सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को लगाई फटकार, तहसीन पूनावाला के पक्ष में सुनाया अहम फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए साफ कर दिया कि अदालतें नैतिकता की ठेकेदार नहीं हैं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अनावश्यक रोक नहीं लगाई जा सकती। यह फैसला राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला और मशहूर संगीतकार विशाल ददलानी के पक्ष में आया, जिन्होंने वर्ष 2016 में जैन मुनि तरुण सागर के सार्वजनिक कार्यक्रम पर टिप्पणी की थी। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने दोनों पर 10-10 लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए प्राथमिकी रद्द की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को न केवल खारिज किया, बल्कि इस पर सख्त टिप्पणी भी की।
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि अदालत का कार्य नैतिकता की निगरानी करना नहीं है। अदालत ने दो टूक कहा कि सिर्फ इसलिए किसी पर जुर्माना नहीं लगाया जा सकता क्योंकि उसने किसी धर्म विशेष के संत पर टिप्पणी की है। यह एक लोकतांत्रिक देश है, जहां आलोचना का अधिकार हर नागरिक को है, बशर्ते वह अभद्रता या नफरत फैलाने की सीमा न लांघे।
पीठ ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के 2019 के उस आदेश को भी अनुचित ठहराया, जिसमें यह कहा गया था कि जुर्माना इसलिए लगाया गया ताकि समाज में एक संदेश जाए कि धार्मिक संतों का मजाक उड़ाना उचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कहा कि ऐसी सोच अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार के खिलाफ है और अदालतें इस तरह के संदेश देने के लिए दंड नहीं दे सकतीं।
तहसीन पूनावाला और विशाल ददलानी ने वर्ष 2016 में तरुण सागर के हरियाणा विधानसभा में निर्वस्त्र प्रवचन देने को लेकर सोशल मीडिया पर टिप्पणी की थी, जिसे लेकर कुछ धार्मिक समूहों ने आपत्ति जताई थी और एफआईआर दर्ज की गई थी। बाद में दोनों ने माफी भी मांग ली थी, लेकिन मामला अदालत तक पहुंच गया।अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यह साफ कर दिया है कि आलोचना करना अपराध नहीं है और अदालतों को धार्मिक या नैतिक मामलों में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए। यह निर्णय देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।