केरल में बीजेपी का पंचायत चुनाव बना विधानसभा की पहली सीढ़ी

केरल की राजनीति में इस समय भारतीय जनता पार्टी ने जो मोर्चा खोला है, वह केवल एक चुनावी अभ्यास नहीं बल्कि राज्य में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने की एक सुनियोजित और दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है। नवंबर में होने वाले पंचायत और नगर निकाय चुनावों को भाजपा ने आगामी विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल मान लिया है। यह चुनाव भाजपा के लिए न केवल एक संगठनात्मक परीक्षा है, बल्कि यह उस छवि को गढ़ने की कोशिश है जिसके जरिए पार्टी खुद को केरल की राजनीति में एक गंभीर और विश्वसनीय विकल्प के रूप में स्थापित करना चाहती है।

पार्टी ने इस बार स्थानीय निकाय चुनावों में 250 सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य महज एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि एक संकेत है कि भाजपा अब केरल की जमीनी राजनीति में गहराई से पैठ बनाना चाहती है। पिछले कुछ वर्षों में पार्टी को लोकसभा और विधानसभा चुनावों में केरल में आशातीत सफलता नहीं मिली है। 2021 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली थी, जबकि उससे पहले 2020 के स्थानीय निकाय चुनावों में उसे कुछ ग्राम पंचायतों और दो नगरपालिकाओं में जीत जरूर मिली थी। लेकिन यह जीत भी एक मजबूत राजनीतिक आधार में तब्दील नहीं हो सकी। यही कारण है कि इस बार भाजपा ने अपनी रणनीति में व्यापक बदलाव करते हुए एक ठोस और जमीनी योजना बनाई है।

भाजपा केरल में अब एक नए नेतृत्व के साथ मैदान में उतर रही है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद से पार्टी में एक नई ऊर्जा देखी जा रही है। चंद्रशेखर के आने के बाद संगठनात्मक ढांचे में बड़ा बदलाव किया गया है। पार्टी ने राज्य को कई संगठनात्मक जिलों में बांटकर 16 वरिष्ठ नेताओं को इन जिलों का प्रभारी बनाया है। इसके अलावा 1,400 पंचायत और नगरपालिका क्लस्टरों के लिए भी अलग-अलग नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह पहला मौका है जब भाजपा ने इतनी व्यापक स्तर पर अपने नेताओं को ज़िम्मेदारियां सौंपी हैं। इनकी भूमिका केवल चुनाव प्रबंधन तक सीमित नहीं है, बल्कि इन नेताओं को जमीनी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने और उन्हें चुनावी कार्यों के लिए तैयार करने की जिम्मेदारी भी दी गई है।

भाजपा ने इस बार जिस तरह से कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण को महत्व दिया है, वह भी उसकी गंभीर तैयारी को दर्शाता है। पार्टी ‘निशा शिल्पशाला’ नामक प्रशिक्षण शिविर चला रही है, जिसके तहत 1,400 स्थानों पर दो हफ्तों में एक लाख वार्डों में कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने की योजना है। इन शिविरों में कार्यकर्ताओं को बूथ स्तर की रणनीति, मतदाता सूची का विश्लेषण, जनसंपर्क और सोशल मीडिया जैसे विषयों पर प्रशिक्षित किया जाएगा। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद ये कार्यकर्ता बूथ स्तर पर वोटर लिस्ट तैयार करने और प्रभावी प्रचार की जिम्मेदारी संभालेंगे।

भाजपा ने बूथ स्तर पर अपने संगठन को मजबूत करने के लिए मई के पहले सप्ताह से ही अभियान शुरू कर दिया था। अब तक केरल के 25,000 से ज्यादा बूथों में से केवल 2,100 पर ही भाजपा की बूथ समितियां सक्रिय थीं। पार्टी का लक्ष्य अब इनकी संख्या बढ़ाकर 8,500 करना है और 90,000 बूथ कार्यकर्ता तैयार करना है। यह संख्या इस बात का संकेत है कि पार्टी अब केवल शहरी इलाकों या उच्च वर्ग के वोटरों पर निर्भर नहीं रहना चाहती, बल्कि वह गांव, कस्बों और हर समाज के अंदर तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है।

पार्टी ने इसके साथ ही एक और अभियान शुरू किया है ‘विकसित केरलम’। इस अभियान के जरिए भाजपा मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के नेतृत्व वाली एलडीएफ सरकार की प्रशासनिक विफलताओं और राज्य में आर्थिक बदहाली को मुद्दा बना रही है। पार्टी राज्य की आर्थिक स्थिति, बढ़ती बेरोजगारी और प्रशासनिक भ्रष्टाचार को उजागर कर जनता को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि अब एक वैकल्पिक राजनीतिक ताकत की जरूरत है, जो शासन में पारदर्शिता और विकास ला सके।

भाजपा ने सामाजिक समीकरणों को साधने के लिए भी इस बार विशेष रणनीति बनाई है। पार्टी ने अब तक 630 नए पदाधिकारियों की नियुक्ति की है, जिनमें 200 महिलाएं हैं, 225 पिछड़े वर्गों से हैं, 75 अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय से हैं, 30 ईसाई समुदाय से हैं और 70% पदाधिकारी युवा हैं। यह आंकड़ा इस बात को दर्शाता है कि भाजपा अब खुद को एक समावेशी पार्टी के रूप में प्रस्तुत कर रही है, जो हर वर्ग और हर समुदाय की भागीदारी चाहती है। खासतौर पर ईसाई और दलित समुदायों में पार्टी अपनी पैठ बढ़ाने पर ज़ोर दे रही है, क्योंकि यही वो वर्ग हैं जो अब तक परंपरागत रूप से कांग्रेस या वामपंथी दलों के साथ जुड़े रहे हैं।

पार्टी ने त्रिवेंद्रम, त्रिशूर और कोल्लम जैसे बड़े शहरी क्षेत्रों में भी खास रणनीति बनाई है। इन इलाकों में कांग्रेस और एलडीएफ की पकड़ मजबूत रही है, लेकिन भाजपा यहां सामाजिक और धार्मिक संगठनों के जरिए अपने प्रभाव को बढ़ा रही है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर भाजपा इन क्षेत्रों में स्थानीय निकायों में अच्छी स्थिति में आ सके, तो यह 2026 के विधानसभा चुनावों के लिए एक मजबूत संकेत होगा।

भाजपा भले ही अभी केरल में एकमात्र लोकसभा सीट ही जीत सकी हो, लेकिन पार्टी ने अब जिस तरह की जमीनी तैयारी शुरू की है, वह इस बात की ओर इशारा करता है कि भाजपा अब लंबी रणनीति पर काम कर रही है। यह चुनाव उसके लिए केवल सीट जीतने का नहीं, बल्कि संगठन को मजबूत करने, जनाधार बनाने और राजनीतिक विश्वसनीयता स्थापित करने का एक मौका है। 250 निकायों पर जीत का लक्ष्य केवल एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह उस राजनीतिक विस्तार की शुरुआत है, जिसके जरिए भाजपा दक्षिण भारत के इस मजबूत वामपंथी गढ़ को चुनौती देना चाहती है। अब देखना यह होगा कि भाजपा की यह मेहनत उसे कितनी सफलता दिला पाती है और क्या वह 2026 में केरल विधानसभा में खुद को एक मजबूत शक्ति के रूप में स्थापित कर पाएगी या नहीं।

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