फडणवीस-राज ठाकरे की गुप्त मुलाकात ने तोड़ा ठाकरे बंधुओं के पुनर्मिलन का सपना

अजय कुमार,वरिष्ठ पत्रकार

10 जून से पहले महाराष्ट्र की राजनीति में दो बड़े सियासी मेलजोल की जबरदस्त चर्चा थी। पहला, शरद पवार और अजित पवार के बीच एनसीपी के दोनों गुटों के विलय की संभावना और दूसरा, शिवसेना के दो चचेरे भाइयों उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के एक साथ आने की अटकलें। जहां पवार परिवार की ओर से एकता के संकेत लगातार मिल रहे थे, वहीं ठाकरे बंधुओं की दूरियों को पाटने की संभावनाएं भी सार्वजनिक मंचों से झलकने लगी थीं। लेकिन इस संभावित गठबंधन की हवा को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की एक अप्रत्याशित मुलाकात ने पलट कर रख दिया।एनसीपी की बात करें तो 10 जून को पुणे में शरद पवार और अजित पवार, दोनों ने एनसीपी के स्थापना दिवस पर अलग-अलग कार्यक्रम रखे। दोनों ओर से पार्टी और परिवार के एकजुट होने के संकेत दिए गए, लेकिन अब तक ऐसा कोई आधिकारिक एलान नहीं हुआ जिससे दोनों धड़ों के एक होने की पुष्टि हो सके। इससे पहले जनवरी 2025 में अजित पवार की मां आशा पवार ने भगवान विट्ठल से परिवार के पुनर्मिलन की प्रार्थना की थी, जिससे एक समय लगा था कि अब एनसीपी फिर एक होगी। सुप्रिया सुले के विदेश दौरे से लौटने के बाद भी यह अपेक्षा थी कि कोई निर्णायक फैसला होगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस स्थिति ने संकेतों को अटकलों में बदल दिया है।

एनसीपी की अंदरूनी उठा-पटक के साथ ही ठाकरे बंधुओं राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के संभावित मेल की खबरों ने भी खूब सुर्खियां बटोरीं। लोकसभा चुनावों में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद यह चर्चा और तेज हो गई। उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) भले ही महाविकास आघाड़ी में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी हो, लेकिन पूरे चुनावी नतीजों ने संकेत दिया कि गठबंधन को विपक्ष की भूमिका में ही रहना होगा। दूसरी तरफ, राज ठाकरे की एमएनएस का खाता भी नहीं खुला और उनके बेटे अमित ठाकरे तक चुनाव हार गए। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों की निगाहें इस पर टिकी थीं कि क्या अब दोनों ठाकरे भाई एकजुट होंगे?दिसंबर 2024 में एक शादी समारोह में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की भाभी रश्मि ठाकरे के बीच हुई सौहार्द्रपूर्ण बातचीत ने इस संभावना को और बल दिया। इसी समारोह में राज ठाकरे ने रश्मि ठाकरे की मां से भी मुलाकात की। बाद में महेश मांजरेकर के पॉडकास्ट में राज ठाकरे ने यह बयान दिया कि “हमारे झगड़े और विवाद छोटे हैं, महाराष्ट्र उससे बड़ा है,” जिससे संकेत मिला कि वे पुराने मतभेद भुलाकर एकसाथ आने को तैयार हैं। इसके जवाब में शिवसेना (UBT) के मुखपत्र ‘सामना’ में प्रकाशित उद्धव ठाकरे की टिप्पणी से भी यह स्पष्ट हुआ कि दोनों के बीच अब कोई निजी विवाद नहीं बचा है। उद्धव ने साफ कहा कि अगर कोई बाधा है तो वह बीजेपी और एकनाथ शिंदे हैं।

