परिवारवाद पर मोदी का बड़ा वार बीजेपी में अब मेहनत और सोशल मीडिया ही देगा टिकट

अजय कुमार,वरिष्ठ पत्रकार

बिहार की राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पटना यात्रा केवल चुनावी तैयारी का हिस्सा नहीं रही, बल्कि भारतीय जनता पार्टी के भीतर एक नए युग की शुरुआत का संकेत बन गई। वर्षों से कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों पर परिवारवाद के नाम पर तीखे हमले करते आए नरेंद्र मोदी ने अब खुद की पार्टी के नेताओं को भी उसी तराजू पर तौलना शुरू कर दिया है। बीजेपी के दफ्तर में जब मोदी ने यह कहा कि राजनीति में जमींदारी प्रथा खत्म होनी चाहिए और अब परिवारवाद की कोई जगह नहीं होनी चाहिए, तब शायद बहुत से नेताओं के मन में यही सवाल उठा होगा कि अब टिकट कैसे मिलेगा?

दरअसल, बिहार बीजेपी कार्यालय में मोदी ने जब कार्यकर्ताओं और नेताओं को संबोधित किया, तो वह सिर्फ एक चुनावी भाषण नहीं था, बल्कि एक नई दिशा देने की कोशिश थी। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि पार्टी चार पीढ़ियों की मेहनत से इस मुकाम तक पहुंची है और इसे कोई खानदानी दुकान की तरह नहीं चलाया जा सकता। उनका इशारा उन नेताओं की ओर था जो वर्षों से पार्टी के नाम पर अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते रहे हैं। मोदी ने जो सबसे महत्वपूर्ण सवाल उठाया, वो यही था कि जब कार्यकर्ता सालों मेहनत करता है, तो उसका हक क्यों नहीं बनता? क्यों हमेशा किसी का बेटा या बेटी ही टिकट का हकदार बनता है?

यह बात पहली बार नहीं है जब नरेंद्र मोदी ने परिवारवाद पर हमला बोला हो। 2020 के बिहार चुनाव में उन्होंने तेजस्वी यादव को जंगलराज का युवराज कहा था। पश्चिम बंगाल में अभिषेक बनर्जी को बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राजकुमार बताया था। तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव पर परिवारवाद को लेकर मोदी ने तीखा हमला बोला था। राहुल गांधी को तो बीजेपी नेता अक्सर युवराज कह कर तंज कसते रहे हैं। लेकिन अब जब मोदी खुद अपने ही नेताओं को उसी लहजे में सलाह देने लगे हैं, तब ये समझना जरूरी है कि बीजेपी अपने भीतर भी बदलाव की शुरुआत करने जा रही है।

इसका सबसे बड़ा संकेत सोशल मीडिया की शर्त के रूप में सामने आया है। मोदी ने यह शर्त रख दी कि जो भी बीजेपी का उम्मीदवार बनना चाहता है, उसके कम से कम 50 हजार सोशल मीडिया फॉलोअर होने चाहिए। इस पर कुछ लोगों को अचरज जरूर हुआ होगा, लेकिन यह संकेत है कि अब पार्टी संगठन और जनता के साथ जुड़ाव ही सबसे बड़ा मापदंड होगा। यह ठीक वैसी ही शर्त है जैसी कुछ समय पहले कांग्रेस में भी देखी गई थी, जब पार्टी के नेताओं को बताया गया था कि टिकट चाहिये तो फेसबुक पर 1.3 लाख, X पर 50 हजार और इंस्टाग्राम पर 30 हजार फॉलोअर जरूरी हैं।

मोदी की इस सलाह में कई स्तर पर संदेश छिपा है। एक तो यह कि जो नेता सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं हैं, वे जनता से कटे हुए हैं और दूसरा यह कि सिर्फ पारिवारिक नाम से राजनीति नहीं चलेगी। बीजेपी अब तकनीक और जनसंपर्क को आधार बनाकर नेताओं को चुनने की ओर बढ़ रही है। साथ ही प्रधानमंत्री ने यह भी चेतावनी दी कि जो लोग चुनाव के वक्त इधर-उधर हो जाते हैं और फिर लौट आते हैं, उनकी पार्टी में कोई विशेष जगह नहीं बचेगी। यही नहीं, उन्होंने यह भी जोड़ा कि धैर्य रखने वाले कार्यकर्ता ही असली पूंजी हैं और उनका सम्मान सुनिश्चित किया जाएगा।

