विपक्ष में ही विपक्ष केरल में कांग्रेस को घेरने उतरीं ममता बनर्जी

बंगाल की राजनीति में हमेशा से अप्रत्याशित चालों के लिए पहचानी जाने वाली ममता बनर्जी अब राष्ट्रीय पटल पर भी अपने खेल को विस्तार दे चुकी हैं। उन्होंने एक बार फिर कांग्रेस पार्टी को असहज करने वाली एक ऐसी चाल चली है, जिससे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों की रणनीति पर बड़ा असर पड़ सकता है। बात केरल के नीलांबुर विधानसभा उपचुनाव की है, जो 19 जून को होना है और नतीजे 23 जून को सामने आएंगे। लेकिन यह चुनाव सिर्फ एक उपचुनाव भर नहीं रह गया, बल्कि तृणमूल कांग्रेस की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा और कांग्रेस पर दबाव बनाने की योजना का हिस्सा बन चुका है।
ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने नीलांबुर सीट से पीवी अनवर को उम्मीदवार बनाया है। पीवी अनवर वही नेता हैं, जिनके इस्तीफे के कारण यह उपचुनाव हो रहा है। खास बात यह है कि पीवी अनवर पहले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) के विधायक रह चुके हैं, फिर यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) का हिस्सा बने और अब ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। वे केरल में टीएमसी के संयोजक भी बनाए गए हैं। यह घटनाक्रम स्पष्ट रूप से इस बात की ओर इशारा करता है कि ममता बनर्जी अब केरल जैसे राज्य में भी कांग्रेस की राजनीति को चुनौती देने के मूड में हैं।
नीलांबुर विधानसभा क्षेत्र वायनाड लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है। यह वही सीट है, जिससे अब प्रियंका गांधी वाड्रा सांसद बनी हैं। राहुल गांधी के अमेठी से हारने के बाद उन्होंने 2019 में वायनाड से जीत हासिल की थी, और इस बार वह रायबरेली चले गए तो वायनाड सीट से प्रियंका गांधी ने चुनाव लड़ा और विजयी रहीं। लेकिन ममता बनर्जी ने जिस सीट को चुना, वह कांग्रेस के इस मजबूत गढ़ में सीधे हस्तक्षेप जैसा है। ऐसा लग रहा है कि ममता बनर्जी कांग्रेस को न केवल बंगाल में, बल्कि दक्षिण भारत में भी जड़ से हिलाने की तैयारी में हैं। यह लड़ाई विचारधारा या गठबंधन की नहीं, बल्कि राजनीतिक वर्चस्व की है, जिसमें ममता बनर्जी अब किसी तरह की नरमी नहीं दिखा रहीं।
केरल में कांग्रेस की स्थिति पहले से ही डांवाडोल है। पार्टी के अंदर गुटबाजी है, शशि थरूर जैसे नेता पार्टी लाइन से हटकर अपने एजेंडे पर काम कर रहे हैं। केसी वेणुगोपाल जैसे नेताओं पर राहुल गांधी का भरोसा जरूर है, लेकिन थरूर का कद भी केरल में छोटा नहीं है। थरूर के कारण कांग्रेस पहले ही कई बार असहज हो चुकी है, और अब ममता बनर्जी ने वहां भी दखल देकर कांग्रेस की मुसीबतें और बढ़ा दी हैं। टीएमसी का दावा है कि वह केरल में एक धर्मनिरपेक्ष, समावेशी और जनसंवेदनशील विकल्प बनकर उभरेगी, लेकिन इसकी असलियत कहीं अधिक राजनीतिक है।
पीवी अनवर की बात करें तो वह इलाके के एक प्रभावशाली मुस्लिम नेता माने जाते हैं। उनका पारिवारिक और राजनीतिक आधार मजबूत रहा है। वह पहले मुस्लिम लीग से भी जुड़ाव रखते थे और वामपंथी सरकार में भी रहे हैं। अब तृणमूल कांग्रेस में शामिल होकर उन्होंने ममता बनर्जी को वह जमीन उपलब्ध कराई है, जिसकी मदद से वह कांग्रेस को उसके अपने गढ़ में ही घेरना चाहती हैं। नीलांबुर में मुस्लिम, हिंदू और ईसाई तीनों समुदाय के मतदाता हैं, और यह विविधता ममता बनर्जी के लिए एक अवसर की तरह है, क्योंकि बंगाल की राजनीति में वह लंबे समय से अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधने की कोशिश करती रही हैं।
