राहुल गांधी की नजर में तेलंगाना का जाति जनगणना मॉडल है सबसे खास, जानिए क्यों?

मोदी सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना कराने का फैसला लिया है. आजादी के बाद पहली बार देश में सभी जातियों की गणना की जाएगी. जातिगत जनगणना के फैसला का कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने स्वागत किया और फैसले के पक्ष में पूरा समर्थन देने की बात कही. साथ ही राहुल गांधी ने संदेश दिया कि मोदी सरकार ने कांग्रेस की मुहिम के दबाव में ही देश में जातीय जनगणना कराने का फैसला किया है. राहुल ने तेलंगाना के जातिगत जनगणना के माडल को आदर्श बताया.
जाति जनगणना को लेकर दो मॉडल
राहुल गांधी ने जोर देकर कहा कि देश के सामने दो जाति जनगणना को लेकर दो मॉडल हैं. एक बिहार का मॉडल है तो दूसरा तेलंगाना का मॉडल है, और इन दोनों मॉडल में तेलंगाना का मॉडल आदर्श है, जिसे एक विस्तृत कंसल्टेशन की प्रक्रिया के तहत तैयार किया गया है. उन्होंने कहा कि तेलंगाना में जनगणना की पद्धति नौकरशाहों ने नहीं बनाई. उन्होंने कहा कि तेलंगाना में जनता के बीच जाकर जातिगत जनगणना पूरी प्रक्रिया पूरी की गई. इसके जरिए सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को समझने और नीतियां बनाने में महत्वपूर्ण मदद मिलेगी, जो कि विकास के पैराडाइम के लिए बेहद जरूरी है. इसके अलावा राहुल गांधी आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट को खत्म करने की मांग रखी.
बिहार बना था पहला राज्य
बिहार पहला राज्य बना था जिसने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट सबसे पहले प्रकाशित की थी. साल 2022 में महागठबंधन की सरकार ने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट को प्रकाशित की थी, जिसे लेकर विपक्ष ने सवाल उठाए थे. मामला अदालत तक पहुंचा था, हाईकोर्ट ने जनगणना के आधार पर आरक्षण बढ़ाने का फैसला किया था, उसे रद्द कर दिया, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में है.
वहीं, तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार 2023 में बनी. उसके बाद कांग्रेस सरकार ने 2024 फरवरी में घोषणा की थी कि वह घर-घर जाकर सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण और जाति जनगणना कराएगी. सामाजिक-आर्थिक, शिक्षा, रोजगार, राजनीतिक और जाति सर्वेक्षण किया गया. इसके तहत 57 साल घर-घर जाकर लोगों से पूछे गए, जिसमें उनकी हर एक बिंदू का डाटा जुटाया गया. सर्वेक्षण को 94,261 मतगणना कर्मियों ने अंजाम दिया. प्रत्येक को लगभग 150 घर सौंपे गए थे. 50 दिनों तक चले इस सर्वे में 57 प्रश्नों वाले एक फॉर्म के तहत घर-घर जाकर जानकारी एकत्र की. जो लोग अपनी जाति और धर्म सार्वजनिक नहीं करना चाहते थे, उनके लिए भी सर्वेक्षण में श्रेणियां बनाई गई थी.
सरकार के अनुसार, पहले सर्वेक्षण में 96.9 प्रतिशत परिवारों ने हिस्सा लिया था, जिनमें से कइयों ने अपनी जाति का विवरण देने से इनकार कर दिया था. इसके बाद बचे हुए 3.1 फीसदी परिवारों का सर्वेक्षण किया गया. कांग्रेस सरकार मैन्युअल तरीके से सर्वेक्षण करायाहै, जिसमें गणनाकर्ता घर-घर जाकर विवरण जुटाया. प्रश्नावली का उद्देश्य सामाजिक असमानताओं, शैक्षिक बाधाओं, आर्थिक अवसरों और हाशिए पर पड़े समूहों की जीवन स्थितियों में सुधार लाने के उद्देश्य से बनाई गई सरकारी नीतियों की प्रभावशीलता का पता लगाना था.
