मोदी की 5 देशों की यात्रा से चीन की बेचैनी बढ़ी ग्लोबल साउथ में भारत की बढ़ती साख से ड्रैगन बौखलाया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2 जुलाई से 9 जुलाई तक की एक बेहद अहम और रणनीतिक विदेश यात्रा पर निकल रहे हैं। यह कोई साधारण दौरा नहीं, बल्कि वैश्विक सत्ता संतुलन के केंद्र में भारत की निर्णायक उपस्थिति को स्थापित करने का प्रयास है। घाना, त्रिनिदाद एंड टोबैगो, अर्जेंटीना, ब्राजील और नामीबिया की यह यात्रा चीन की ‘कर्ज कूटनीति’ को चुनौती देने के लिए रची गई है। यह वही चीन है जिसने इन देशों में अरबों डॉलर का निवेश कर उन्हें अपने कर्ज-जाल में फंसा लिया है। लेकिन अब भारत इन्हीं देशों को भरोसे, तकनीक और भागीदारी का नया मॉडल देने जा रहा है, और यही चीन की सबसे बड़ी परेशानी है।यह यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक है। सबसे पहले बात करें घाना की, तो मोदी वहां जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बनेंगे। 2 और 3 जुलाई को घाना में प्रधानमंत्री डिजिटल पेमेंट, हेल्थ टेक्नोलॉजी, रक्षा सहयोग और शिक्षा के क्षेत्र में भारत की भूमिका का विस्तार करेंगे। घाना वो देश है जिसे चीन ने भारी निवेश के नाम पर कर्ज में डुबो दिया है। चीनी कंपनियों ने यहां खनन और आधारभूत ढांचे के नाम पर अरबों डॉलर खर्च किए, लेकिन अब इस देश की आर्थिक हालत डगमगाई हुई है। घाना अब नए सहयोगी की तलाश में है, और भारत के पास विश्वसनीयता का वह पाथेय है जिसे आज की वैश्विक व्यवस्था सबसे अधिक तलाश रही है।
इसके बाद मोदी जाएंगे त्रिनिदाद एंड टोबैगो, जहां 3 से 4 जुलाई तक रुकेंगे। यह देश कैरिबियाई क्षेत्र का अहम हिस्सा है और भारतीय मूल की आबादी का यहां बड़ा प्रभाव है। प्रधानमंत्री यहां की संसद को संबोधित करेंगे, प्रवासी भारतीयों से संवाद करेंगे और द्विपक्षीय संबंधों को शिक्षा, ऊर्जा और कृषि क्षेत्र में मजबूत करेंगे। खास बात यह है कि त्रिनिदाद एंड टोबैगो भी चीन की ‘बीआरआई’ परियोजनाओं से प्रभावित रहा है। ड्रैगन ने तेल और गैस क्षेत्र में बड़ी पूंजी झोंकी है, लेकिन अब वहां की सरकार भारत के डिजिटल और तकनीकी सहयोग को ज्यादा स्थायी और व्यावहारिक मान रही है।4 और 5 जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी पहुंचेंगे अर्जेंटीना, जहां उनकी मुलाकात राष्ट्रपति जेवियर माईली से होगी। अर्जेंटीना में भी चीन ने ऊर्जा, खनन और रेलवे परियोजनाओं में भारी निवेश किया है। लेकिन अब भारत के साथ खनिज संसाधनों, नवीकरणीय ऊर्जा और रक्षा उत्पादन जैसे क्षेत्रों में साझेदारी की बात हो रही है। मोदी की रणनीति साफ है भारत व्यापारिक सहयोग के साथ-साथ सामरिक क्षेत्र में भी इन देशों का भरोसेमंद भागीदार बनना चाहता है। अर्जेंटीना में लिथियम जैसे महत्वपूर्ण खनिज हैं जिनकी भारत को ऊर्जा सुरक्षा के लिए ज़रूरत है, और चीन अब तक इन्हें नियंत्रित करता रहा है।
5 से 8 जुलाई तक मोदी की यात्रा का सबसे बड़ा पड़ाव होगा ब्राजील, जहां वे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। ब्रिक्स यानी ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का यह सम्मेलन वैश्विक साउथ के लिए बेहद अहम है। इस बार सम्मेलन की थीम है ‘ग्लोबल साउथ के लिए समावेशी और सतत शासन’। मोदी इस मंच पर डिजिटल पेमेंट सिस्टम (UPI), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, हेल्थ टेक्नोलॉजी, क्लाइमेट जस्टिस और आर्थिक सुधारों की भारतीय दृष्टि पेश करेंगे। दिलचस्प बात यह है कि ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा ने पीएम मोदी को ‘स्पेशल स्टेट डिनर’ पर आमंत्रित किया है। जैसे ही चीन को यह खबर मिली, शी जिनपिंग ने इस शिखर सम्मेलन में खुद शामिल न होने का निर्णय लिया। उन्होंने प्रधानमंत्री ली क्यांग को प्रतिनिधित्व के लिए भेजा है। यह घटनाक्रम बताता है कि चीन मोदी की कूटनीति से कितना असहज है।