हलाल सर्टिफिकेशन विवाद धर्म, व्यापार और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच यूपी का संघर्ष

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हलाल सर्टिफिकेशन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। योगी का दावा है कि फर्जी हलाल टैग से आतंकवाद, लव जिहाद और धर्मांतरण के लिए पैसे जुटाए जा रहे थे। यह विवाद व्यापार, धार्मिक विश्वास और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर गहन बहस खड़ी कर रहा है।

अजय कुमार, वरिष्ठ पत्रकार

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक बार फिर अपनी सख्ती का परिचय दिया है। गोरखपुर में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने हलाल सर्टिफिकेशन को लेकर ऐसा बयान दिया, जिसने पूरे देश की राजनीति को हिला दिया। योगी ने साफ कहा कि यूपी में हलाल सर्टिफिकेशन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया है। उनका दावा है कि इस नाम पर न सिर्फ लोगों को गुमराह किया जा रहा था, बल्कि इससे जुटाए गए पैसे का इस्तेमाल आतंकवाद, लव जिहाद और धर्मांतरण जैसी गतिविधियों में हो रहा था। हर साल करीब 25 हजार करोड़ रुपये का लेन-देन होने का खुलासा करते हुए उन्होंने इसे आर्थिक शोषण का बड़ा जरिया बताया। यह बयान सुनते ही विपक्ष के होश उड़ गए। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने इसे धार्मिक ध्रुवीकरण का हथियार करार दिया, तो विश्व हिंदू परिषद ने खुलकर समर्थन किया। लेकिन सवाल यह है कि आखिर हलाल सर्टिफिकेशन क्या बला है, जो इतना विवाद खड़ा कर रहा है?

सबसे पहले तो समझिए, हलाल शब्द का मतलब क्या है। अरबी भाषा से लिया गया यह शब्द ‘वैध’ या ‘अनुमत’ का प्रतीक है। इस्लाम में खाने-पीने की चीजों को दो हिस्सों में बांटा गया है- हलाल यानी जो खाना-पीना जायज हो, और हराम यानी जो मना हो। हराम में सुअर का मांस, शराब, या ऐसी चीजें आती हैं जो इस्लामी नियमों के खिलाफ हों। हलाल सर्टिफिकेशन का काम यही है कि यह गारंटी दे कि उत्पाद में कोई हराम तत्व नहीं है। मसलन, अगर कोई मांसाहारी उत्पाद है, तो जानवर की कटाई इस्लामी तरीके से होनी चाहिए- तेज चाकू से गले पर एक वार, और अल्लाह का नाम लेना। वेज उत्पादों के लिए भी यह लागू होता है, जैसे कोई आइसक्रीम में जेलाटिन न हो जो सुअर से बनी हो। योगी ने खुद उदाहरण दिया कि साबुन, कपड़े, यहां तक कि माचिस तक को हलाल प्रमाणित करने का धंधा चल रहा था। माचिस तो झटके में जलती है, फिर हलाल-हराम का क्या लेना-देना? लेकिन यह सर्टिफिकेशन मुस्लिम समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर मध्य पूर्व के देशों में निर्यात के लिए। वहां बिना हलाल टैग के सामान बिक ही नहीं पाता।

अब बात करते हैं भारत में इसकी प्रक्रिया की। देश में हलाल सर्टिफिकेशन का कोई सरकारी ढांचा नहीं है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) सिर्फ खाद्य सुरक्षा के मानक तय करता है, हलाल सर्टिफिकेट नहीं देता। यह काम निजी संस्थाओं के हाथ में है। प्रमुख एजेंसियां हैं- हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट, और जैन हलाल सर्टिफिकेशन। कोई कंपनी चाहे तो इनसे आवेदन करे। प्रक्रिया सरल लगती है: उत्पाद की सामग्री, निर्माण प्रक्रिया और कटाई विधि की जांच होती है। अगर सब ठीक, तो सर्टिफिकेट मिल जाता है, जो एक-दो साल के लिए वैलिड होता है। फीस भी ली जाती है- छोटी कंपनियों के लिए कुछ हजार, बड़ी के लिए लाखों रुपये। लेकिन यहीं विवाद की जड़ है। कई रिपोर्ट्स में सामने आया है कि बिना ठीक से जांच के पैसे लेकर सर्टिफिकेट जारी हो जाते हैं। उत्तर प्रदेश में तो ऐसे कई केस पकड़े गए, जहां फर्जी हलाल टैग से उपभोक्ताओं को ठगा गया। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर साल हजारों उत्पाद हलाल सर्टिफाइड होते हैं, जिनमें से ज्यादातर निर्यात के लिए। लेकिन योगी सरकार का कहना है कि यह प्रक्रिया अपारदर्शी है और इसमें विदेशी फंडिंग का खेल चल रहा है।

