गुजरात में बीजेपी की सियासी सर्जरी 2027 की जंग से पहले कैबिनेट में बड़ा बदलाव
गुजरात में भूपेंद्र पटेल की नई कैबिनेट ने शपथ ली, जिसमें 19 नए चेहरे और सूरत के युवा नेता हर्ष संघवी को डिप्टी सीएम बनाया गया। बीजेपी ने 2027 विधानसभा चुनाव से पहले बड़े फेरबदल से विपक्ष की बढ़ती चुनौती को टक्कर देने की रणनीति अपनाई है। जानिए कैबिनेट के जातीय, क्षेत्रीय और सामाजिक समीकरण, नए मंत्रियों की भूमिका और राजनीतिक विशेषज्ञों की राय।


गुजरात की राजनीति में शुक्रवार का दिन यादगार बन गया। गांधीनगर के महात्मा मंदिर में धूमधाम से भूपेंद्र पटेल सरकार की नई कैबिनेट ने शपथ ली। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को छोड़कर पुरानी कैबिनेट के सभी 16 मंत्रियों ने गुरुवार को इस्तीफा दे दिया था। अब नई टीम में कुल 26 सदस्य हैं, जिसमें सिर्फ छह पुराने चेहरे लौटे हैं और 19 नए नाम जुड़े हैं। सबसे बड़ा सरप्राइज तो सूरत के युवा नेता हर्ष संघवी का डिप्टी सीएम बनना। चार साल बाद गुजरात में फिर डिप्टी सीएम की कुर्सी पर कोई बैठा है। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और महासचिव सुनील बंसल जैसे बड़े नेता इस शपथ ग्रहण में शरीक हुए। लेकिन सवाल यह है कि आखिर बीजेपी को गुजरात जैसे अपने सबसे मजबूत किले में यह सियासी सर्जरी क्यों करनी पड़ी? क्या यह 2027 के विधानसभा चुनाव से दो साल पहले विपक्ष के बढ़ते दबाव को रोकने की चाल है? आइए, इसकी गहराई में उतरते हैं और समझते हैं कि यह बदलाव गुजरात की सियासत को कैसे नया रंग देगा।
गुजरात बीजेपी की ‘प्रयोगशाला’ तो हमेशा से मशहूर रही है। यहां पार्टी ने पिछले 30 सालों में कई ऐसे दांव चले हैं, जो विपक्ष को हक्का-बक्का कर देते हैं। याद कीजिए 2021 का वह दौर। तब भी चुनाव से ठीक एक साल पहले बीजेपी ने तत्कालीन सीएम विजय रूपाणी समेत पूरी कैबिनेट को हटा दिया था। पुराने चेहरों को हटाकर नए नाम लाए गए। नतीजा? 2022 के चुनाव में बीजेपी ने 182 सीटों वाली विधानसभा में 156 सीटें झटक लीं। इतिहास रच दिया। अब वही फॉर्मूला दोहराया जा रहा है। लेकिन इस बार थोड़ा ट्विस्ट के साथ। सीएम भूपेंद्र पटेल को जस का तस रखा गया है। सिर्फ मंत्रिमंडल में फेरबदल। पुरानी कैबिनेट में 17 सदस्य थे, अब बढ़कर 26 हो गए। इसमें आठ कैबिनेट मंत्री, चार स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री और बाकी राज्य मंत्री हैं। संविधान के मुताबिक गुजरात में अधिकतम 27 मंत्री हो सकते हैं, तो यह लगभग पूरी क्षमता पर पहुंच गई। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह ‘नो रिपीट’ पॉलिसी का नया संस्करण है। पुराने चेहरों को हटाकर नई ऊर्जा लानी है, ताकि सत्ता विरोधी लहर न फैले।
