एसआईआर में शहरी वोटरों का ग्रामीण रुझान भाजपा के लिए बन गया राजनीतिक सिरदर्द
उत्तर प्रदेश में चल रहे एसआईआर अभियान से शहरी वोटरों का ग्रामीण रुझान बढ़ा, जिससे भाजपा के शहरी वोट बैंक पर संकट गहराया। वोटर सूची शुद्धिकरण, फॉर्म-6/7/8 रणनीति, योगी आदित्यनाथ की वाराणसी समीक्षा, और घुसपैठियों की पहचान अभियान ने यूपी की राजनीति में नई हलचल मचा दी है।


लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीतिक गलियों में इन दिनों एक नई हलचल मची हुई है। भारत निर्वाचन आयोग की ओर से चलाए जा रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान ने न केवल वोटरों की जड़ों को परखा है, बल्कि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए भी एक अप्रत्याशित चुनौती खड़ी कर दी है। शहरों की चकाचौंध में बसे लाखों मतदाता, जो मूल रूप से ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं, अब अपनी वोटिंग का केंद्र गांवों की ओर मोड़ रहे हैं। साल भर शहर की भागदौड़ में गुजारने वाले ये लोग, महज एक-दो बार गांव लौटने पर भी अपनी जड़ों से गहरा जुड़ाव महसूस करते हैं। नतीजा? शहरी विधानसभा सीटों पर भाजपा का मजबूत वोट बैंक खतरे में पड़ गया है। पार्टी के पुराने समीकरणों पर असर पड़ने की आशंका से नेताओं की नींद उड़ी हुई है। लेकिन भाजपा ने हार मानने की बजाय मोर्चा संभाल लिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर संगठन महामंत्रियों तक सभी स्तरों पर योजना बुनने में जुटे हैं। आज गुरुवार को ही योगी वाराणसी पहुंच रहे हैं, जहां पूर्वांचल के चार जिलों की एसआईआर प्रगति की गहन समीक्षा होगी।
यह मुद्दा अचानक नहीं उभरा। एसआईआर का पहला चरण समाप्ति की ओर है और आयोग की ओर से आज गणना प्रपत्र भरने की अंतिम तिथि है। अगर कोई बड़ा फैसला न आया तो 16 दिसंबर को ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी हो जाएगी। लेकिन भाजपा को लगता है कि अभी बहुत कुछ बाकी है। पार्टी के आंकड़ों के मुताबिक, शहरी क्षेत्रों में कम से कम 10 से 15 प्रतिशत मतदाता सूची से गायब हो सकते हैं। खासकर लखनऊ, प्रयागराज, गाजियाबाद और नोएडा जैसे महानगरों में यह संख्या सबसे ज्यादा है। एक अनुमान के अनुसार, वाराणसी जैसे महत्वपूर्ण संसदीय क्षेत्र में ही छह लाख मतदाता शहरी सूची से विलुप्त हो सकते हैं। ये वे लोग हैं जो शहरों में नौकरी या व्यापार करते हैं, लेकिन अपनी पहचान गांव से जोड़कर रखना चाहते हैं। निर्वाचन आयोग के नए नियमों के तहत एक व्यक्ति एक ही जगह वोट डाल सकता है, जिससे डुप्लीकेट एंट्रीज साफ हो रही हैं। लेकिन इसी ने ग्रामीण-शहरी विभाजन को और गहरा कर दिया है।
भाजपा नेताओं की चिंता का केंद्र यही है। पार्टी को पता है कि शहरी वोटरों में उसकी पकड़ मजबूत रही है। विकास, बुनियादी सुविधाओं और मोदी सरकार की योजनाओं का फायदा उठाने वाले ये वोटर अक्सर शहरों में भाजपा के पक्ष में जाते रहे हैं। लेकिन अब अगर ये लाखों वोट गांवों में शिफ्ट हो गए, तो 2027 के विधानसभा चुनावों में शहरी सीटों पर संकट मंडरा सकता है। