हाईकोर्ट की फटकार: पुरुष पदोन्नत हो सकते हैं तो महिला क्यों नहीं

जयपुर. हाईकोर्ट ने महिला व्यायाताओं को प्रिंसिपल बनाने में भेदभाव पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अफसोस है पुरुषों को पदोन्नति मिल सकती है महिलाओं को नहीं। यह स्थिति असंवैधानिक है। अब समय आ गया है, मुय सचिव सुनिश्चित करें कि महिला, पुरुष या ट्रांसजेंडर सभी को समान अवसर मिले। राज्य सरकार ऐसी नीतियों-नियमों को तत्काल बदले, जो पुरुषों और महिलाओं में भेदभाव करते हों। इस मामले में सरकार को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को वरिष्ठता के अनुसार प्रिंसिपल पद पर पदोन्नति देने पर विचार किया जाए और उस तारीख से सभी लाभ दिए जाएं जब से जूनियर पुरुष व्यायाता को पदोन्नति दी गई।
न्यायाधीश अनूप कुमार ढंड ने इस मामले में 10 वर्ष पुरानी याचिका पर जयपुर निवासी रजनी भारद्वाज के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने समाज में व्याप्त लैंगिक भेदभाव पर अपना दर्द जाहिर करते हुए कहा कि एक समान दुनिया वह है, जहां पुरुषों और महिलाओं, लड़कों और लड़कियों को समान संसाधन व समान अवसर उपलब्ध हों। याचिकाकर्ता महिला व्यायाता ने राजस्थान लोक सेवा आयोग की ओर से आयोजित परीक्षा में मेरिट में चौथा नबर था। उन्हें पूरे करियर में लड़कों के संस्थानों में अध्यापन की जिमेदारी दी गई। जब प्रिंसिपल पद पर पदोन्नति के लिए वरिष्ठता सूची तैयार की गई तो योग्यता को अनदेखा कर पुरुष व्यायाता नीरज कुमार शर्मा (मेरिट नंबर 8) और अशोक कुमार जोशी (मेरिट नंबर 31) को पदोन्नति दी गई। राजस्थान सिविल सेवा अपीलीय न्यायाधिकरण ने याचिकाकर्ता की अपील को खारिज कर दिया।
पदोन्नति पर विचार का मौलिक अधिकार
कोर्ट ने कहा कि भले पदोन्नति मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन पदोन्नति पर विचार किए जाने का हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। नियुक्ति-पदोन्नति के मामले में पुरुष व महिला के बीच भेदभाव उचित नहीं है। राजस्थान शैक्षिक सेवा नियमों में भी पुरुष व महिला व्यायाता के बीच भेद नहीं किया गया है। इसके अलावा किसी महिला को केवल उसके लिंग के आधार पर खामियाजा उठाने नहीं दिया जा सकता, खासकर जब वह पुरुष उमीदवारों से अधिक योग्य हो।