देश की अर्थव्यवस्था को ‘मृत’ बताने वाले राहुल, मोदी राज में बन गए निवेश के बादशाह!

अजय कुमार,वरिष्ठ पत्रकार
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब भारत की अर्थव्यवस्था को ‘मृत’ करार दिया, तो यह बयान भारतीय राजनीति में आग की तरह फैल गया। लेकिन इस आग में घी डालने का काम किया कांग्रेस के दिग्गज नेता राहुल गांधी ने, जिन्होंने न केवल ट्रंप की बात का समर्थन किया, बल्कि दावा ठोक दिया कि भारतीय अर्थव्यवस्था तो सचमुच ‘मृत’ है। संसद परिसर में पत्रकारों से बातचीत में राहुल ने मोदी सरकार पर ताबड़तोड़ हमला बोला। नोटबंदी, जीएसटी की खामियां, एमएसएमई का विनाश, और किसानों पर अत्याचार को उन्होंने अर्थव्यवस्था की कब्र खोदने वाला बताया। उनका कहना था कि हर कोई जानता है कि अर्थव्यवस्था खत्म हो चुकी है, सिवाय नरेंद्र मोदी और निर्मला सीतारमण के। लेकिन यह बयान उस वक्त सवालों के घेरे में आ गया, जब उनके अपने निवेश और कमाई के आंकड़े सामने आए। जिस अर्थव्यवस्था को वे ‘मृत’ बता रहे हैं, उसी ने उनके शेयर बाजार के निवेश को दस गुना बढ़ाया और उनकी संपत्ति को 117% की उछाल दी। फिर सवाल यह उठता है कि जब भारत के तमाम नेता, यहाँ तक कि उनकी अपनी पार्टी के लोग, ट्रंप के बयान को खारिज कर देश की आर्थिक ताकत का बचाव कर रहे हैं, तो राहुल गांधी ऐसा बयान क्यों दे रहे हैं? क्या यह सिर्फ राजनीतिक चाल है, या इसके पीछे कोई गहरी मंशा? आइए, इस दोहरेपन की परतें खोलते हैं और देखते हैं कि राहुल भारतीय नेताओं की एकजुटता को क्यों तोड़ रहे हैं।
ट्रंप का बयान आते ही भारतीय नेताओं ने एकजुट होकर इसका जवाब देना शुरू किया। कांग्रेस के शशि थरूर ने साफ कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक मंदी के बावजूद मजबूत है। राजीव शुक्ला ने ट्रंप को भ्रम में बताया, तो शिवसेना (यूबीटी) की प्रियंका चतुर्वेदी ने इसे अहंकार और अज्ञानता का नमूना करार दिया। बीजेपी ने तो राहुल के बयान को देशद्रोह के करीब ठहराया। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने तंज कसा कि राहुल का काम भारत की छवि को धूमिल करना है। बीजेपी नेता के. अन्नामलाई ने सोशल मीडिया पर राहुल और थरूर की तुलना की, कहा कि एक ने भारत का हित देखा, तो दूसरे ने विदेशी ताकतों को खुश करने की कोशिश की। यहाँ तक कि विपक्षी दलों के नेता, जैसे टीएमसी के डेरेक ओ’ब्रायन, ने भी ट्रंप के बयान को गैर-जिम्मेदाराना बताया। ये प्रतिक्रियाएं दिखाती हैं कि भारतीय नेता, चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, देश की आर्थिक छवि को लेकर संवेदनशील हैं। फिर राहुल गांधी ने इस एकजुटता को क्यों तोड़ा? क्या वे जानबूझकर अलग रास्ता चुन रहे हैं, और अगर हाँ, तो क्यों?
