद्रीय चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा है कि 1 जनवरी 2026 की अर्हता तिथि के आधार पर पूरे देश में एसआईआर होगा। यूपी में यह कवायद 2003 के बाद पहली बार हो रही है, जब वोटरों की संख्या 6 करोड़ से कम थी। आज यह ढाई गुना बढ़कर 15.35 करोड़ हो चुकी है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिनवा की अगुवाई में बूथ मैपिंग, बीएलओ ट्रेनिंग और 2003 की वोटर लिस्ट को वेबसाइट पर अपलोड करने का काम तेजी से चल रहा है। डुप्लीकेट, मृत या अवैध वोटरों को हटाना इस अभियान का मुख्य लक्ष्य है, लेकिन सियासी दल इसे अपने-अपने चश्मे से देख रहे हैं।
बिहार में एसआईआर ने सियासी बवंडर मचा दिया। वहां 35 लाख से ज्यादा फर्जी वोटरों की पहचान हुई, जिसे विपक्षी नेता तेजस्वी यादव और लालू प्रसाद ने एनआरसी का छिपा रूप बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि अल्पसंख्यक और गरीब समुदायों को निशाना बनाया जा रहा है। दूसरी ओर, बीजेपी ने इसे स्वच्छ लोकतंत्र की दिशा में जरूरी कदम कहा। सुप्रीम कोर्ट में आयोग ने साफ किया कि बिना नोटिस और सुनवाई के कोई नाम नहीं कटेगा। बिहार में 88 फीसदी वोटरों ने फॉर्म भरे, लेकिन दलों ने आपत्तियां दर्ज नहीं कीं। नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के कथित घुसपैठियों के नाम लिस्ट में मिलने की खबरों ने हंगामा बढ़ाया। यूपी में आयोग ने इससे सबक लिया है। यहां बीजेपी, सपा, बसपा और कांग्रेस को बूथ लेवल पर शामिल करने की योजना है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय ने निर्देश दिए हैं कि सभी जिलों में दलों के साथ बैठकें होंगी, जहां प्रक्रिया की पूरी जानकारी दी जाएगी। सपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमें डर है कि कहीं पूर्वांचल में मुस्लिम वोटरों को निशाना न बनाया जाए।” वहीं, बीजेपी के एक प्रवक्ता ने जवाब दिया, “यह पारदर्शी प्रक्रिया है। हम चाहते हैं कि हर असली वोटर का नाम लिस्ट में हो।”
2003 में यूपी में आखिरी एसआईआर हुआ था। तब 30 जून को संशोधित लिस्ट जारी हुई, जब वोटर 5.98 करोड़ थे। हर साल स्पेशल समरी रिवीजन होता रहा, लेकिन गहन पुनरीक्षण की जरूरत अब पड़ी। डुप्लीकेट नाम, मृत वोटर और गलत पते लोकतंत्र के लिए खतरा हैं। यूपी में 403 विधानसभा और 80 लोकसभा सीटें हैं। 15.35 करोड़ वोटरों में 7.35 करोड़ महिलाएं और 8 करोड़ पुरुष हैं। थर्ड जेंडर वोटर 10 हजार से ज्यादा हैं। पिछले रिवीजन में 21 लाख नए वोटर जुड़े, जिनमें 11 लाख महिलाएं थीं। इस बार नए वोटर जोड़ने, पुराने को सत्यापित करने और फर्जी नाम हटाने पर जोर है। आयोग का अनुमान है कि देशभर में 10 करोड़ डुप्लीकेट या अमान्य नाम हट सकते हैं। इससे वोटिंग प्रतिशत बढ़ेगा, जो यूपी में 60-65 फीसदी रहता है। सियासी दल इसे अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश में हैं। सपा और बसपा युवा और महिला वोटरों को जोड़ने पर जोर दे रहे हैं, जबकि बीजेपी का फोकस ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में है। कांग्रेस ने भी अपने बूथ एजेंट्स को सक्रिय करने के निर्देश दिए हैं।
