राष्ट्रहित पर राजनीति का रवैया

ए. सूर्यप्रकाश। आपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद वैश्विक मंचों पर अपना पक्ष रखने लिए मोदी सरकार ने सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों को अलग-अलग देशों में भेजने की जो पहल की, वह अपने मूल उद्देश्य से भी कहीं अधिक सफल साबित हुई है। इन प्रतिनिधिमंडलों में गए सदस्यों ने न केवल पाकिस्तान के असली चेहरे को बेनकाब किया, बल्कि यह भी दर्शाया कि आंतरिक स्तर पर कुछ विवादों-विभाजनों के बावजूद भारत मूल रूप से एक है। इन प्रतिनिधिमंडलों ने भारत की समावेशी संस्कृति का एक जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया।इसकी सबसे प्रभावी अभिव्यक्ति तब देखने को मिली, जब द्रमुक सांसद कनिमोरी के समक्ष स्पेन में भारत की राष्ट्रीय भाषा का सवाल पूछकर उन्हें असहज करने का प्रयास किया गया, लेकिन उन्होंने जिस सहजता से इसका जवाब दिया कि ‘विविधता में एकता’ ही भारत की राष्ट्रीय भाषा है, उससे स्वाभाविक है कि किसी खास मंशा से ऐसा सवाल पूछने वाली की बोलती बंद हो गई।

उल्लेखनीय है कि कनिमोरी उस तमिलनाडु राज्य से आती हैं, जहां भाषा विशेषकर हिंदी को लेकर अक्सर विवाद छेड़ दिया जाता है। यहां तक कि उनकी पार्टी अपने संस्थापक अन्नादुरई के दौर से तमिलनाडु पर ‘हिंदी थोपने’ का शोर मचाती रही है। यह सिलसिला जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेन्द्र मोदी की सरकारों तक कायम है। कनिमोरी ने भाषा को लेकर अपने जवाब से यही रेखांकित किया कि किसी भी सूरत में राष्ट्रहित ही सर्वोपरि होना चाहिए। यह बात अलग है कि जब स्पेन की धरती पर वह भारत की धाक जमा रही थीं तो उसी दौरान उनकी पार्टी के सहयोगी और प्रख्यात अभिनेता-फिल्मकार कमल हासन कन्नड़ भाषा को कमतर बताने और तमिल की श्रेष्ठता जताने का शिगूफा छेड़कर नया विवाद खड़ा करने में लगे थे।

सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों में शामिल अन्य पार्टियों के नेताओं ने भी इस मोर्चे पर सराहनीय काम किया। इसमें कांग्रेस के भी कुछ सांसद खास तौर पर शामिल हैं। अपने नेता राहुल गांधी के निरंतर शिकायती लहजे और सामान्य तौर पर नकारात्मक रवैये के बावजूद कांग्रेस सांसदों ने यही दर्शाया कि भारत राजनीतिक रूप से भी पूरी तरह से एकजुट है। कांग्रेस के ऐसे सांसदों में शशि थरूर की खूब सराहना हुई। विषय के प्रति अपने विशद ज्ञान एवं उत्कृष्ट संवाद शैली के जरिये उन्होंने अनुकरणीय रूप से भारत का पक्ष रखा। दुनिया भर में प्रतिनिधिमंडल भेजने संबंधी पहल को लेकर थरूर ने मोदी सरकार को भी सराहा।

उन्होंने कहा कि जब भी राष्ट्र संकट में हो तो सभी नागरिकों का दायित्व है कि कंधे से कंधा मिलाकर काम करें। राजनीति को इससे अलग रखा जाना चाहिए। उनके अनुसार अमेरिका और मध्य अमेरिकी देशों में प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए उनका चयन उनके लिए गर्व की अनुभूति कराने वाला रहा। पूर्व विदेश मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने भी अपने दायित्व को बखूबी निभाया।उन्होंने आपरेशन सिंदूर की सराहना करते हुए सैन्य बलों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ संवाद-सहयोग के चाहे जो प्रयास किए जाएं, लेकिन इस पड़ोसी देश की उन्हें लेकर एक ही प्रतिक्रिया होती है और वह है आतंकवाद। आपरेशन सिंदूर की आलोचना करने वाले विपक्षी दलों और यहां तक कि अपनी पार्टी के कुछ नेताओं को भी खुर्शीद ने आड़े हाथों लिया।