प्रश्नावली में नाम, परिवार के मुखिया के साथ संबंध, लिंग (तृतीय लिंग को विधिवत मान्यता देते हुए), धर्म, जाति (एससी/एसटी/बीसी/ओसी में विभाजित), उपजाति, आयु, मातृभाषा, आधार और मतदान पहचान पत्र संख्या, क्या विकलांग हैं, वैवाहिक स्थिति, विवाह के समय आयु, क्या बच्चे छह वर्ष की आयु से पहले स्कूल में शामिल हुए, स्कूल की प्रकृति, शैक्षिक योग्यता, छह से 16 वर्ष की आयु के बीच स्कूल छोड़ने वाले, 17 से 40 वर्ष के बीच पढ़ाई जारी न रखने के कारण, निरक्षर होने की स्थिति में कारण, रोजगार की प्रकृति, स्वरोजगार की स्थिति में – उसका विवरण, असंगठित क्षेत्र के श्रमिक की स्थिति में- उसका विवरण और जाति व्यवसाय का विवरण, यदि लागू हो, शामिल थे.
लोगों से वार्षिक आय, बैंक खाते का विवरण, क्या आयकरदाता हैं, क्या किसी जातिगत व्यवसाय से संबंधित बीमारी से पीड़ित हैं, शिक्षा और रोजगार के मामले में आरक्षण के माध्यम से प्राप्त लाभों का विवरण, क्या अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग के मामले में जाति प्रमाण पत्र प्राप्त किया है, क्या वे खानाबदोश समुदाय से हैं, वर्तमान में पद धारण करने के संदर्भ में राजनीतिक पृष्ठभूमि, पद धारण करने की अवधि की संख्या, जनप्रतिनिधि के रूप में कार्य करने के वर्षों की संख्या, क्या वे किसी मनोनीत निगम या बोर्ड या सहकारी समिति या गैर-सरकारी संगठन के सदस्य हैं, भूमि स्वामित्व का विवरण जैसे धरनी पासबुक और अन्य विवरण, कृषि ऋण, पशुधन, अचल और चल संपत्तियों का विवरण शामिल था.
रिपोर्ट आने के बाद कांग्रेस सरकार ने उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुदर्शन रेड्डी के नेतृत्व में एक पैनल गठित किया. इसमें पूर्व प्रोफेसर कांचा इलैया उपाध्यक्ष के रूप में और प्रवीण चक्रवर्ती पैनल के संयोजक थे. इसके अलावा अर्थशास्त्री और कार्यकर्ता ज्यां द्रेज पैनल के विशेष आमंत्रित सदस्य रहे. सर्वेक्षण के आंकड़ों का विश्लेषण करने के लिए पैनल का गठन किया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी तरह की कोई गड़बड़ी नहीं.
तेलंगाना सरकार ने नागरिकों की सामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षिक स्थिति को शामिल करते हुए व्यापक घरेलू सर्वेक्षण के जरिए सिर्फ लोगों की जाति की गणना ही नहीं की बल्कि उसके सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिणिक जैसे तमाम आंकड़े जुटाए गए. तेलंगाना राज्य ने भी जातिगत जनगणना कराया और रिपोर्ट प्रकाशित हुई. 2025 में तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट पेश की है. सर्वेक्षण में 1.12 करोड़ घरों के 3,54,77,554 (3.5 करोड़) लोगों ने भाग लिया. लगभग 3.1% आबादी ने विभिन्न कारणों से सर्वेक्षण में भाग नहीं लिया और सर्वेक्षण संकलन में उन्हें शामिल नहीं किया गया. सर्वे में माया गया कि 56.32 प्रतिशत आबादी पिछड़ी जातियों की है.
