कांग्रेस की ‘गायब’ पोस्ट डिलीट, बीजेपी के हमले के बाद पार्टी का कन्फ्यूजन हुआ बेनकाब

कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में एक विवादित सोशल मीडिया पोस्ट डिलीट किया, जो पहलगाम आतंकी हमले के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने के लिए जारी किया गया था। यह पोस्ट सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पहले ट्विटर) पर कांग्रेस के आधिकारिक हैंडल से साझा किया गया था, जिसमें मोदी के एक बिना सिर वाली तस्वीर के साथ “जिम्मेदारी के समय गायब” जैसा संदेश लिखा गया था। इस पोस्ट का मकसद मोदी की उस समय अनुपस्थिति को लेकर कांग्रेस का विरोध जताना था, जब प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री सर्वदलीय बैठक की अध्यक्षता नहीं की थी। यह एक प्रतीकात्मक रूप से तीखा हमला था, जिसका उद्देश्य मोदी पर राजनीतिक जिम्मेदारी से बचने का आरोप लगाना था। लेकिन जैसे ही बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने कांग्रेस के इस पोस्ट पर तीखी प्रतिक्रिया दी और इसे मुस्लिम वोट बैंक को लुभाने की छिपी हुई कोशिश करार दिया, कांग्रेस को मजबूरन इस पोस्ट को डिलीट करना पड़ा। इस घटनाक्रम ने कई सवाल उठाए हैं, जिनके उत्तर कांग्रेस के भीतर के निर्णयों पर संदेह पैदा करते हैं।
कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम ने मोदी की सर्वदलीय बैठक में अनुपस्थिति को लेकर इसे एक राजनीतिक बयान के रूप में प्रस्तुत किया था। पार्टी की रणनीति यह थी कि यह पोस्ट मोदी की गैरमौजूदगी को प्रमुखता से उजागर करने का एक तरीका हो, क्योंकि मोदी उस दिन बिहार के मधुबनी में रैली कर रहे थे, जबकि बैठक की अध्यक्षता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने की थी। कांग्रेस के इस पोस्ट के जरिए यह संदेश देने की कोशिश की गई कि प्रधानमंत्री जिम्मेदारी से बच रहे हैं, जबकि एक ऐसी बैठक हो रही थी जिसमें देश के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होनी थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने इस पर अपनी असहमति जताई थी, जिसमें पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया शामिल थे। सिद्धारमैया ने यहां तक कह दिया था कि अगर मोदी बैठक में नहीं आए, तो यह प्रधानमंत्री की निष्ठा पर सवाल खड़ा करता है। इसके बाद कांग्रेस के सोशल मीडिया विभाग ने एक “गायब” पोस्टर डिज़ाइन किया, जिसे बाद में कांग्रेस के आधिकारिक हैंडल से पोस्ट कर दिया गया।
लेकिन जैसे ही इस पोस्ट को लेकर बीजेपी ने प्रतिक्रिया दी, कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम ने जल्दी से इसे डिलीट कर दिया। बीजेपी के नेताओं ने इसे मुस्लिम वोट बैंक को आकर्षित करने की एक कोशिश बताया, और साथ ही इस पोस्ट पर धार्मिक उकसावे का आरोप भी लगाया। बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि यह पोस्ट एक राजनीतिक बयान से कहीं ज्यादा था, बल्कि एक छिपा हुआ उकसावा था। उनका कहना था कि कांग्रेस की यह कोशिश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कटघरे में खड़ा करना और भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एक नया विवाद उत्पन्न करना था। बीजेपी के हमले के बाद कांग्रेस ने पोस्ट डिलीट कर दी, लेकिन यह भी सवाल उठता है कि अगर यह पोस्ट गलत था, तो इसे डिलीट क्यों किया गया? क्या कांग्रेस पार्टी ने इसका सही तरीके से मूल्यांकन नहीं किया था?
