पाकिस्तान के भविष्य पर मंडरा रहे संकट क्या देश टूट जाएगा या सेना फिर से सत्ता पर काबिज होगी?

पाकिस्तान का भविष्य आजकल संकट में है। यह संकट पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति, आतंकवाद और आर्थिक संकट से जुड़ा हुआ है। इस देश की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है और इसके बारे में कुछ सवाल हैं जिनके उत्तर आनेवाले समय में ही मिल पाएंगे। पाकिस्तान के निर्माण के समय मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा प्रस्तुत ‘टू नेशन थ्योरी’ को लेकर जो तर्क दिया गया था, वह आज भी पाकिस्तान की राजनीति में प्रभावी है। इस सिद्धांत का आधार यह था कि भारतीय उपमहाद्वीप के हिंदू और मुस्लिम दो अलग-अलग राष्ट्र हैं, जिनकी धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान इतनी भिन्न है कि दोनों एक साथ एक राष्ट्र में नहीं रह सकते। पाकिस्तान के निर्माण के समय यह सिद्धांत प्रमुख रूप से स्वीकार किया गया था, लेकिन 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के अलग होने के बाद इस सिद्धांत को एक गंभीर झटका लगा था। फिर भी, पाकिस्तान के शासक इस सिद्धांत को अपनी राजनीति और अस्तित्व के लिए एक मजबूत आधार मानते हैं।
आज पाकिस्तान जिस स्थिति में है, उसे देखकर लगता है कि देश की आंतरिक राजनीति और सेना के बीच का तनाव और भी बढ़ सकता है। पाकिस्तानी सेना के प्रमुख असीम मुनीर के खिलाफ पाकिस्तान में जो विरोध हो रहा है, वह उनके भविष्य के लिए खतरे की घंटी हो सकती है। पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख असीम मुनीर का भारत के खिलाफ कई बार कड़ा बयान सामने आया है और इससे पाकिस्तान की राजनीति में एक बड़ा संकट उत्पन्न हो गया है। पाकिस्तानी सेना में असीम मुनीर के खिलाफ असंतोष बढ़ता जा रहा है। मार्च 2025 में, पाकिस्तानी सेना के जूनियर अधिकारियों और जवानों ने उनके खिलाफ एक खुला पत्र लिखा था, जिसमें उनके इस्तीफे की मांग की गई थी। पत्र में कहा गया था कि मुनीर के नेतृत्व में सेना की प्रतिष्ठा गिर चुकी है और वह लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं। सेना के भीतर असंतोष बढ़ने का मतलब है कि पाकिस्तान में सत्ता संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता का खतरा बढ़ सकता है।
पाकिस्तान का इतिहास रहा है कि जब भी ऐसी स्थितियां उत्पन्न होती हैं, तो वहां एक नया सैन्य तानाशाह उभरता है, जो सत्ता में आता है और देश की राजनीति को काबू में करता है। पाकिस्तान में पहले भी कई बार सैन्य शासन लागू हो चुका है। 1958, 1977, और 1999 में सैन्य शासन ने पाकिस्तान की राजनीति पर अपना प्रभाव डाला था। वर्तमान में पाकिस्तान की सेना का राजनीतिक प्रभाव बहुत मजबूत है, और अगर मुनीर को हटाया जाता है, तो यह स्थिति एक सैन्य तख्तापलट की ओर बढ़ सकती है। पाकिस्तान के भीतर इस समय असंतोष और अशांति का वातावरण है, और अगर यह बढ़ता है तो नए सैन्य नेतृत्व की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति भी गंभीर होती जा रही है। 2025 तक पाकिस्तान को 73 बिलियन डॉलर का कर्ज चुकाना है, जो देश के आर्थिक संकट को और बढ़ा सकता है। बेरोजगारी और महंगाई के कारण पाकिस्तान में सामाजिक अशांति का बढ़ना तय है। पाकिस्तान के भीतर कर्ज का बोझ और विदेशी मुद्रा भंडार की कमी के कारण आर्थिक संकट गहरा सकता है। इसके साथ ही पाकिस्तान में बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा जैसे क्षेत्रों में पहले से ही हिंसा बढ़ चुकी है। इन क्षेत्रों में अलगाववादी आंदोलनों के बढ़ने से स्थिति और भी बिगड़ सकती है। सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि बलूचिस्तान स्वतंत्रता की ओर बढ़ रहा है और भारत का समर्थन इस आंदोलन को और बढ़ा सकता है। इसी तरह पाकिस्तान में टेररिस्ट ग्रुप्स जैसे टीटीपी और आईएसआईएस-खोरासान अराजकता फैला सकते हैं, जो पाकिस्तान की स्थिति को और बिगाड़ सकते हैं।
