सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस स्पाइवेयर मामले में 30 जुलाई 2025 को सुनवाई तय की, गोपनीयता और सुरक्षा पर जोर

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पेगासस स्पाइवेयर से संबंधित याचिकाओं पर अगली सुनवाई 30 जुलाई 2025 को निर्धारित की है। इस मामले में आरोप है कि इज़रायली कंपनी NSO ग्रुप के पेगासस सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके सरकार ने पत्रकारों, न्यायाधीशों, कार्यकर्ताओं और अन्य नागरिकों की जासूसी की। यह मामला देश के नागरिकों की गोपनीयता और उनकी निजता पर उठे सवालों से जुड़ा हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिस्वर सिंह शामिल थे, ने इस सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया कि यदि किसी व्यक्ति का यह संदेह है कि उनके मोबाइल डिवाइस में पेगासस सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल किया गया है, तो उन्हें इस बारे में सूचित किया जा सकता है। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले से जुड़ी तकनीकी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा, क्योंकि इससे देश की सुरक्षा और संप्रभुता पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ पेगासस का इस्तेमाल किया गया है, तो यह एक गंभीर मामला है, जिसे जांचा जाएगा। उन्होंने कहा कि नागरिकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, यदि सरकार पेगासस का इस्तेमाल कर रही है, तो उसमें कोई समस्या नहीं है, बशर्ते इसका गलत इस्तेमाल नहीं किया गया हो। अदालत ने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर व्यक्तिगत आशंकाओं को दूर किया जा सकता है, लेकिन तकनीकी रिपोर्ट को सार्वजनिक चर्चा के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में एक तकनीकी समिति का गठन किया था, जिसे पेगासस स्पाइवेयर से जुड़े मामलों की जांच करने का जिम्मा सौंपा गया था। समिति ने 29 मोबाइल फोन की जांच की, जिसमें से पांच फोन में मैलवेयर पाया गया था, लेकिन यह पुष्टि नहीं हो सकी कि वह पेगासस था। सरकार की ओर से इस मामले में सहयोग की कमी के कारण न्यायालय ने चिंता व्यक्त की थी। इसके बावजूद, सरकार ने यह दावा किया कि आतंकवादियों के खिलाफ पेगासस का इस्तेमाल किया गया तो इसमें कोई गलत नहीं है, क्योंकि आतंकियों को निजता का अधिकार नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं को यह निर्देश दिया गया है कि वे उन व्यक्तियों के नाम पेश करें, जिनके बारे में संदेह है कि उनके उपकरण में पेगासस सॉफ़्टवेयर लगाया गया है। इससे अदालत को यह समझने में मदद मिलेगी कि किसे सूचित किया जा सकता है और किसे नहीं। इस मामले में सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आतंकियों के खिलाफ पेगासस का इस्तेमाल किया जाना बिल्कुल सही है, क्योंकि उनके पास निजता का अधिकार नहीं होता।

अदालत ने यह स्पष्ट किया कि अगर पेगासस का इस्तेमाल समाज के किसी निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ किया जाता है, तो यह एक गंभीर मुद्दा होगा और इस पर गौर किया जाएगा। इस तरह, सुप्रीम कोर्ट ने गोपनीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता को रेखांकित किया। अब, इस मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई 2025 को होगी, जब अदालत यह तय करेगी कि तकनीकी समिति की रिपोर्ट को कितना सार्वजनिक किया जा सकता है और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे।

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