इस सवाल का जवाब राहुल की राजनीतिक रणनीति और उनकी छवि को समझने में छिपा है। राहुल गांधी पिछले कुछ सालों से मोदी सरकार को आर्थिक मोर्चे पर घेरने की कोशिश में हैं। नोटबंदी, जीएसटी, बेरोजगारी, और किसानों की बदहाली उनके भाषणों का मुख्य हिस्सा रहे हैं। ट्रंप का बयान उनके लिए एक सुनहरा मौका था, जिसे वे मोदी सरकार पर हमले के हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकते थे। उनका ‘मृत अर्थव्यवस्था’ वाला बयान एक नकारात्मक नैरेटिव गढ़ने की कोशिश है, जो जनता के बीच सरकार के खिलाफ गुस्सा भड़का सके। लेकिन यह रणनीति कई मोर्चों पर कमजोर पड़ रही है। पहला, उनकी अपनी पार्टी के नेता उनके बयान से असहज हैं। थरूर और शुक्ला जैसे नेताओं का खुलकर ट्रंप का खंडन करना दिखाता है कि कांग्रेस के भीतर एकरूपता नहीं है। दूसरा, राहुल के निवेश और कमाई के आंकड़े उनके दावे को झुठलाते हैं। उनके लोकसभा हलफनामों (2004, 2014, 2019, 2024) से पता चलता है कि 2014 में उनके शेयरों की कीमत 83 लाख थी, जो 2024 तक बढ़कर 8.3 करोड़ हो गई। उनकी कुल संपत्ति 9.4 करोड़ से 20.4 करोड़ हो गई, यानी 117% की वृद्धि। यह उस अर्थव्यवस्था की ताकत बयां करता है, जिसे वे ‘मृत’ कह रहे हैं।
राहुल के निवेश की कहानी उनके बयान के साथ और बड़ा विरोधाभास पैदा करती है। यूपीए सरकार (2004-2014) के दौरान उन्होंने शेयर बाजार से दूरी बनाए रखी। उनका पैसा डेट-आधारित म्यूचुअल फंड (2014 में 81.28 लाख) और पीपीएफ में था, जिसका रिटर्न 6-8% CAGR पर 60-80 लाख रहा। यह दिखाता है कि उस वक्त वे जोखिम लेने से कतरा रहे थे, शायद अर्थव्यवस्था पर भरोसे की कमी थी। लेकिन मोदी सरकार के दौर में उनकी रणनीति बदली। उन्होंने शेयर बाजार में बड़ा दांव लगाया। 2019 में उनके शेयर निवेश 5.19 करोड़, और 2024 में 4.33 करोड़ थे। म्यूचुअल फंड में निवेश बढ़कर 3.81 करोड़ हो गया। बीएसई सेंसेक्स की 13% CAGR के साथ, उनके निवेश ने 12-15% रिटर्न दिया। उनके पोर्टफोलियो में एशियन पेंट्स, बजाज फाइनेंस, इन्फोसिस, टीसीएस, टाइटन जैसी बड़ी कंपनियां हैं, और वर्टोज एडवरटाइजिंग, विनाइल केमिकल जैसी छोटी फर्म्स भी। 24 शेयरों में से सिर्फ चार में घाटा हुआ, बाकी में मुनाफा। यह उनकी निवेश समझ और भारतीय बाजार की मजबूती का सबूत है। अगर अर्थव्यवस्था ‘मृत’ होती, तो क्या कोई इतना बड़ा जोखिम लेता? और अगर लेता, तो इतना मुनाफा कैसे कमा पाता?
राहुल का यह दोहरापन उनकी मंशा पर सवाल उठाता है। गहराई से देखें, तो उनका बयान सिर्फ मोदी सरकार को घेरने की कोशिश नहीं, बल्कि उनकी अपनी राजनीतिक छवि को पुनर्जनन देने की रणनीति भी हो सकता है। राहुल अक्सर ‘आम आदमी’ की आवाज बनने की कोशिश करते हैं, और ‘मृत अर्थव्यवस्था’ जैसे बयान जनता के बीच आर्थिक असंतोष को भुनाने का प्रयास हो सकता है। लेकिन यह रणनीति उलटी पड़ रही है। एक तो उनके निवेश के आंकड़े दिखाते हैं कि उन्हें अर्थव्यवस्था पर भरोसा है। दूसरा, ट्रंप जैसे विवादित विदेशी नेता का समर्थन करना भारतीय जनता के बीच गलत संदेश दे सकता है, जो विदेशी हस्तक्षेप को पसंद नहीं करती। तीसरा, भारतीय नेताओं की एकजुटता को तोड़कर राहुल अपनी ही पार्टी में अलग-थलग पड़ रहे हैं। कांग्रेस के जयराम रमेश ने नोटबंदी और जीएसटी को आलोचना का आधार बनाया, लेकिन ‘मृत’ जैसे अतिशयोक्तिपूर्ण शब्द से परहेज किया। यह दिखाता है कि राहुल का बयान पार्टी लाइन से भी हटकर है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की हकीकत क्या है? आईएमएफ और विश्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि भारत 2025 में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, और 2030 तक तीसरे स्थान पर पहुंच सकता है। जीडीपी ग्रोथ रेट 6.4-7% के बीच है, जो वैश्विक औसत से बेहतर है। शेयर बाजार ने 13% CAGR दिखाया, और निर्यात 778 बिलियन डॉलर तक पहुंचा। नोटबंदी और जीएसटी की शुरुआती दिक्कतों के बावजूद, डिजिटल लेनदेन बढ़ा, और कर प्रणाली एकीकृत हुई। एमएसएमई और किसानों की चुनौतियां हैं, लेकिन पीएम-किसान, मुद्रा लोन, और कृषि निर्यात में दोगुनी वृद्धि जैसे कदम राहत दे रहे हैं। राहुल का ‘मृत’ वाला दावा इन तथ्यों के सामने खोखला है।
राहुल का बयान भारतीय नेताओं की एकजुटता को क्यों तोड़ रहा है? क्योंकि यह न केवल भारत की वैश्विक छवि को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि विपक्ष की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाता है। ट्रंप का समर्थन कर राहुल एक ऐसी छवि गढ़ रहे हैं, जो देश की आर्थिक ताकत को कमजोर दिखाती है। यह उनकी राजनीतिक रणनीति हो सकती है, लेकिन उनके निवेश और कमाई के आंकड़े उनके दावे को बेनकाब करते हैं। शायद राहुल को अपने बयानों और निवेश के बीच के इस विरोधाभास पर गौर करना चाहिए। आखिर, एक ‘मृत’ अर्थव्यवस्था में इतना बड़ा मुनाफा कौन कमा सकता है?