तालियां अकेले नहीं बजतीं सिंगापुर में CDS चौहान ने पाकिस्तान को दिया करारा जवाब

सिंगापुर में आयोजित 22वें शांग्री-ला डायलॉग में भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने न केवल भारत की बदलती सैन्य रणनीति को विश्व मंच पर प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया, बल्कि पाकिस्तान को भी उसके आतंकवाद पोषक रवैये पर करारा जवाब दिया। शुक्रवार को शुरू हुए इस तीन दिवसीय सम्मेलन में जनरल चौहान ने ‘भविष्य के युद्ध और युद्धकला’ पर अपने विचार साझा किए और साथ ही ‘भविष्य की चुनौतियों के लिए डिफेंस इनोवेशन सॉल्यूशन’ विषयक विशेष सत्र में भी भाग लिया। अपने भाषण के दौरान जनरल चौहान ने स्पष्ट किया कि आज का भारत बिना रणनीति के नहीं चलता। उन्होंने पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए कहा कि जब एक पड़ोसी देश से लगातार शत्रुता ही मिले, तो दूरी बनाए रखना ही सबसे बेहतर रणनीति हो सकती है। उन्होंने कहा कि जब भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की थी, तब पाकिस्तान हमसे हर मामले में आगे था, चाहे वह जीडीपी हो, सामाजिक विकास हो या प्रति व्यक्ति आय। लेकिन आज भारत सभी क्षेत्रों में आगे है, और यह संयोग नहीं बल्कि सटीक रणनीतिक सोच का परिणाम है।
जनरल चौहान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2014 की कूटनीतिक पहल का हवाला देते हुए बताया कि किस प्रकार भारत ने संबंध सुधारने की दिशा में पहला कदम बढ़ाया था। मोदी ने अपने शपथग्रहण समारोह में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आमंत्रित किया था। परंतु उन्होंने तीखा तंज कसते हुए कहा, “तालियां बजाने के लिए दो हाथ चाहिए होते हैं। अगर बदले में सिर्फ दुश्मनी मिले तो दूरी बनाना ही समझदारी है।”
भारत की सैन्य रणनीति में आए इस बदलाव को जनरल चौहान ने वैश्विक पटल पर मजबूती से रखा। उन्होंने बताया कि अब युद्ध सिर्फ हथियारों की नहीं, बल्कि तकनीक, नेटवर्क और आत्मनिर्भरता की लड़ाई बन गए हैं। उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत ने अपने दम पर एक जटिल सैन्य अभियान को अंजाम दिया, जबकि पाकिस्तान को किसी भी प्रकार की रणनीतिक गतिविधि में अब भी बाहरी सहयोग की जरूरत पड़ती है।शांग्री-ला डायलॉग एशिया-प्रशांत क्षेत्र का सबसे प्रमुख सुरक्षा मंच माना जाता है। इस बार इसमें 47 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिनमें 40 से अधिक मंत्री-स्तरीय प्रतिनिधि शामिल थे। सम्मेलन के दौरान जनरल चौहान ने ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, जापान, इंडोनेशिया, ब्रिटेन, नीदरलैंड्स और सिंगापुर जैसे देशों के शीर्ष रक्षा अधिकारियों के साथ द्विपक्षीय बैठकें कीं। इन बैठकों में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में रक्षा साझेदारी को मजबूत करने और साझा सुरक्षा खतरों से निपटने के उपायों पर गहन चर्चा हुई।
भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग पर भी इस सम्मेलन के दौरान विशेष ध्यान दिया गया। जनरल चौहान ने अमेरिका के इंडो-पैसिफिक कमांड (INDOPACOM) के प्रमुख एडमिरल सैमुअल जे. पापारो से मुलाकात की। इस बैठक में दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग को और गहरा करने, उभरती सुरक्षा चुनौतियों से निपटने और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने को लेकर गंभीर बातचीत हुई। साथ ही ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर विशेष रूप से विचार विमर्श हुआ, जिसे भारत की सैन्य क्षमताओं का प्रतीक माना जा रहा है।
इस बार सम्मेलन में चीन की भागीदारी पर भी सबकी नजरें टिकी थीं। 2019 के बाद यह पहली बार है जब चीन ने अपने रक्षा मंत्री को इस मंच पर नहीं भेजा। इसकी जगह पीपल्स लिबरेशन आर्मी की नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधिमंडल भाग ले रहा है, जो चीन की बदलती रणनीति को दर्शाता है। सम्मेलन में ताइवान और दक्षिण चीन सागर में चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव पर भी चर्चा की गई।यह सम्मेलन फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के उद्घाटन भाषण से शुरू हुआ, जो इस मंच पर भाषण देने वाले पहले यूरोपीय नेता बने। मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहीम और अमेरिकी रक्षा सचिव पीट हेगसेथ के भी भाषण खासे चर्चित रहे। हेगसेथ ने ट्रंप प्रशासन की इंडो-पैसिफिक रक्षा नीति को वैश्विक नेताओं के समक्ष पेश किया।
शांग्री-ला डायलॉग का आयोजन लंदन स्थित थिंक टैंक इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ (IISS) द्वारा 2002 से किया जा रहा है, और यह मंच एशिया-प्रशांत की सुरक्षा चुनौतियों पर वैश्विक संवाद का केंद्र बन चुका है।जनरल अनिल चौहान की भागीदारी न केवल भारत की कूटनीतिक ताकत का संकेत है, बल्कि यह संदेश भी है कि भारत अब अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करने में न तो हिचकिचाता है और न ही कोई समझौता करता है। भारत की रक्षा नीति अब आत्मनिर्भरता, तकनीकी श्रेष्ठता और वैश्विक साझेदारी पर आधारित है, और जनरल चौहान ने इसे सिंगापुर के मंच से पूरी दुनिया के सामने मजबूती से प्रस्तुत किया।