कांग्रेस के लिए यह उपचुनाव किसी कांटे की तरह चुभने वाला है, क्योंकि अगर टीएमसी यहां अच्छा प्रदर्शन कर जाती है, तो यह संकेत होगा कि कांग्रेस की पकड़ ढीली हो रही है। अगर अनवर जीत जाते हैं, तो यह एक राष्ट्रीय संदेश होगा कि ममता बनर्जी कांग्रेस के विकल्प के तौर पर खुद को स्थापित करने में कामयाब हो रही हैं। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के लिए यह बेहद असहज स्थिति होगी, क्योंकि यह उनकी रणनीतिक विफलता मानी जाएगी।
ममता बनर्जी के इस कदम के पीछे रणनीति बेहद साफ नजर आती है। वह 2026 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को हर मोर्चे पर कमजोर करना चाहती हैं। लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस को बंगाल में एक तरह से खत्म कर दिया। कांग्रेस और वामपंथी गठबंधन के सभी उम्मीदवार टीएमसी और बीजेपी के सामने पस्त हो गए। अब वह उसी रणनीति को केरल में आजमाना चाहती हैं, जहां वह कांग्रेस को LDF और TMC के बीच पिसने को मजबूर करें। और यही नहीं, ममता बनर्जी को विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक के भीतर भी एक शक्तिशाली नेता के रूप में खुद को स्थापित करना है, जिसमें वह राहुल गांधी की ताकत को कमजोर कर अपनी जगह बनाना चाहती हैं।
यह विडंबना ही है कि टीएमसी सांसद लोकसभा में राहुल गांधी को ‘हमारे नेता’ कहकर संबोधित करते हैं, लेकिन बंगाल की मुख्यमंत्री उन्हीं राहुल गांधी की राजनीतिक जमीन को खोद डालने में लगी हैं। INDIA गठबंधन के नाम पर दिखाया गया एकता का तमाशा अब धीरे-धीरे दरकता नजर आ रहा है। ममता बनर्जी ने कभी भी राहुल गांधी को विपक्ष का सर्वमान्य नेता मानने की बात नहीं की। उल्टा वह कांग्रेस को बीजेपी जितना ही बड़ा विरोधी मानती हैं। यही कारण है कि नीलांबुर में टीएमसी की एंट्री सिर्फ एक उपचुनाव नहीं, बल्कि एक बड़ी राजनीतिक योजना का हिस्सा है, जिसका केंद्र राहुल और प्रियंका गांधी को घेरना है।
प्रियंका गांधी वाड्रा को यह उपचुनाव एक निजी चुनौती की तरह लेना होगा, क्योंकि जिस लोकसभा क्षेत्र से वह सांसद बनी हैं, उसी के भीतर एक विधानसभा सीट पर उनकी प्रतिद्वंदी ममता बनर्जी की पार्टी पैर जमा रही है। अगर वे इस उपचुनाव के नतीजों से पहले ही कोई ठोस रणनीति नहीं अपनातीं, तो आने वाले समय में कांग्रेस के लिए वायनाड को बचाना भी मुश्किल हो सकता है।
ममता बनर्जी की इस चाल ने यह तो साफ कर दिया है कि अब विपक्ष की राजनीति में भी तालमेल और सौहार्द की बातें सिर्फ मंचों तक सीमित रह गई हैं। जमीन पर हर नेता खुद को नंबर वन साबित करने की होड़ में है, और ममता बनर्जी इस दौड़ में बाकी सभी को चौंकाने के लिए तैयार बैठी हैं। नीलांबुर उपचुनाव चाहे जो नतीजा दे, लेकिन इसने कांग्रेस के लिए एक नए सिरदर्द को जन्म दे दिया है, और राहुल गांधी के लिए ये संकेत बेहद गंभीर हैं कि 2026 से पहले उन्हें अपने ही साथियों से ज़्यादा ममता बनर्जी जैसी ‘मित्र विपक्षियों’ से सावधान रहना होगा।