नई कैबिनेट की झलक देखिए तो साफ पता चलता है कि बीजेपी ने जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों पर खास नजर रखी है। छह पुराने मंत्रियों को वापसी मिली है। इनमें ऋषिकेश पटेल, कनुभाई देसाई, कुंवरजी बावलिया जैसे नाम हैं, जो 2022 वाली कैबिनेट में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। प्रफुल्ल पानसेरिया और परसोत्तम सोलंकी जैसे राज्य मंत्रियों को भी बरकरार रखा गया। लेकिन सबसे चमकदार प्रमोशन हर्ष संघवी का। वह पहले गृह राज्य मंत्री थे, अब डिप्टी सीएम। सूरत से आने वाले संघवी सिर्फ 43 साल के हैं। युवा, पढ़े-लिखे और सोशल मीडिया पर एक्टिव। बीजेपी उन्हें पार्टी का ‘फ्यूचर फेस’ मानती है। गुजरात के इतिहास में वह छठे डिप्टी सीएम हैं। आखिरी बार नितिन पटेल इस पद पर थे। संघवी का यह प्रमोशन सूरत जैसे बड़े शहर को मजबूत संदेश देता है।
अब बात नए चेहरों की। 19 विधायकों को पहली बार मंत्री बनाया गया। इनमें क्रिकेटर रवींद्र जडेजा की पत्नी रिवाबा जडेजा का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है। जामनगर उत्तर से विधायक रिवाबा को राज्य मंत्री बनाया गया। वह बीजेपी महिला मोर्चा की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रह चुकी हैं। जडेजा परिवार का यह सियासी कदम गुजरात के युवाओं और महिलाओं को जोड़ने की कोशिश लगता है। इसके अलावा अर्जुनभाई मोढवाडिया (पोरबंदर से), त्रिकम छांगा (द्वारका से), स्वरूपजी ठाकोर (महेसाणा से) जैसे नाम हैं। सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्र से नौ मंत्री चुने गए। यह कोई संयोग नहीं। हाल ही में सौराष्ट्र की विसावदार सीट पर AAP के गोपाल इटालिया ने बीजेपी को हरा दिया था। कच्छ में भी विपक्ष की हलचल बढ़ रही है। बीजेपी ने इन क्षेत्रों को मजबूत करने के लिए स्थानीय चेहरों को तरजीह दी। आदिवासी बेल्ट पर भी फोकस। गुजरात में 27 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं और उनका प्रभाव 40 सीटों पर है। नए मंत्रियों में पीसी बरंड, दर्शना वाघेला जैसे आदिवासी नेता हैं। पटेल समाज से आठ मंत्री, ओबीसी से आठ, एससी से तीन और एसटी से चार। महिलाओं को तीन जगहें मिलीं- रिवाबा जडेजा, रीवाबा जाडेजा (दूसरी), मनीषा वकील। यह सामाजिक समावेशन की मिसाल है। लेकिन हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर जैसे युवा चेहरों को जगह न मिलना पार्टी के अंदर चर्चा का विषय बन गया। हार्दिक पाटीदार आरक्षण आंदोलन से निकले हैं, अल्पेश ठाकोर समाज के नेता। दोनों 2022 में बीजेपी जॉइन करके विधायक बने, लेकिन कैबिनेट से बाहर। क्या यह पार्टी का सावधानी भरा कदम है, ताकि विवाद न बढ़े?
