विपक्ष की तीन शेरनियां बनीं मोदी की ग्लोबल चाल का चेहरा, पाकिस्तान को दिया करारा जवाब

अजय कुमार,वरिष्ठ पत्रकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति का सबसे बड़ा गुण यह है कि वे हर मोर्चे पर सियासत की चतुर चाल चलने में माहिर हैं। संसद में विपक्ष जितना तीखा हमला करता है, मोदी उसकी धार को उसी तीखेपन से मोड़ना भी जानते हैं। 10 जून 2025 की रात जब प्रधानमंत्री आवास पर विदेशी दौरे से लौटे 59 सदस्यीय सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के लिए एक विशेष रात्रिभोज आयोजित किया गया, तो यह केवल औपचारिक शिष्टाचार नहीं था। यह रात थी उस डिप्लोमैटिक रणनीति की, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष की तीन सबसे मुखर महिला सांसदों को ऐसा मंच दिया, जिससे न केवल उन्हें वैश्विक स्तर पर पहचान मिली, बल्कि भारत की राजनीति में विपक्ष और सत्ता के रिश्ते को एक नए धरातल पर खड़ा कर दिया।
प्रियंका चतुर्वेदी, सुप्रिया सुले और एमके कनिमोझी तीनों ही नेता आज विपक्ष की सबसे तेज़ आवाज़ मानी जाती हैं। ये वो महिलाएं हैं जो संसद में सरकार की नीतियों की धज्जियां उड़ाने में पीछे नहीं रहतीं, सोशल मीडिया पर सीधी टक्कर लेती हैं, और राजनीतिक रैलियों में सत्तारूढ़ दल को घेरने में माहिर हैं। लेकिन इस बार प्रधानमंत्री मोदी ने इन विरोधी आवाज़ों को न केवल मंच दिया, बल्कि उन्हें विदेशों में भारत का चेहरा भी बना दिया। 33 देशों के इस विशेष अभियान में तीनों महिला नेता प्रमुख भूमिका में रहीं। और जब ये नेता लौटीं तो मोदी ने एक ऐसा कदम उठाया, जिसने सत्ता और विपक्ष के बीच की दूरी को कम करने का काम किया।
सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के भोज में जब प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों विपक्षी महिला नेताओं से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की, उनसे बातचीत की, उनके अनुभव पूछे, और डिनर की तस्वीरों में उन्हें प्रमुखता दी, तो यह सिर्फ सम्मान नहीं था, यह एक बड़ा राजनीतिक संदेश था। यह संदेश था कि प्रधानमंत्री उन आवाजों को भी सुनते हैं, जो अक्सर उनके खिलाफ खड़ी होती हैं। यह संकेत था कि भारत की सुरक्षा और वैश्विक प्रतिष्ठा के मुद्दे पर सरकार और विपक्ष एक मंच पर हैं। और यह भी कि लोकतंत्र में विरोध को सहयोग में बदला जा सकता है, यदि नेतृत्व में समावेश की इच्छा हो।
सुप्रिया सुले, जो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की वरिष्ठ नेता और शरद पवार की बेटी हैं, उन्होंने चार देशों कतर, दक्षिण अफ्रीका, इथियोपिया और मिस्र की यात्रा की। वहां उन्होंने भारत का पक्ष मज़बूती से रखा और बताया कि कैसे पाकिस्तान सिर्फ दक्षिण एशिया ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए खतरा बन चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान के आतंकवाद को राज्य की नीति के हिस्से के रूप में दुनिया को देखना चाहिए और उस पर कड़ा रुख अपनाना चाहिए। उनकी वाणी में केवल राजनैतिक मजबूती ही नहीं, राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता भी साफ दिख रही थी। जब वह लौटीं और प्रधानमंत्री से मिलीं, तो उन्होंने उन्हें यशवंतराव चव्हाण पर लिखी दो किताबें भेंट कीं और इस मुलाकात को ट्विटर पर गर्व के साथ साझा किया। उनके शब्दों में प्रधानमंत्री मोदी की सराहना और राष्ट्रीय एकता की पुकार थी।
