मऊ सीट पर अंसारी परिवार की पकड़ कमजोर, BJP और सुभासपा के बीच सियासी जंग तेज

उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों पर भाजपा की बढ़ती सियासी ताकत को लेकर मचा सियासी घमासान अब मऊ विधानसभा सीट तक पहुंच गया है। रामपुर और कुंदरकी जैसे मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर भाजपा की उपचुनाव में जीत ने जहां सत्ताधारी गठबंधन को नया भरोसा दिया है, वहीं मऊ सीट पर अब एक बड़ा राजनीतिक ड्रामा शुरू हो चुका है। यह सीट लंबे समय तक मुख्तार अंसारी परिवार का गढ़ रही है, लेकिन अब्बास अंसारी की सजा और उनकी विधायकी रद्द होने के बाद मऊ में राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदलने वाले हैं। भाजपा के लिए यह एक बड़ा मौका है, वहीं सहयोगी सुभासपा और गठबंधन के बीच टिकट बंटवारे को लेकर कड़ा मुकाबला भी देखने को मिलेगा।
मऊ सीट पर 1996 से लगातार मुख्तार अंसारी परिवार का दबदबा रहा है। मुख्तार अंसारी ने पहली बार 1996 में इस सीट से चुनाव जीतकर अपनी सियासी जड़ें जमाईं। उसके बाद चाहे वे निर्दलीय रहें या बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े, उन्होंने मऊ सीट पर अपना कब्जा जमाए रखा। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी मुख्तार ने बसपा के टिकट पर जीत हासिल की थी। 2022 में मुख्तार अंसारी को सजा सुनाए जाने के बाद मऊ सीट से उनके बेटे अब्बास अंसारी को सुभासपा ने टिकट दिया। इसी सीट से अब्बास विधायक बने और परिवार का दबदबा बरकरार रखा। लेकिन अब्बास अंसारी को भी चुनाव के दौरान अधिकारियों को धमकाने के आरोप में कोर्ट ने दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई है, जिसके बाद उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द हो गई है।
अब मऊ सीट पर उपचुनाव होना तय हो गया है, और यह सीट सुभासपा के पास होने के बावजूद भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुकी है। सुभासपा जो कि ओमप्रकाश राजभर की अगुवाई वाली पार्टी है, ने 2022 में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर इस सीट से अब्बास को उतारा था। बाद में सुभासपा भाजपा के साथ सरकार में शामिल हो गई। लेकिन उपचुनाव में भाजपा इस सीट को लेकर अपनी दावेदारी पर कोई समझौता नहीं करेगी। इसीलिए भाजपा और सुभासपा के बीच टिकट को लेकर कड़ी खींचतान की भी संभावना बन रही है।
रामपुर और कुंदरकी में भाजपा ने उपचुनाव में मुस्लिम बहुल सीटों पर अपनी पकड़ बनाई है। रामपुर में आजम खां के प्रभाव के बावजूद भाजपा के आकाश सक्सेना ने जीत हासिल की, जो पहली बार गैर-मुस्लिम प्रत्याशी के तौर पर इस सीट से विजेता बने। कुंदरकी में भी भाजपा के रामवीर सिंह ने उपचुनाव जीत कर राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया। मऊ सीट पर भी भाजपा का इरादा इसी तरह अपनी पकड़ मजबूत करने का है। भाजपा की रणनीति यही है कि मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर उपचुनाव में भाग लेकर वहां अपना वर्चस्व कायम करे, जिससे आने वाले समय में मुस्लिम मतदाताओं के बीच उसकी पहुंच बढ़े।
मऊ में अंसारी परिवार की सियासत को लेकर सवाल अब जोर पकड़ने लगे हैं। 29 सालों से मऊ में अंसारी परिवार का दबदबा रहा है। लेकिन अब्बास अंसारी की सदस्यता रद्द होने के बाद चर्चा यह हो रही है कि क्या यह परिवार अब अपनी सियासी पकड़ खोने वाला है? मुख्तार अंसारी के अलावा उनके परिवार के अन्य सदस्य भी विवादों में फंसे हुए हैं। मुख्तार की पत्नी अफ्शां अंसारी कई मामलों में वांछित हैं और एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) की भी वांटेड लिस्ट में शामिल हैं। अब्बास अंसारी की पत्नी निकहत और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ भी कई कानूनी मामले चल रहे हैं। ऐसे में मऊ सीट से अब्बास के बाद परिवार के किसी सदस्य के चुनाव लड़ने की संभावनाएं बेहद कम हैं।