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कई विधानसभा क्षेत्रों में तो 20-25 हजार वोटों का फर्क ही जीत-हार तय करता है। अगर इतने वोट शिफ्ट हो गए, तो समीकरण पूरी तरह उलट सकते हैं। यही वजह है कि पार्टी ने एसआईआर को अब अपनी प्राथमिकता बना लिया है। दिल्ली में राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष ने हाल ही में उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों की एसआईआर प्रगति की समीक्षा की। उन्होंने साफ निर्देश दिए कि शहरी क्षेत्रों में नए मतदाताओं को जोड़ने पर जोर दिया जाए।
इस दिशा में भाजपा की रणनीति अब स्पष्ट हो रही है। ड्राफ्ट सूची जारी होने के बाद पार्टी फॉर्म-6, फॉर्म-7 और फॉर्म-8 का भरपूर इस्तेमाल करेगी। फॉर्म-6 से नए वोटर जुड़वाए जाएंगे, खासकर वे युवा जो अभी 18 साल के हो चुके हैं या होने वाले हैं। 2003 की पुरानी मतदाता सूचियों में नाम न मिलने वालों को प्राथमिकता दी जाएगी। फॉर्म-7 से फर्जी या डुप्लीकेट नाम हटवाए जाएंगे, जो विपक्षी दलों के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं। वहीं, फॉर्म-8 से मौजूदा नामों में सुधार कराया जाएगा, ताकि शहरी वोटरों को शहर में ही रखा जा सके। पार्टी ने हारी हुई सीटों पर विशेष फोकस किया है। संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह ने लखनऊ में विधायकों के साथ समीक्षा बैठक बुलाई और साफ कहा कि अगले एक महीने तक किसी कार्यकर्ता को कोई शादी-ब्याह या निजी कार्यक्रम में न जाएं। पूरा समय वोटर सूची शुद्धिकरण में लगाएं। यह निर्देश पूरे प्रदेश में लागू हो गया है। मंत्रियों और विधायकों को अपने-अपने क्षेत्रों में बूथ स्तर पर कैम्प लगाने के आदेश हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस पूरे अभियान के केंद्र में हैं। पिछले दिनों अलीगढ़ में एसआईआर समीक्षा के दौरान उन्होंने कार्यकर्ताओं को चेतावनी दी थी कि कोई लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी। सांसदों और विधायकों के साथ ऑनलाइन बैठक में उन्होंने पूर्ण फोकस का निर्देश दिया। आज उनका वाराणसी दौरा इसी कड़ी का हिस्सा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में एसआईआर की मंडल स्तरीय समीक्षा होगी, जिसमें वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर और चंदौली के अधिकारी व जनप्रतिनिधि शामिल होंगे। योगी यहां न केवल वोटर शिफ्टिंग की समस्या पर चर्चा करेंगे, बल्कि घुसपैठियों की पहचान अभियान को भी गति देंगे। वाराणसी नगर निगम को वार्डवार बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की मैपिंग के निर्देश दिए गए हैं। महापौर अशोक तिवारी ने जोनल अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी है। रिपोर्ट जिला प्रशासन को भेजी जाएगी। जन्म प्रमाणपत्रों में गड़बड़ी की शिकायतों पर कमेटी गठित की गई है। गलत पाए जाने पर प्रमाणपत्र रद्द होंगे और जिम्मेदारों पर कार्रवाई होगी। योगी सरकार کا स्पष्ट संदेश है कि प्रदेश से एक भी घुसपैठिया नहीं बचेगा। डिटेंशन सेंटरों की स्थापना तेज कर दी गई है।