कांग्रेस के इस कदम से पार्टी की सोशल मीडिया रणनीति पर सवाल खड़े हुए हैं। जब कांग्रेस ने पोस्ट जारी किया था, तो यह स्पष्ट था कि पार्टी एक राजनीतिक मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश कर रही थी। लेकिन जैसे ही बीजेपी ने आक्रामक तरीके से प्रतिक्रिया दी, कांग्रेस ने इसे बिना किसी स्पष्ट स्पष्टीकरण के हटा लिया। यह कदम कांग्रेस के अंदर के निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह पैदा करता है। कांग्रेस को यह समझना चाहिए था कि किसी भी राजनीतिक हमले के बाद, अगर वह अपने रुख पर कायम रहती है, तो उसे किसी भी दबाव में अपने कदम पीछे नहीं खींचने चाहिए। पोस्ट डिलीट करना न केवल कांग्रेस की रणनीति के प्रति संदेह पैदा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि पार्टी अपनी स्थिति पर मजबूती से खड़ी नहीं हो पा रही थी।
कांग्रेस पार्टी के इस कन्फ्यूजन से यह भी दिखता है कि पार्टी के अंदर एक गहरी दुविधा है। हाल ही में इसी तरह का एक कन्फ्यूजन गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले भी देखने को मिला था। 2017 के गुजरात चुनावों से पहले कांग्रेस ने एक कैंपेन चलाया था जिसका नाम था ‘विकास गांडो थयो छे’, यह कैंपेन शुरुआत में काफी हिट हुआ था। लेकिन राहुल गांधी के कहने पर इसे वापस ले लिया गया। राहुल गांधी का तर्क था कि यह मोदी के खिलाफ नहीं बल्कि गुजरात के विकास की दिशा में सवाल उठाने वाला था। हालांकि, इस कैंपेन को रोकने के बाद भी बीजेपी ने उस पर हमला बोलते हुए एक नई रणनीति अपनाई, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने खुद कहा था, ‘हूं विकास छुं, हूं गुजरात छुं’ यानी, मैं विकास हूं, मैं गुजरात हूं। इस उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि कांग्रेस को अपनी रणनीतियों पर पूरी तरह से स्पष्ट और मजबूत स्थिति बनाए रखनी चाहिए थी।
कांग्रेस का यह कन्फ्यूजन और बयानबाजी में बदलाव कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी राहुल गांधी ने कई बार पार्टी की रणनीति में बदलाव किया है। 2019 के चुनावों में उन्होंने लगातार मोदी सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत हमले किए थे। उन्होंने “चौकीदार चोर है” जैसे बयान दिए, और इस कारण पार्टी को कई बार आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। इसके बाद भी राहुल गांधी ने पार्टी नेतृत्व में बदलाव की कोशिश की थी, और उन्होंने खुद इस्तीफा देने का फैसला किया था। हालांकि, कांग्रेस को हमेशा सलाह दी जाती रही है कि मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना की जाए, लेकिन निजी हमले न किए जाएं, क्योंकि इससे पार्टी का नुकसान हो सकता है। लेकिन राहुल गांधी का बार-बार निजी हमले करना और बीजेपी के खिलाफ किसी भी स्थिति में खड़े होने की कोशिश करना पार्टी के लिए उलझन पैदा करता है।
कांग्रेस के कन्फ्यूजन का एक और उदाहरण 2020 में देखने को मिला था, जब चीन के मुद्दे पर पार्टी को शरद पवार की सलाह सुननी पड़ी। शरद पवार ने कांग्रेस को सलाह दी थी कि चीन के मुद्दे पर देश के पक्ष में खड़ा होना चाहिए, न कि अपनी राजनीति चमकाने के लिए इसका इस्तेमाल करना चाहिए। लेकिन राहुल गांधी का दृष्टिकोण इस पर अलग था और उन्होंने लगातार मोदी सरकार पर आरोप लगाए। इससे यह साफ होता है कि कांग्रेस को अपनी राजनीतिक रणनीति पर एक स्थिर और मजबूत दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
कांग्रेस का यह कन्फ्यूजन इसलिए भी गंभीर है क्योंकि यह दर्शाता है कि पार्टी को अपनी दिशा और रणनीति में स्थिरता की कमी है। किसी भी राजनीतिक दल को अपनी रणनीतियों और कार्रवाइयों में स्पष्टता और दृढ़ता की आवश्यकता होती है। कांग्रेस को यह समझना होगा कि यदि उसे कोई स्टैंड लेना है, तो उसे उसे पूरे आत्मविश्वास के साथ बनाए रखना चाहिए। कभी भी राजनीतिक लाभ के लिए पीछे हटना या अपनी रणनीति में बदलाव करना पार्टी की छवि को कमजोर कर सकता है।
कांग्रेस की सोशल मीडिया रणनीति में यह कन्फ्यूजन और तेज प्रतिक्रिया देने की प्रवृत्ति पार्टी के भीतर की असमंजसता को भी दर्शाता है। यदि कांग्रेस को सही दिशा में बढ़ना है, तो उसे अपनी रणनीतियों को बेहतर तरीके से समझने और लागू करने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में ऐसी गलती से बचा जा सके। इस तरह के उलझे हुए और दोहरे रुख पार्टी के नेतृत्व को मुश्किल में डाल सकते हैं और जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता पर असर डाल सकते हैं।
कुल मिलाकर, कांग्रेस को यह समझने की आवश्यकता है कि राजनीतिक संवाद में स्पष्टता और स्थिरता की जरूरत है। जब वह कोई कदम उठाती है, तो उसे अपनी स्थिति पर दृढ़ रहना चाहिए और किसी भी दबाव में अपना निर्णय बदलने से बचना चाहिए।