यह फेरबदल सिर्फ नाम बदलने का खेल नहीं। इसके पीछे गहरी रणनीति छिपी है। गुजरात पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह का गढ़ है। 1995 से बीजेपी यहां सत्ता में काबिज है। तीन दशक से मोदी के नाम पर चुनाव जीतते आ रहे हैं। 2027 का चुनाव सिर्फ बीजेपी की साख का नहीं, बल्कि मोदी की प्रतिष्ठा का भी इम्तिहान होगा। पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। हाल के दिनों में बीजेपी को झटके लगे हैं। 2024 लोकसभा में बनासकांठा सीट हारी। फिर विसावदार बाय-इलेक्शन में AAP ने कमाल कर दिया। कांग्रेस भी जाग चुकी है। राहुल गांधी ने पिछले छह महीनों में पांच बार गुजरात का दौरा किया। उन्होंने जिला अध्यक्षों से कहा, ‘मैं आपके लिए बैठा हूं। हर विधानसभा क्षेत्र जाऊंगा।’ संसद में भी चिल्लाए, ‘गुजरात में बीजेपी को हराएंगे।’ AAP दिल्ली की हार के बाद गुजरात पर फोकस कर रही है। केजरीवाल की टीम यहां शिक्षा-स्वास्थ्य मॉडल बेच रही है। बीजेपी को लग रहा है कि विपक्ष का गठजोड़ बन सकता है। ऐसे में कैबिनेट सर्जरी से नई इमेज बनानी है। पुराने मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे, उम्रदराज चेहरे अक्सर सुर्खियों से दूर रहते। अब युवा और नए नाम लाकर सरकार को फ्रेश लुक दिया।
2026 के नगर निगम चुनाव भी नजर में हैं। अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत, राजकोट जैसे शहरों में वोटिंग होगी। बीजेपी शहरी इलाकों में मजबूत है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में चुनौती। हाल में संगठन में भी बदलाव। सीआर पाटिल को हटाकर जगदीश विश्वकर्मा प्रदेश अध्यक्ष बने। विश्वकर्मा पहले सहकारिता मंत्री थे। यह फेरबदल संगठन को सरकार से जोड़ने की चाल है। राजनीतिक विश्लेषक विद्युत जोशी कहते हैं, ‘बीजेपी सत्ता विरोधी लहर को तोड़ना चाहती है। नए चेहरों से जनता को लगेगा कि सरकार काम कर रही है।’ राजपूत समाज में नाराजगी थी, उसे साधने के लिए मोढवाडिया जैसे नाम लाए। सौराष्ट्र में AAP का असर रोकने को स्थानीय नेता। आदिवासी बेल्ट में कांग्रेस की घुसपैठ रोकने को डिप्टी सीएम जैसा प्रयोग। कुल मिलाकर, यह सोशल इंजीनियरिंग का मास्टरस्ट्रोक है।
लेकिन क्या यह प्रयोग सफल होगा? विपक्ष को लग रहा है कि बीजेपी घबरा गई है। AAP के गोपाल इटालिया ने कहा, ‘यह फेरबदल तो बस दिखावा है। असली बदलाव जनता लाएगी।’ कांग्रेस के शक्तिसिंह गोहिल बोले, ‘बीजेपी का किला लड़खड़ा रहा है। राहुल जी की मेहनत रंग लाएगी।’ हार्दिक पटेल जैसे युवाओं को नजरअंदाज करना पार्टी के लिए जोखिम हो सकता है। पटेल समाज उनका समर्थन करता है। अगर वे नाराज हुए, तो वोट शिफ्ट हो सकता है। फिर, महिलाओं को सिर्फ तीन जगहें- क्या यह काफी है? गुजरात में महिला वोटरों का रोल बढ़ रहा है। रिवाबा जडेजा का नाम तो चलेगा, लेकिन बाकी महिलाओं को कितना मौका मिलेगा, यह देखना है।
2027 के चुनाव अब साफ नजर आ रहे हैं। दो साल पहले फेरबदल से बीजेपी ने 156 सीटें जीतीं। क्या इतिहास दोहराएगा? नई कैबिनेट को साबित करना होगा कि यह बदलाव सिर्फ नामों का नहीं, बल्कि काम का है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे मुद्दों पर फोकस। गुजरात की जनता सतर्क है। वह मोदी-शाह के नाम पर वोट देती है, लेकिन स्थानीय नेताओं के काम पर सवाल उठाती है। अगर नई टीम ने जल्दी रिजल्ट दिए, तो बीजेपी का किला और मजबूत। वरना, विपक्ष को मौका। फिलहाल, यह सियासी सर्जरी बीजेपी को नई सांस देगी। लेकिन असली टेस्ट तो आने वाले दिनों में। गुजरात की धरती पर राजनीति हमेशा रोमांचक रही है। अब देखिए, यह नया अध्याय कैसा लिखा जाता है।
				
					


