वैवाहिक संबंधो में विश्वास का खात्मा

क्षमा शर्मा। पति को मारकर उसके शव को नीले ड्रम में सीमेंट से ढकने वाली मेरठ की मुस्कान का केस ठंडा भी नहीं हुआ था कि इंदौर की सोनम का मामला सामने आ गया। कौन अपराधी है और कौन नहीं, अदालत किसे कितनी सजा देगी, यह वक्त बताएगा, लेकिन यह सोचकर दहशत होती है कि हनीमून के लिए मेघालय गई सोनम ने अपने पति राजा रघुवंशी को मरवा दिया।ससुराल वालों के साथ खुश रहना, विवाह के समय नाचना-कूदना और मन में किसी और योजना का चलना। क्या सचमुच उसने राज कुशवाहा जैसे फटेहाल प्रेमी के लिए यह सब किया या किसी और के लिए? राजा की हत्या का राज खुलने के बाद कुछ लोग एनसीआरबी रिपोर्ट का हवाला देकर कह रहे हैं कि 90 प्रतिशत से अधिक अपराध पुरुष करते हैं और स्त्रियां तो मात्र छह-आठ प्रतिशत ही ऐसा करती हैं। क्या यह कहा जा रहा है कि जब तक 92-94 प्रतिशत स्त्रियां भी अपराध न करने लगें, तब तक इन घटनाओं की अनदेखी की जाए?
अपराध को अपराध की तरह देखना चाहिए। स्त्री-पुरुष नहीं करना चाहिए। इसीलिए लंबे अर्से से मांग हो रही है कि स्त्रियों संबंधी कानूनों को लैंगिक भेद से मुक्त किया जाए। स्त्री या पुरुष, जो भी अपराधी हो, उसे सजा मिले। कई महिलाएं टीवी डिबेट्स में कह रही हैं कि सोनम का मीडिया ट्रायल किया जा रहा है, जबकि वह राजा के घर वालों से बात कर रहा है तो सोनम और राज कुशवाहा के घर वालों से भी।जब किसी पुरुष के आरोपित बनते ही उसके परिवार वालों को रात-दिन दिखाया जाता है, तब ऐसे विचार क्यों प्रस्फुटित नहीं होते? दुष्कर्म के मामलों में महिलाओं के तो नाम बताना, चित्र दिखाना अपराध है, लेकिन पुरुषों के चित्र हर वक्त दिखाए जाते हैं। अगर वे निर्दोष साबित हो जाते हैं तो क्या उनकी और उनके परिवार की खोई प्रतिष्ठा वापस मिलती है? अनेक बार तो नौकरी तक चली जाती है।
इस प्रसंग में 1988 का चर्चित इंदु अरोड़ा-अजीत सेठ कांड याद आता है। हरीश से विवाहित इंदु के अजीत से संबंध थे। उन्हें लगता था कि उनके संबंधों में इंदु के दो छोटे बच्चे रोड़ा बन रहे हैं। दोनों ने मिलकर बच्चों पर मिट्टी का तेल छिड़का और आग लगा दी। उस समय इस घटना पर भी लोगों में काफी आक्रोश जागा। जब उन्हें जेल भेजा गया तो वहां कैदियों ने उनकी पिटाई की।मेघालय की घटना से राजा रघुवंशी और सोनम के साथ उन चार लड़कों के परिवार भी तबाह हुए, जिन्हें हत्या के आरोप में पकड़ा गया है। जो किसी अपराध को अंजाम देते हैं, उन्हें यह क्यों नहीं लगता कि वे पकड़े भी जाएंगे या यह सोचते हैं कि कुछ भी करके बच निकलेंगे? पुरुषों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था एकम न्याय फाउंडेशन की दीपिका भारद्वाज ने दो फिल्में बनाई हैं-मार्टरस आफ मैरिज और इंडियाज संस।
वह पुरुष आयोग बनाने की मांग करती रही हैं। उन्होंने पत्नियों द्वारा पति की हत्या और पुरुषों की आत्महत्या के मामलों का अध्ययन किया था। इसके अनुसार देश भर में जनवरी 2023 से लेकर दिसंबर तक 306 पतियों और कई मामलों में उनके परिवार वालों की हत्या पत्नियों द्वारा की गई। इनमें से कुछ हत्याओं को आत्महत्या बताने की कोशिश की गई।एक तरफ महिलाओं के बारे में कहा जाता है कि वे बहुत सशक्त हो रही हैं, लेकिन दूसरी तरफ जैसे ही कोई स्त्री अपराध करती है, उसके बचाव में कहा जाने लगता है कि वह तो ऐसा कर ही नहीं सकती। क्यों नहीं कर सकती? आखिर वे स्त्रियां कौन हैं, जो जघन्य अपराध कर रही हैं? कई बार सोचती हूं कि किसी अपराध को साबित करने के लिए पुलिस के सामने भी कितनी चुनौतियां होती हैं। राजा की हत्या के मामले में मेघालय पुलिस को आलोचना का सामना करना पड़ा। वह जिस तरह बिना किसी प्रतिक्रिया के मामले की छानबीन करती रही, वह तारीफ के काबिल है।
प्रतिक्रिया न देने पर सोनम और राजा के परिवार वाले उसकी लगातार आलोचना कर रहे थे। मेघालय में ऐसे अपराध न के बराबर होते हैं। वहां भी इस घटना पर लोगों में गुस्सा है। लोग दोनों परिवारों से माफी की मांग कर रहे हैं। कुछ कह रहे हैं कि पूर्वोत्तर को बेवजह बदनाम किया गया। लोग पूछ रहे हैं कि यदि सोनम को राजा पसंद ही नहीं था तो उससे विवाह क्यों किया? यदि उसे इसकी चिंता थी कि मना करेगी तो हृदय रोगी पिता का क्या होगा, तो क्या अब वह बहुत खुश होंगे? वह नाते-रिश्तेदारों, आसपास वालों का सामना कैसे कर रहे होंगे? आखिर हमारे समाज में भरोसे में इतनी कमी (ट्रस्ट डेफिसिट) कैसे हो गई।इन दिनों आए दिन ऐसी खबरें आती हैं कि पति ने पत्नी को मार दिया। पत्नी ने पति को तरबूज में जहर मिलाकर खिला दिया। बेटी ने प्रेमी के लिए पूरे परिवार को मार डाला। पिता ने दूसरी शादी करने के लिए बच्चों का गला घोंटा। यदि अपनों का ही विश्वास न रहे तो आखिर हम दुनिया में किसका भरोसा कर सकते हैं। क्या यह कहने से समस्या हल हो सकती है कि विवाह संस्था सड़-गल चुकी है और अब इससे निजात पा लेनी चाहिए। पा लीजिए, लेकिन पति को पार्टनर कहने भर से स्थितियां नहीं बदल जातीं। कोई भी संबंध हो, उसमें विश्वास और धैर्य ही काम आते हैं, जिनका लगातार लोप हो रहा है।
(लेखिका साहित्यकार हैं)