सियासत में अब नए चेहरे तलाशने की रणनीति चल रही है। अब्बास के छोटे भाई उमर अंसारी का नाम सामने आ रहा है। उमर मऊ विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय हैं और अब्बास की जेल यात्रा के बाद वह जनता के बीच अपनी मौजूदगी बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही गाजीपुर से सांसद अफजाल अंसारी की बेटी नुसरत अंसारी का नाम भी विकल्प के रूप में सामने आ रहा है। नुसरत पिछले लोकसभा चुनाव में सक्रिय रहीं और चुनाव प्रचार में भी मदद की थी। हालांकि वे अभी तक सीधे चुनाव मैदान में नहीं उतरी हैं, लेकिन उनके राजनीति में आने के संकेत मिल रहे हैं।
उपचुनाव की तैयारियां मऊ में जोरों पर हैं। ओमप्रकाश राजभर ने स्पष्ट कर दिया है कि अब्बास उनकी पार्टी के विधायक थे और उपचुनाव में भी वे ही उम्मीदवार उतारेंगे। वहीं, भाजपा ने वर्षों की मेहनत से बनाई गई अपनी जमीन को मऊ में राजभर के हवाले करने का इरादा नहीं दिखाया है। भाजपा की नजर मऊ सीट पर साफ तौर पर जीत हासिल करने की है। ऐसे में सुभासपा और भाजपा के बीच गठबंधन में खींचतान होना स्वाभाविक है।
उत्तर प्रदेश में भाजपा के 258 विधायक हैं, जबकि सुभासपा के छह विधायक हैं। गठबंधन में अन्य दलों जैसे अपना दल (स) के 13, आरएलडी के 9 और निषाद पार्टी के पांच विधायक हैं। अब्बास अंसारी की सदस्यता रद्द होने से NDA के समीकरणों पर असर पड़ा है, क्योंकि यह सीट पहले सुभासपा के कोटे में थी। अब उपचुनाव में सीट किसे मिलेगी, इस पर सियासी दांव-पेंच तेज होने वाले हैं। दोनों दलों की ओर से टिकट पाने वाले प्रत्याशी पर जीत का दबाव भी भारी रहेगा।
यह उपचुनाव केवल एक सीट का सवाल नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर भाजपा की सियासी पकड़ की परीक्षा भी है। रामपुर और कुंदरकी की तरह मऊ भी भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण मोर्चा बन गया है। अगर भाजपा यहां जीतती है तो यह साबित होगा कि पार्टी अब मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी अपनी रणनीतियों से सफलता हासिल कर रही है। वहीं, अगर सुभासपा या अंसारी परिवार समर्थित उम्मीदवार जीतते हैं, तो यह परिवार के लिए एक बड़ी राजनीतिक जीत होगी और मऊ में उनकी सत्ता बरकरार रहेगी।
मऊ सीट की यह लड़ाई उत्तर प्रदेश की आगामी राजनीतिक तस्वीर को भी प्रभावित करेगी। मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर भाजपा की उपस्थिति और गठबंधन की मजबूती से राज्य के राजनीतिक समीकरण गहराएंगे। मऊ का उपचुनाव एक ऐसे दौर में हो रहा है जब उत्तर प्रदेश की सियासत में हर सीट की अहमियत बढ़ गई है। इस उपचुनाव से न केवल सत्ता समीकरण तय होंगे, बल्कि प्रदेश की सांप्रदायिक और जातीय राजनीति की दिशा भी स्पष्ट होगी।
अंततः, मऊ विधानसभा सीट का उपचुनाव 2025 के उत्तर प्रदेश राजनीतिक परिदृश्य की सबसे बड़ी कड़ियों में से एक माना जाएगा। यह उपचुनाव अंसारी परिवार के दबदबे की परीक्षा भी होगा और भाजपा की मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में बढ़ती राजनीतिक उपस्थिति का भी आइना। दोनों दलों के बीच खींचतान, परिवार के अंदरूनी विवाद, गठबंधन का दबाव और सियासी रणनीतियों का यह संग्राम राज्य की राजनीति को नई दिशा देगा। इस लड़ाई में कौन जीतेगा और मऊ की जनता क्या फैसला करेगी, यह आने वाला समय ही बताएगा।