भारत की रणनीति इस संकट के दौरान पाकिस्तान के खिलाफ एक सीमित सैन्य संघर्ष को बढ़ावा देने की हो सकती है। भारत ने पहलगाम हमले के बाद जो कदम उठाए हैं, उससे यह स्पष्ट है कि भारत पाकिस्तान के साथ एक पूर्ण युद्ध में न उलझकर सीमित संघर्ष को बढ़ा सकता है। भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है और ऑपरेशन सिंदूर जैसे कदम उठाए हैं, जो यह दर्शाते हैं कि भारत इस संघर्ष को सीमित रखना चाहता है, ताकि पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति पर और दबाव बढ़े। इस सीमित संघर्ष से पाकिस्तान के लिए आर्थिक नुकसान बढ़ेगा क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था पहले से ही कमजोर है। भारत की सैन्य श्रेष्ठता, जैसे कि एस-400 और राफेल जैसे हथियार, उसे इस संघर्ष में बढ़त दे सकते हैं। पाकिस्तान की सेना भारतीय सीमा की सुरक्षा में व्यस्त हो सकती है, जिससे पाकिस्तान के अन्य क्षेत्रों में असंतोष और हिंसा बढ़ सकती है।
भारत की यह रणनीति हो सकती है कि वह पाकिस्तान को इस सीमा तक सैन्य संघर्ष में उलझा दे, कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और सामाजिक स्थिति पूरी तरह से टूट जाए। पाकिस्तान के भीतर बढ़ती हुई अस्थिरता, सरकार की अक्षमता और सेना के बढ़ते संघर्ष का फायदा भारत उठाने की कोशिश करेगा। सीमित संघर्ष पाकिस्तान की स्थिति को और कमजोर कर सकता है, और इससे पाकिस्तान के भीतर के क्षेत्रीय आंदोलन जैसे बलूचिस्तान, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा को बढ़ावा मिल सकता है।
पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह हो सकती है कि वह अपनी आंतरिक अशांति को संभाल पाए। अगर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध होता है, तो पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में अलगाववादी आंदोलन तेज हो सकते हैं। बलूचिस्तान, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा जैसे क्षेत्रों में स्वतंत्रता की मांग हो सकती है। पाकिस्तान के लिए यह स्थिति बहुत गंभीर हो सकती है क्योंकि ये क्षेत्र पहले से ही पाकिस्तान से असंतुष्ट हैं। यदि पाकिस्तान में इन आंदोलनों को बढ़ावा मिलता है, तो यह पाकिस्तान के टूटने की प्रक्रिया को तेज कर सकता है। भारत, अफगानिस्तान और अन्य देश इन आंदोलनों को समर्थन दे सकते हैं, जिससे पाकिस्तान के टूटने की संभावना और बढ़ सकती है।
पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार भी बहुत कमजोर है। 2023 में पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार केवल 4.3 बिलियन डॉलर था, जो पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति को और कमजोर कर सकता है। कर्ज के बढ़ते बोझ और विदेशी मुद्रा भंडार की कमी के कारण पाकिस्तान सरकार की स्थिति बेहद कमजोर हो चुकी है। पाकिस्तान पहले से ही संकट में है, और अगर इस स्थिति में और दबाव बढ़ता है, तो यह देश अपने ही अंतर्विरोधों में फंस सकता है। पाकिस्तान के भीतर सामाजिक अशांति और सरकार की अक्षमता के कारण देश का भविष्य असमंजस में है।
इस प्रकार पाकिस्तान की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि उसका भविष्य अंधेरे में है। पाकिस्तान अपने भीतर के विवादों, असंतोष और आर्थिक संकट से उबरने के लिए किसी रास्ते पर नहीं जा पा रहा है। आनेवाले समय में पाकिस्तान के लिए यह बहुत चुनौतीपूर्ण हो सकता है कि वह अपनी स्थिति को संभाल सके।