उधर डीएमके सांसद कनिमोझी, जिनका राजनीतिक व्यक्तित्व हमेशा सरकार के मुखालफ में खड़ा दिखता है, उन्होंने रूस, स्लोवेनिया, ग्रीस, लातविया और स्पेन की यात्रा की। वहां उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत का पक्ष वैश्विक मंचों पर रखा। आतंकवाद के खिलाफ भारत की नीति को मजबूती से पेश किया और यह स्पष्ट किया कि पाकिस्तान सीमापार आतंकवाद का अड्डा बना हुआ है। दिलचस्प बात यह रही कि कनिमोझी ने प्रधानमंत्री को अंगवस्त्रम जैसा एक पारंपरिक वस्त्र भेंट किया, जिसे मोदी ने स्वीकार किया और इसे सम्मानपूर्वक माथे से लगाया। वह दृश्य जितना प्रतीकात्मक था, उतना ही ऐतिहासिक भी।
प्रियंका चतुर्वेदी की कहानी और भी दिलचस्प रही। वह शिवसेना (यूबीटी) की सांसद हैं और उद्धव ठाकरे की सबसे विश्वसनीय नेताओं में मानी जाती हैं। उन्होंने फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, बेल्जियम, इटली और डेनमार्क जैसे ताकतवर यूरोपीय देशों का दौरा किया। रविशंकर प्रसाद की अगुवाई में वे प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनीं। विदेशों में उन्होंने सिर्फ आतंकवाद पर बात नहीं की, बल्कि पाकिस्तानी नीति की असलियत को सबूतों के साथ सामने रखा। उन्होंने साफ-साफ कहा कि पाकिस्तान IMF से लोन लेकर नागरिकों की भलाई में नहीं, आतंकियों को पालने में लगा है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि पाकिस्तान नहीं सुधरा, तो भारत आतंकियों पर फिर से कार्रवाई करेगा, चाहे वह कार्रवाई सरहद पार जाकर ही क्यों न करनी पड़े।
तीनों नेताओं की बातों में सरकार के प्रति सहमति दिखी, और यह सहमति किसी दबाव या मजबूरी की नहीं थी, बल्कि एक साझा कर्तव्य की थी। डिनर के बाद दिए गए बयानों में तीनों महिला सांसदों ने प्रधानमंत्री मोदी की पहल की तारीफ की, उनके खुले संवाद की शैली को सराहा और यह भी स्वीकार किया कि राष्ट्रहित के मुद्दों पर सबको एकजुट होना चाहिए। प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने खुले मन से सभी प्रतिनिधियों की बातें सुनीं और हर किसी के अनुभव में रुचि दिखाई। उन्होंने यह भी जोड़ा कि लोकतंत्र में विरोध भी जरूरी है और सत्ता पक्ष की जवाबदेही तय करना विपक्ष का धर्म है, लेकिन जब बात आतंकवाद जैसे मुद्दों की हो, तो समरसता ही सबसे बड़ी शक्ति होती है।
इस पूरे घटनाक्रम से एक बात और उभरकर आई प्रधानमंत्री मोदी विपक्ष की महिला शक्ति को केवल आलोचक के रूप में नहीं देखते, बल्कि उन्हें राष्ट्र की आवाज़ के रूप में भी स्वीकार करते हैं। डिनर डिप्लोमेसी के ज़रिए उन्होंने न केवल तीनों महिला सांसदों को सम्मान दिया, बल्कि यह भी दिखा दिया कि वे विपक्षी नेतृत्व से संवाद के लिए खुले हैं, बशर्ते मुद्दा राष्ट्रहित का हो। यह संदेश उन दिनों में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब देश एक ओर आतंकी खतरे से जूझ रहा है, और दूसरी ओर 2025 के आम चुनाव की आहटें सुनाई दे रही हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस डिनर से एक तीर से कई निशाने साधे। एक तरफ जहां उन्होंने दुनिया को यह दिखाया कि भारत एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ खड़ा है, वहीं देश के भीतर यह संदेश दिया कि सरकार और विपक्ष मिलकर भी काम कर सकते हैं। उन्होंने यह भी दिखाया कि विपक्षी आवाज़ों को चुप नहीं कराया जा रहा, बल्कि उन्हें मंच देकर उनकी भूमिका को मजबूती दी जा रही है। और शायद यही भारत की लोकतांत्रिक परिपक्वता की सबसे बड़ी पहचान है।
10 जून की रात इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई है एक ऐसी रात जब विरोध की आवाज़ें एक साथ भारत के लिए गूंजीं, जब प्रधानमंत्री ने अपने सबसे बड़े आलोचकों को सबसे बड़ा सम्मान दिया, और जब राजनीति सिर्फ सत्ता के लिए नहीं, राष्ट्र के लिए की गई। इस भोज की थाली में केवल व्यंजन नहीं, विश्वास भी परोसा गया था सत्ता और विपक्ष के बीच एक दुर्लभ, मगर ज़रूरी विश्वास। यही विश्वास देश को आगे ले जाएगा।