योगी का यह फैसला अचानक नहीं आया। बलरामपुर जिले से जुड़ा एक बड़ा खुलासा इसका ट्रिगर बना। वहां जलालुद्दीन उर्फ छांगुर नाम का शख्स पकड़ा गया, जो मतांतरण के बड़े नेटवर्क का मास्टरमाइंड था। पुलिस जांच में पता चला कि छांगुर विदेशों से फंड इकट्ठा कर रहा था, और इसका एक हिस्सा हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर आता था। योगी ने गोरखपुर में कहा, छांगुर जैसे लोग राजनीतिक इस्लाम को बढ़ावा दे रहे थे। हमने उसे जेल भेज दिया। बलरामपुर मामले में करोड़ों रुपये का काला खेल सामने आया, जहां हलाल फंड से धर्मांतरण के कैंप चलाए जाते थे। यह सिर्फ एक उदाहरण है। सरकार का दावा है कि हलाल सर्टिफिकेशन से जुटे पैसे का एक हिस्सा एंटी-नेशनल एक्टिविटीज में लगता है। 25 हजार करोड़ का आंकड़ा भी इसी जांच से निकला। लेकिन क्या यह सिर्फ यूपी की बात है? नहीं, पूरे देश में हलाल मार्केट तेजी से बढ़ रहा है। 2023 में भारत का हलाल निर्यात 5 लाख करोड़ के पार था, जिसमें मसाले, मीट और कॉस्मेटिक्स शामिल हैं। मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देश बड़े खरीदार हैं। लेकिन भारत में कोई केंद्रीय नियामक न होने से फर्जीवाड़ा आसान हो जाता है।

अब सियासत का दौर। योगी के बयान ने विपक्ष को मौका दे दिया। कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने कहा, अगर हलाल सर्टिफिकेट गलत है, तो पूरे देश में क्यों नहीं बैन। समाजवादी पार्टी के सुनील साजन ने इसे धर्म की आड़ में बंटवारे की साजिश बताया। संभल के सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने तो सीएम से सबूत मांगा। उन्होंने कहा, सरकार को साबित करना होगा कि हलाल से आतंकवाद जुड़ा है। यह फैसला निर्यात को नुकसान पहुंचाएगा। बर्क का तर्क था कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में ऐसा प्रतिबंध असंवैधानिक है। वहीं, नेशनल कांफ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला ने इसे सांप्रदायिक राजनीति करार दिया। सपा ने यह भी कहा कि बिहार चुनाव से पहले यह बयान ध्रुवीकरण के लिए है। लेकिन योगी के समर्थक चुप नहीं बैठे। वीएचपी के विनोद बंसल ने कहा, हलाल के नाम पर एंटी-नेशनल गतिविधियां बढ़ रही थीं। यह सही कदम है। मुस्लिम समुदाय में भी दो राय हैं। मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने माना कि शरीयत में हलाल सर्टिफिकेट का कोई विशेष दर्जा नहीं, लेकिन आतंकवाद के लिंक से असहमत थे। वहीं, मौलाना साजिद रशीदी ने इसे संविधान विरोधी बताया। एक दिलचस्प बात मेरठ के व्यापारियों की। उन्होंने कहा कि हलाल टैग से उनका कारोबार बढ़ा था, अब प्रतिबंध से नुकसान होगा।

इस विवाद की गहराई समझने के लिए आर्थिक पहलू देखिए। हलाल सर्टिफिकेशन से जुड़ा बाजार वैश्विक स्तर पर 2 ट्रिलियन डॉलर का है। भारत इसमें बड़ा खिलाड़ी है, लेकिन यूपी जैसे राज्य में प्रतिबंध से छोटे निर्यातकों को झटका लगेगा। मसलन, लखनऊ और कानपुर के मसाला व्यापारी मध्य पूर्व भेजते हैं। बिना हलाल टैग के वहां सामान रिजेक्ट हो सकता है। सरकार का पक्ष है कि फर्जी सर्टिफिकेशन से उपभोक्ता ठगे जाते हैं। एक सर्वे के मुताबिक, 30 फीसद हलाल उत्पादों में अनियमितताएं पाई गईं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहस है। यूएई और सऊदी जैसे देश सख्त हलाल नियम लागू करते हैं, लेकिन भारत जैसा उदार नहीं। योगी ने अपील की कि सामान खरीदते समय हलाल टैग न देखें, बल्कि एफएसएसएआई का लोगो चेक करें। लेकिन क्या यह व्यावहारिक है? मुस्लिम उपभोक्ता के लिए हलाल विश्वास का सवाल है।

इस फैसले के पीछे योगी सरकार की बड़ी रणनीति नजर आती है। पिछले कुछ सालों में यूपी में लव जिहाद और धर्मांतरण के कई केस पकड़े गए। छांगुर केस ने इसे पुख्ता सबूत दिया। पुलिस रिपोर्ट्स बताती हैं कि विदेशी एनजीओ हलाल फंड के जरिए भारत में सक्रिय हैं। लेकिन विपक्ष का कहना है कि बिना ठोस प्रमाण के ऐसा बैन व्यापार को बर्बाद करेगा। सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंच सकता है। फिलहाल, यूपी के दुकानों से हलाल टैग हटाने के आदेश जारी हो चुके हैं। व्यापारियों को नोटिस मिल रहे हैं। एक व्यापारी ने बताया, हम तो बस बाजार के हिसाब से चले। अब क्या करें।

बहरहाल, यह विवाद सिर्फ हलाल का नहीं, बल्कि विश्वास और पारदर्शिता का है। योगी सरकार ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ दिया, तो विपक्ष आर्थिक स्वतंत्रता का मुद्दा बना रहा है। आम आदमी के लिए संदेश साफ है- उत्पाद चुनते समय लेबल पढ़ें, लेकिन धोखे से बचें। क्या यह फैसला पूरे देश में फैलेगा? या सिर्फ यूपी तक सीमित रहेगा? समय बताएगा। लेकिन इतना तय है कि इस बहस ने हलाल की सच्चाई को सबके सामने ला दिया।

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