ऐसे समय में जब राजनीतिक पारा एक नये गठबंधन की तरफ बढ़ रहा था, देवेंद्र फडणवीस की एंट्री ने सारा खेल पलट दिया। पहले तो उन्होंने कहा था कि राज और उद्धव का यह पारिवारिक मामला है, और उन्हें इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। लेकिन 12 जून को अचानक मुंबई के ताज लैंड्स एंड होटल में फडणवीस और राज ठाकरे के बीच एक घंटे से ज्यादा लंबी मुलाकात ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी। इस मुलाकात की खास बात यह थी कि यह मुख्यमंत्री के आधिकारिक शेड्यूल में शामिल नहीं थी, यानी यह मुलाकात गोपनीय और रणनीतिक थी।इस मुलाकात के बाद राजनीतिक विश्लेषकों ने यह अनुमान लगाना शुरू कर दिया कि शायद राज ठाकरे अब उद्धव ठाकरे के बजाय देवेंद्र फडणवीस और बीजेपी के साथ गठबंधन की ओर बढ़ रहे हैं। इसके संकेत भी दिखने लगे हैं। राज ठाकरे ने इस मुलाकात के बाद एमएनएस पदाधिकारियों की एक बैठक बुलाई, जिसमें आगामी चुनावों की रणनीति पर चर्चा हुई। यह बैठक और फडणवीस से मुलाकात बताती है कि बीएमसी चुनावों से पहले एमएनएस और बीजेपी के बीच गठबंधन की संभावनाएं प्रबल होती जा रही हैं।

उधर, शरद पवार और अजित पवार के बीच भी विलय की संभावनाएं अब कमजोर पड़ती दिख रही हैं। हालांकि दोनों ने एकता की बात की, लेकिन अब तक कोई निर्णायक कदम नहीं उठाया गया है। सुप्रिया सुले की चुप्पी, शरद पवार के “पुनर्निर्माण” वाले बयान और अजित पवार की सत्ता में बने रहने की रणनीति यह दिखाती है कि पारिवारिक एकता अब सिर्फ भावनात्मक अपील बनकर रह गई है।बीएमसी चुनाव की दृष्टि से देखें तो ठाकरे बंधुओं की एकता या अलगाव बेहद निर्णायक साबित हो सकता है। अगर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे साथ आते हैं, तो यह मुंबई की राजनीति में एक बड़ी सियासी ताकत बन सकती है, जिसकी काट निकालना सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए मुश्किल होगा। लेकिन अगर राज ठाकरे बीजेपी से हाथ मिला लेते हैं, तो शिवसेना (UBT) और महाविकास आघाड़ी को गंभीर नुकसान उठाना पड़ सकता है।

देवेंद्र फडणवीस की राज ठाकरे से मुलाकात यही संकेत देती है कि भाजपा महाराष्ट्र में अपनी पकड़ और मजबूत करना चाहती है, खासकर मुंबई जैसे नगरीय क्षेत्रों में। फडणवीस अच्छी तरह जानते हैं कि मुंबई की राजनीति में ठाकरे परिवार की पकड़ आज भी मजबूत है, और राज ठाकरे को साथ लाकर वे उद्धव ठाकरे की राजनीतिक ताकत को संतुलित करना चाहते हैं।अब सवाल यही है कि क्या यह मुलाकात सिर्फ एक राजनीतिक औपचारिकता थी या किसी गहरे गठबंधन की शुरुआत? क्या यह उद्धव और राज के पुनर्मिलन के सपने को खत्म कर देगा? या फिर यह सियासत का एक और ड्रामा है जो चुनाव नजदीक आते ही एक नया मोड़ लेगा?महाराष्ट्र की राजनीति फिलहाल ऐसे चौराहे पर खड़ी है जहां से कोई भी दिशा संभव है। ठाकरे बनाम ठाकरे की राजनीति अब भाजपा बनाम महाविकास आघाड़ी के बीच के समीकरणों से भी अधिक जटिल हो चुकी है। एनसीपी में चल रही सुलह की कोशिशें, कांग्रेस की स्थिति, और आगामी बीएमसी चुनाव इन सबके बीच ठाकरे परिवार की रणनीति क्या रूप लेती है, यह आने वाले महीनों की सबसे दिलचस्प राजनीतिक कहानी होगी।

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