नरेंद्र मोदी की यह पूरी रणनीति आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई लगती है, लेकिन इसका असर पूरे देश की राजनीति पर पड़ेगा। उन्होंने यह साफ कर दिया कि अब सिर्फ पार्टी का नाम और खानदान ही किसी को टिकट दिलाने का आधार नहीं होगा। कार्यकर्ता, जो बूथ स्तर पर काम करते हैं, अब उन्हें भी उम्मीद है कि उनके लिए भी दरवाज़ा खुल सकता है। मोदी के इस बयान से कई बड़े नामों के लिए संकट की घंटी बज गई होगी। जिन नेताओं के बेटे, बेटियां, दामाद, बहन, भतीजे, भाई आदि टिकट की उम्मीद में रहते हैं, उनके सामने अब चुनौती है कि पहले खुद मेहनत करो, तब टिकट की उम्मीद करो।

बिहार की राजनीति में इस बयान का बड़ा प्रभाव दिखने वाला है। राज्य में लालू यादव का परिवार हमेशा से निशाने पर रहा है। तेजस्वी, तेजप्रताप, मीसा भारती, राबड़ी देवी, और रोहिणी आचार्य सभी राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं। कई बार नीतीश कुमार भी इस परिवारवाद पर हमला कर चुके हैं। उन्होंने तो यहां तक कह दिया था कि लालू यादव ने विकास के नाम पर कुछ नहीं किया, बस बच्चे पैदा किए। लेकिन अब मोदी के इस बयान के बाद यह सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या बीजेपी अब खुद को उन सारे उदाहरणों से मुक्त करेगी जिनमें खुद उनके नेताओं के बेटे-बेटियां सत्ता की दौड़ में शामिल हैं?

बीजेपी में भी चिराग पासवान जैसे नेता हैं, जिन्हें मोदी खुद “हनुमान” कहते हैं, लेकिन वे भी पारिवारिक विरासत से ही राजनीति में आए हैं। उनके पिता रामविलास पासवान थे, और अब उनके जीजा भी सांसद हैं। बीजेपी के ही कई नेता जैसे सीपी ठाकुर के बेटे विवेक ठाकुर, अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित शाश्वत जैसे नाम भी सामने आते हैं जो परिवारवाद की कतार में खड़े हैं। तो क्या इन सभी को अब खुद को साबित करना पड़ेगा? क्या अब उन्हें भी वही 50 हजार फॉलोअर्स जुटाने होंगे? क्या उनके टिकट पर भी वही पैमाना लागू होगा जो एक साधारण कार्यकर्ता पर होगा?

मोदी का बयान सिर्फ बीजेपी तक सीमित नहीं है। इसका एक छिपा संदेश नीतीश कुमार के लिए भी माना जा रहा है। हाल ही में नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार को राजनीति में लाने की मांग जोर पकड़ रही है। जेडीयू और सहयोगी दलों के कई नेता इसके समर्थन में हैं। केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने तो सोशल मीडिया पर साफ कहा कि जैसे डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बनता है, वैसे ही नेता का बेटा नेता क्यों नहीं बन सकता। लेकिन मोदी के बयान से यह संकेत भी गया है कि वे इस पर सहमत नहीं हैं। उन्होंने जिस शैली में परिवारवाद की आलोचना की, उससे नीतीश कुमार की कोशिशों पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं।

अब सवाल उठता है कि क्या बीजेपी अपने ही भीतर इस नई नीति को लागू कर पाएगी? क्या वाकई परिवारवाद से पूरी तरह दूरी बना पाएगी? क्या कार्यकर्ताओं को आगे लाने की ये बात सिर्फ चुनावी रणनीति भर है या इसमें वास्तव में बदलाव की कोशिश है? मोदी ने जो बात कही है, वह कार्यकर्ताओं के लिए आशा का संदेश जरूर है, लेकिन अगर इसके बाद भी बीजेपी में परिवारवाद चलता रहा तो यह पूरी नीति खोखली साबित होगी। लेकिन अगर इस पर अमल होता है, तो यह भारत की राजनीति में एक बड़ा मोड़ होगा, जहां मेहनत और जनसंपर्क ही असली टिकट का आधार बनेंगे, न कि कोई उपनाम या खानदानी पहचान।

मोदी की यह पहल केवल एक नसीहत नहीं है, बल्कि एक प्रयोग है जिसे अगर बीजेपी ईमानदारी से लागू करती है, तो आने वाले वर्षों में देश की राजनीति का चेहरा बदल सकता है। कार्यकर्ता जो वर्षों से सिर्फ बैनर टांगते थे, नारे लगाते थे, और भीड़ जुटाते थे, अब उन्हें लगने लगा है कि शायद अब उनकी मेहनत भी रंग लाएगी। अगर राजनीति से वंशवाद की सफाई की शुरुआत करने वाला पहला दल बीजेपी बनता है, तो इसका असर विपक्षी दलों पर भी पड़ेगा। क्योंकि जब किसी पार्टी के भीतर से ही बदलाव शुरू होता है, तो बाकी दलों के लिए चुप रहना मुश्किल होता है। शायद यही नरेंद्र मोदी की असली रणनीति है  ‘चैरिटी बिगिंस एट होम’।

Related Articles

Back to top button