तेलंगाना में आरक्षण का मॉडल
तेलंगाना के अंदर अनुसूचित जाति कोटे में 59 उपजातियों को चिह्नित किया गया. प्रत्येक जाति को उनकी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण दिया जाएगा.अनुसूचित जातियों के तीन स्लैब बनए गए. इसके लिए अनुसूचित जातियों के तीन स्लैब बनाए गए. कुल आरक्षण अनुसूचित जाति को 15% दिया जाएगा. एक ग्रुप को एक प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा, दूसरे ग्रुप को 9% आरक्षण दिया जाएगा, तीसरे को 5% आरक्षण दिया जाएगा. सामाजिक आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर यह बंटवारा किया गया है. कांग्रेस पार्टी ने यह भी फैसला लिया कि अनुसूचित जातियों में क्रीमी लेयर को बाहर नहीं रखा जाएगा.
रिपोर्ट के मुताबिक, तेलंगाना राज्य में गैर मुस्लिम ओबीसी की आबादी 46.25 फीसदी है जबकि मुस्लिम ओबीसी की आबादी 10.08 फीसदी है जबकि मुस्लिमों की कुल जनसंख्या 13.13 फीसदी है.पिछड़ी जातियों के बाद, अनुसूचित जाति (एससी) की आबादी 17.43% (61.84 लाख) के साथ दूसरा सबसे बड़ा समूह है, उसके बाद अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी 10.45% (37.59 लाख) है.
अगड़ी जातियां (अल्पसंख्यकों में अगड़ी जातियों को छोड़कर) 13.31% हैं. अन्य जातियों (ओसी) की कुल आबादी 15.79% है, जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय से 2.38% ओसी आबादी (8.8 लाख) शामिल है, जिससे कुल ओसी आबादी 56.01 लाख हो जाती है. दलित और ओबीसी में शामिल अलग-अलग जातियों के जनसख्या का भी आकंड़ा सामने आया.
तेलंगाना ने बिहार की जातिगत जनगणना से अलग कुछ डाटा सामने लाए हैं, जिसमें कि जमीन से जुड़े आंकड़े हैं. इसके अलावा राजनीति सरकारी नौकरी न्यायपालिका या फिर व्यवसाय में किस जाति की कितनी भागीदारी है इसका भी आंकड़ा इकट्ठा किया गया है. आंकड़ों के आधार पर जाति के अंदर तेलंगाना की सरकार ने उप वर्गीकरण का फैसला लिया है. अनुसूचित जाति को जहां तीन उप वर्ग में बांटा गया है, वहीं ओबीसी को पांच उप वर्ग में बांटा गया है. तेलंगाना की सरकार ने अनुसूचित जाति और ओबीसी को उप वर्ग में बताकर आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ देने का फैसला लिया है.
जनगणना के बाद आरक्षण बढ़ाया
जातिगत सर्वे के बाद ओबीसी के आरक्षण को बढ़ाने का फैसला किया. ओबीसी को मिलने वाले 23 फीसदी आरक्षण को बढ़ाकर 42 फीसदी कर दिया गया है. इसके अलावा लित समुदाय की 59 जातियों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 15 प्रतिशत के कुल आरक्षण के लिए तीन वर्गों (वर्ग I, वर्ग II और वर्ग III) में बांटने की सिफारिश की थी. सुप्रीम कोर्ट ने एससी आरक्षण के वर्गीकरण का फैसला पहले दे चुकी है, जिसके चलते कांग्रेस की सरकार ने सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय न्यायाधीश शमीम अख्तर की अध्यक्षता वाले न्यायिक आयोग का गठन किया गया. इसके बाद ही एससी आरक्षण का वर्गीकरण किया. तेलंगान में ओबीसी का आरक्षण बढाए जाने के बाद आरक्षण 62 फीसदी हो रही है और आर्थिक रूप से गरीब सवर्ण जातियों को मिलने वाले 10 फीसदी आरक्षण को जोड़ देते हैं, तो फिर बढ़कर 72 फीसदी हो रहा है. इसके बाद भी अभी तक कोई चुनौती नहीं दी सकी है. इसीलिए राहुल गांधी तेलंगाना के मॉडल को सबसे बेहतर बता रहे हैं.