यह अभियान केवल भाजपा तक सीमित नहीं। विपक्षी दल भी इसे मौका के रूप में देख रहे हैं। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के नेता चुपके से मुस्कुरा रहे हैं, क्योंकि शहरी वोट बैंक में सेंध लगना उनके लिए फायदेमंद हो सकता है। लेकिन भाजपा को भरोसा है कि उसकी संगठनात्मक ताकत और योगी की सख्ती से यह चुनौती अवसर में बदल जाएगी। पिछले दिनों प्रयागराज और गाजियाबाद में चले विशेष कैम्पों में हजारों नए नाम जुड़े हैं। लखनऊ में ही एक हफ्ते में 5 हजार से ज्यादा युवाओं ने फॉर्म-6 भरा। पार्टी का मानना है कि अगर एसआईआर की तिथि बढ़ी, तो और बेहतर होगा। आयोग से इसकी उम्मीद जताई जा रही है। फिलहाल, कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए हैं। बूथ पर बूथ जाकर घर-घर पहुंच रहे हैं। एक बुजुर्ग कार्यकर्ता ने बताया कि हम लोगों को समझा रहे हैं कि शहर में रहते हुए भी वोट यहीं डालें, विकास का फायदा तो यहीं मिलेगा।
ग्रामीण-शहरी अंतर ने इस प्रक्रिया को और जटिल बना दिया है। उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में 80% आबादी ग्रामीण है, लेकिन शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है। करोड़ों लोग गांव छोड़कर शहरों में बस गए हैं। एसआईआर ने इस प्रवास को आईना दिखाया है। कई परिवारों में तो पिता शहर में वोटर हैं, तो बेटा गांव में। लेकिन अब नियम सख्त हैं। एक जगह ही वोट। इससे कई मतदाता दुविधा में हैं। कुछ ने तो गांव लौटकर फॉर्म भरा ही, तो कुछ अभी सोच रहे हैं। भाजपा की कोशिश यही है कि दुविधाग्रस्तों को शहर की ओर मोड़ा जाए। विशेषज्ञों का कहना है कि यह बदलाव लोकतंत्र के लिए अच्छा है, क्योंकि वोटर सूची साफ होगी। लेकिन राजनीतिक दलों के लिए यह परीक्षा है। भाजपा जैसी पार्टी, जो संगठन पर निर्भर है, इसे पार कर लेगी या नहीं, यह आने वाले दिनों में साफ होगा।
वाराणसी जैसे धार्मिक नगरी में यह मुद्दा और संवेदनशील है। यहां 31 लाख मतदाताओं में से 14 लाख की मैपिंग हो रही है। शहरी क्षेत्रों में संख्या घटने से काशी की पवित्र धरती पर भी राजनीतिक रंग चढ़ सकता है। योगी का दौरा इसी को संभालने के लिए है। पूर्वांचल के चार जिलों में समन्वय बैठक होगी। अधिकारी बताते हैं कि घुसपैठियों की पहचान के साथ वोटर सत्यापन को जोड़ा गया है। कोई विदेशी वोट न डाले, यह सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिकता है। भाजपा कार्यकर्ता उत्साहित हैं। एक युवा नेता ने कहा कि सीएम के नेतृत्व में हम हर चुनौती को जीत लेंगे। एसआईआर केवल वोटर लिस्ट साफ करने का नहीं, बल्कि लोकतंत्र को मजबूत करने का माध्यम है।
कुल मिलाकर, यह एसआईआर अभियान उत्तर प्रदेश की राजनीति को नया आकार दे रहा है। शहरी वोटरों का ग्रामीण रुझान भाजपा के लिए सिरदर्द तो है, लेकिन पार्टी की सक्रियता से लगता है कि यह सिरदर्द दवा में बदल जाएगा। आने वाले दिनों में ड्राफ्ट सूची पर नजर रहेगी। अगर भाजपा ने ठीक से तैयारी की, तो 2027 के चुनावों में शहरी सीटें फिर मजबूत होंगी। वरना, विपक्ष को मौका मिल सकता है। फिलहाल, योगी की वाराणसी यात्रा से साफ संकेत मिल रहा है कि पार्टी हल्के में नहीं ले रही। लोकतंत्र की इस जंग में हर वोट की कीमत है, और भाजपा इसे भलीभांति समझती है।