बूथ मैपिंग इस प्रक्रिया का आधार है। 2008 के परिसीमन से क्षेत्रों का भूगोल बदल गया। गांवों की सीमाएं और बूथ नंबर शिफ्ट हुए। लखनऊ में 2003 में बूथ नंबर 100-150 थे, अब 200-300 हैं। आयोग ने सभी जिलों को 2003 के बूथों का मौजूदा नंबरों से मिलान करने को कहा है। इससे पुरानी और नई लिस्ट का तुलनात्मक अध्ययन आसान होगा। ग्रामीण इलाकों में यह खासा मददगार होगा। उदाहरण के लिए, एक गांव में 2003 में 500 वोटर थे, अब 1500 हैं। पुरानी लिस्ट से मिलान कर फॉर्म 6 (नया नाम) और फॉर्म 7 (नाम हटाने) भरना सरल होगा। बीएलओ का रोल अहम है। यूपी में 2.5 लाख बूथ हैं, और हर बूथ पर एक बीएलओ होगा। ये घर-घर जाकर सत्यापन करेंगे। ईआरओ और मास्टर बीएलओ की ट्रेनिंग शुरू हो चुकी है। लखनऊ, कानपुर और वाराणसी में वर्कशॉप हुईं, जहां डिजिटल टूल्स पर जोर दिया गया। बीएलओ अब मोबाइल ऐप से सर्वे करेंगे। स्टेट वोटर नंबर (एसवीएन) जैसी सुविधा शुरू होगी, जो एपिक कार्ड की तरह स्थायी होगा।
2003 की वोटर लिस्ट ceouttarpradesh.nic.in पर अपलोड है। लोग घर बैठे चेक कर सकते हैं कि उनका या परिवार का नाम था या नहीं। अगर माता-पिता का नाम लिस्ट में है, तो नए वोटर को अतिरिक्त दस्तावेज नहीं चाहिए। आयोग ने वोटरों को चार श्रेणियों में बांटा है श्रेणी ए: 38 साल से ऊपर, जिनका नाम 2003 में था; श्रेणी बी: 20-37 साल; श्रेणी सी: 18-19 साल के नए वोटर। दस्तावेजों में जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट या राशन कार्ड शामिल हैं। आधार को शामिल नहीं किया गया, क्योंकि बिहार में यह विवाद का कारण बना। यूपी में 11 मान्य दस्तावेजों में से कोई एक काफी है। वोटर हेल्पलाइन ऐप से ई-एपिक डाउनलोड और बूथ लोकेशन चेक हो सकता है। सियासी दल इस पर भी नजर रखे हैं। सपा और बसपा ने अपने कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए हैं कि वे ग्रामीण इलाकों में ऐप के बारे में जागरूकता फैलाएं।
यह एसआईआर लोकतंत्र को मजबूत करेगा। 2026 में पंचायत चुनाव से पहले यह पूरा होना जरूरी है। 57,691 ग्राम पंचायतों, 826 क्षेत्र पंचायतों और 75 जिला पंचायतों के लिए साफ लिस्ट चाहिए। 2028 में नगर निकाय चुनाव ईवीएम से होंगे, जिसकी तैयारी भी इससे जुड़ी है। बीजेपी का कहना है कि साफ लिस्ट से उनके कोर वोटर प्रभावित नहीं होंगे। सपा का दावा है कि वे नए वोटरों को जोड़कर अपनी ताकत बढ़ाएंगे। बसपा ने अल्पसंख्यक और दलित वोटरों पर फोकस किया है। चुनौतियां भी कम नहीं। ग्रामीण इलाकों में साक्षरता की कमी, माइग्रेंट वर्कर्स और डिजिटल डिवाइड रुकावट हैं। पूर्वांचल में माइग्रेशन ज्यादा है। वहां एसवीएन काम आएगा।
एसआईआर का असर 2027 के विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा। साफ लिस्ट से फर्जी वोटिंग रुकेगी। आयोग का लक्ष्य 70 फीसदी से ज्यादा वोटिंग है। लखनऊ, संत कबीर नगर, सीतापुर जैसे जिलों में कैंप और नए ऐप शुरू हो चुके हैं। ग्रामीण वोटर इसकी ताकत हैं। एक किसान परिवार की मिसाल लें पिता का नाम 2003 की लिस्ट में है, बेटा नया वोटर है। एक फॉर्म से काम बन जाएगा। वोटरों से अपील है वेबसाइट चेक करें, फॉर्म भरें। आपका वोट यूपी के लोकतंत्र की नींव है।