उन्होंने अनुच्छेद 370 को हटाने संबंधी मोदी सरकार के फैसले का पुरजोर समर्थन किया। इसके बाद कांग्रेस के कुछ नेताओं ने उन्हें निशाना बनाया, जिसकी पीड़ा उन्होंने यह कहकर व्यक्त की कि क्या देशभक्त होना इतना कठिन है। थरूर और खुर्शीद के अलावा आनंद शर्मा कांग्रेस के एक अन्य बड़े नेता रहे, जिन्होंने प्रतिनिधिमंडल संबंधी कवायद को सराहा। आतंकवाद को बढ़ावा देने में पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान की भूमिका को दुनिया के सामने उजागर करने के मोदी सरकार के इस प्रयास को उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण बताया। मनीष तिवारी का नाम भी उन नेताओं में जुड़ गया जिन्होंने कहा कि राष्ट्र के प्रति कोई भी जिम्मेदारी हर चीज से ऊपर है।

पहलगाम हमले के बाद से लेकर प्रतिनिधिमंडल में भागीदारी तक एआइएमआइएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी का भी एक प्रखर राष्ट्रवादी के रूप में उभार देखने को मिला। उन्होंने बहुत बेबाकी से यह बात रखी कि पाकिस्तान की आतंकपरस्त नीतियों की भारत किस तरह कीमत चुका रहा है। उन्होंने अपनी विशेष भाषा-शैली और उदाहरणों के जरिये दुनिया का ध्यान इस समस्या की ओर खींचा। उन्हें सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन और अल्जीरिया जैसे उन मुस्लिम देशों में गए प्रतिनिधिमंडल के साथ भेजा गया था, जहां पाकिस्तान अक्सर मजहबी दुहाई देता रहता है।

उनके प्रतिनिधिमंडल ने मुखरता से इस पहलू को रेखांकित किया कि पाकिस्तानी आतंकवादी अपनी गतिविधियों से भारत के बहुलतावादी, उदार एवं लोकतांत्रिक समाज के तानेबाने को छिन्न-भिन्न करना चाहते थे। विभिन्न दलों के सांसदों एवं विशेषज्ञों को दुनिया भर में भेजने के मोदी सरकार के इस प्रयास की व्यापक रूप से प्रशंसा की जानी चाहिए। इस संदर्भ में कनिमोरी के भारत की भाषा संबंधी बयान की बात करें तो यह केवल देश की भाषाई विविधता से ही नहीं जुड़ा था। ध्यान रहे कि भारत की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं भाषाई विविधता वास्तव में बेजोड़ है।

भारत दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश ही नहीं, बल्कि सर्वाधिक विविधतापूर्ण एवं सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र भी है। हमारे संविधान में धार्मिक, भाषाई एवं अन्य अल्पसंख्यकों के लिए जिस प्रकार के अधिकार प्रदान किए गए हैं, उनकी दुनिया में कोई और मिसाल नहीं मिलती। राहुल गांधी और कांग्रेस के कुछ अन्य नेताओं को कनिमोरी एवं दूसरे सांसदों से सीखना चाहिए कि जब राष्ट्रहित की बात आए तो अपना रवैया कैसा रखना होता है। राहुल गांधी यह भी सीख लें कि विदेशियों या अन्य देशों के नेताओं के समक्ष खुद को कैसे प्रस्तुत करना चाहिए।

(लेखक लोकतांत्रिक विषयों के विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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