सपा पोस्टर में अंबेडकर का चेहरा आधा, भाजपा बोली यह अपमान नहीं तो क्या है?

उत्तर प्रदेश की सियासत में इन दिनों एक पोस्टर ने बवंडर मचा दिया है। समाजवादी पार्टी की ओर से लोहिया वाहिनी की बैठक के लिए लगाए गए एक पोस्टर में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की आधी-आधी तस्वीरों को जोड़कर पेश किया गया, जिसने राजनीतिक तापमान को अचानक उबाल पर ला दिया। भारतीय जनता पार्टी ने इसे बाबा साहेब का अपमान करार देते हुए पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन का ऐलान कर दिया है। लखनऊ से लेकर जिलों तक भाजपा कार्यकर्ता सड़कों पर उतरने की तैयारी में हैं और बाबा साहेब की प्रतिमा के सामने विरोध जताने का ऐलान कर चुके हैं।
भाजपा का आरोप है कि यह सिर्फ एक पोस्टर नहीं, बल्कि समाजवादी पार्टी की सोच का प्रतिबिंब है, जिसमें बाबा साहेब के विचारों और योगदान को कमतर आंकने की कोशिश की गई है। भाजपा के राज्यसभा सांसद बृजलाल ने सीधा हमला बोलते हुए कहा कि अखिलेश यादव बाबा साहेब के बराबर खुद को दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, जो कि न केवल बेतुका है, बल्कि दलित समाज के साथ बड़ा धोखा भी है। उन्होंने कहा कि यह पहला मौका नहीं है, जब सपा ने डॉ. अंबेडकर का अपमान किया हो, बल्कि यह एक लंबी श्रृंखला की अगली कड़ी है। भाजपा नेता ने पुराने फैसलों को याद दिलाते हुए कहा कि अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री रहते कई ऐसे कदम उठाए, जिनसे यह साबित होता है कि उन्हें बाबा साहेब के नाम और काम से परहेज है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कन्नौज मेडिकल कॉलेज से बाबा साहेब का नाम हटाया गया, भीमनगर जिले का नाम बदलकर संभल कर दिया गया, अंबेडकर ग्रीन गार्डन को जनेश्वर मिश्रा पार्क बना दिया गया। यहां तक कि पंचशीलनगर, प्रबुद्धनगर और रमाबाई नगर जैसे जिलों के नाम भी बदल दिए गए। बृजलाल ने सवाल उठाया कि जब जगह-जगह बाबा साहेब और दलित महापुरुषों के नाम हटाए जा रहे थे, तब अखिलेश यादव को यह अपमान क्यों नहीं लगा? उन्होंने आरोप लगाया कि सपा ने अपने पूरे कार्यकाल में दलित अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ भेदभाव किया और उनकी पदावनति कर उन्हें हाशिए पर डालने की साजिश की।
इस पूरे विवाद के केंद्र में सिर्फ एक पोस्टर नहीं है, बल्कि दलित समाज की अस्मिता, पहचान और भावनाओं को लेकर गहराया असंतोष है। भाजपा इस मुद्दे को लेकर बेहद आक्रामक मूड में नजर आ रही है। पार्टी के बड़े नेता यह स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि इस बार दलित समाज को भ्रमित नहीं होने देंगे और बाबा साहेब के अपमान को सपा की पहचान बना देंगे। विरोध प्रदर्शन की तैयारी इसी रणनीति का हिस्सा है, जहां पार्टी का मकसद साफ है सपा को दलित विरोधी ठहराकर राजनीतिक लाभ उठाना।
वहीं, समाजवादी पार्टी की ओर से इस मुद्दे पर अब तक कोई विस्तृत सफाई नहीं दी गई है, जिससे विपक्ष को हमला करने का खुला मौका मिल गया है। सपा समर्थकों का मानना है कि यह भाजपा की साजिश है, ताकि असली मुद्दों से ध्यान भटकाया जा सके। उनका दावा है कि सपा हमेशा पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों की आवाज बनी रही है और इस पोस्टर का उद्देश्य दोनों नेताओं की विचारधारा को एक मंच पर दिखाना था, न कि किसी का अपमान करना। मगर भाजपा इस बात को मानने को तैयार नहीं है और लगातार इसे अपमानजनक बता रही है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह मामला आने वाले विधानसभा चुनावों में खासा असर डाल सकता है, खासकर उस वर्ग में जो बाबा साहेब को केवल एक नेता नहीं, बल्कि अपना मसीहा मानता है। जिस तरह से भाजपा इस मुद्दे को जनता के बीच ले जा रही है, उससे यह स्पष्ट है कि पार्टी इसे एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनाना चाहती है। बाबा साहेब का नाम, उनका योगदान और उनका आदर्श भारत के करोड़ों लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है। ऐसे में उनके नाम या तस्वीर के साथ कोई भी छेड़छाड़ न सिर्फ राजनीतिक आग भड़काती है, बल्कि सामाजिक आक्रोश को भी जन्म देती है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि समाजवादी पार्टी इस विवाद से कैसे बाहर निकलती है। क्या वह माफी मांगती है, या इसे गलतफहमी बता कर खारिज कर देती है? भाजपा के आक्रामक रुख को देखते हुए इतना तो तय है कि यह मुद्दा अब इतनी आसानी से थमने वाला नहीं है। दलित राजनीति का यह नया अध्याय यूपी की राजनीति में बड़े फेरबदल का कारण बन सकता है। बाबा साहेब की तस्वीर के साथ छेड़छाड़ को लेकर मचा यह सियासी तूफान अब धीरे-धीरे पूरे प्रदेश में फैल रहा है, और इसका असर 2027 के चुनावी समीकरणों को गहराई से प्रभावित कर सकता है।