ब्राजील में भारत की प्रस्तावित रक्षा साझेदारियां भी चीन की नींद उड़ाने वाली हैं। खबरें हैं कि भारत ब्राजील को आकाश मिसाइल, कोस्टल सर्विलांस टेक्नोलॉजी और आतंक निरोधक उपकरणों की पेशकश कर सकता है। इससे चीन का वह प्रभाव जो उसने लैटिन अमेरिका में धीरे-धीरे बढ़ाया था, अब सीधे भारत से टकरा रहा है। यही नहीं, ब्रिक्स में अब भारत सिर्फ एक सहभागी नहीं, बल्कि नीति-निर्माता के रूप में उभरा है। पश्चिमी देश भी इस बार ब्रिक्स की बैठकों पर नजर गड़ाए बैठे हैं, क्योंकि भारत एकमात्र ऐसा देश है जो रूस, चीन, अमेरिका और यूरोप सभी से संतुलन बनाए हुए है।मोदी की यह यात्रा 9 जुलाई को नामीबिया में समाप्त होगी। यह भी पहली बार है जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री इस दक्षिण अफ्रीकी देश की आधिकारिक यात्रा पर जा रहा है। नामीबिया में प्रधानमंत्री डिजिटल पेमेंट, पर्यावरणीय सहयोग, खनिज संसाधनों और रक्षा साझेदारी पर समझौते करेंगे। यहां भी चीन ने खनन परियोजनाओं में अरबों डॉलर लगाए हैं, लेकिन अब भारत की साझेदारी को अधिक भरोसेमंद और दीर्घकालिक समझा जा रहा है। मोदी यहां की संसद को भी संबोधित करेंगे और स्वतंत्रता सेनानी सैम नुजोमा को श्रद्धांजलि देंगे। यह दौरा भारत और अफ्रीकी देशों के बीच एक नया युग शुरू करेगा।
अगर समग्र दृष्टि से देखें तो पीएम मोदी की यह यात्रा पांच स्तरों पर चीन की चुनौती बन रही है।
पहला, भारत इन देशों को चीन के कर्ज-जाल से बाहर निकलने का मौका दे रहा है। श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश का उदाहरण सबके सामने है कि चीनी कर्ज कैसे अर्थव्यवस्था को पंगु बना देता है।
दूसरा, भारत तकनीक, डिजिटल ट्रांजैक्शन, हेल्थकेयर और स्किल डेवलपमेंट जैसे क्षेत्रों में ‘लोगो को जोड़ने’ वाला सहयोगी मॉडल सामने ला रहा है, न कि सिर्फ इन्फ्रास्ट्रक्चर का दबाव।
तीसरा, भारत ‘ग्लोबल साउथ’ की असल आवाज़ बनकर उभर रहा है। ब्रिक्स जैसे मंचों पर अब भारत केवल हिस्सा नहीं ले रहा, बल्कि नीतियों की दिशा तय कर रहा है।
चौथा, मोदी की यह यात्रा भारत की हार्ड पावर यानी रक्षा कूटनीति को भी वैश्विक स्तर पर सामने ला रही है। मिसाइल, सर्विलांस, साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भारत अपनी स्थिति स्पष्ट कर रहा है।
पांचवां, प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत छवि और सम्मान चाहे वो पापुआ न्यू गिनी में चरण स्पर्श हो या अफ्रीकन यूनियन प्रमुख का गले लगाना भारत के नेतृत्व को नैतिक बल भी दे रहा है।इस यात्रा के नतीजे तुरंत नहीं बल्कि आने वाले वर्षों में दिखाई देंगे। लेकिन यह तय है कि मोदी की यह रणनीतिक पहल चीन की कर्ज कूटनीति की नींव को हिला रही है। भारत अब उन देशों के साथ खड़ा है जो विकल्प चाहते हैं, सहयोग चाहते हैं, और सबसे बड़ी बात सम्मान चाहते हैं। इसीलिए मोदी की यह यात्रा चीन के लिए चिंता और विश्व के लिए उम्मीद का कारण बन चुकी है। भारत अब न केवल दुनिया की सबसे बड़ी जनतंत्रात्मक शक्ति है, बल्कि एक ऐसा सहयोगी भी बन चुका है जो विकास, समृद्धि और आत्मनिर्भरता का रास्ता दिखा रहा है। यही कारण है कि इस यात्रा पर न केवल बीजिंग, बल्कि पूरी दुनिया की नजर टिकी है।