जातिगत जनगणना में क्या सिर्फ हिंदुओं की ही होगी गिनती, या बाहर आएंगी मुस्लिमों की जातियां?

देश में आखिरकार जातीय आधारित जनगणना का रास्ता साफ हो गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को राजनीतिक मामलों की हुई कैबिनेट बैठक में जातीय जनगणना कराने का फैसला लिया गया. आजादी के बाद देश में पहली बार सभी जातियों के आंकड़े जुटाने का काम सरकार करेगी. जातिगत जनगणना से जुड़े मामले में केवल हिंदू धर्म के भीतर जाति व्यवस्था का जिक्र होता रहा है जबकि दूसरे धर्म में कोई जिक्र नहीं किया जाता.ऐसे में अब सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार सिर्फ हिंदुओं की जातियों की गिनती करेगी या फिर मुस्लिम समुदाय के तहत आने वाली विभिन्न जातियों का भी लेखा-जोखा जुटाएगी?
आजादी के बाद भारत ने जब साल 1951 में पहली बार जनगणना की, तो केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को जाति के नाम पर वर्गीकृत किया गया था. इसके अलावा अल्पसंख्यक समुदाय के आंकड़े जुटाए जाते रहे हैं. तब से लेकर अभी तक भारत सरकार ने एक नीतिगत फैसले के तहत जातिगत जनगणना से परहेज किया, लेकिन समय से साथ मांग उठने लगी. हालात तब बदले जब अस्सी के दशक में कई क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का सियासी उदय हुआ और उनकी सियासत पूरी तरह से जाति पर ही आधारित थी.
देश में जातीय आधारित दलों ने राजनीति में तथाकथित ऊंची जातियों के वर्चस्व को चुनौती देने के साथ-साथ तथाकथित निचली जातियों को सरकारी शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण दिए जाने को लेकर अभियान शुरू किया. ऐसे में मंडल आंदोलन से निकले राजनीतिक दलों ने जातिगत जनगणना की मांग को धार दिया तो मुस्लिम समुदाय से भी आवाज उठने लगी कि मुस्लिमों के भीतर जातियों की जनगणना कराई जाए. मोदी सरकार जातीय जनगणना कराने जा रही है तो क्या मुस्लिमों के भीतर जातियों की गिनती कराई जाएगी?
मुस्लिमों की गिनती कैसे होती रही?
देश में अंग्रेजी शासन के दौरान जनगणना शुरू हुई थी, जिसमें हिंदू और मुस्लिम की गिनती की जाती रही. आजादी के बाद से अभी तक देश में जितनी भी जनगणना होती रही है, उसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों की गिनती केवल धर्म के आधार पर होती थी. इस तरह से मुस्लिम जातियों की गिनती नहीं हो सकी. हालांकि, 1981 से 1931 तक हुई जनगणना में मुस्लिम की गिनती धार्मिक और जातीय दोनों ही आधार की जाती रही है. 1941 की जनगणना दूसरे विश्व युद्ध के साथ-साथ मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा के चलते जनगणना नहीं हो सकी थी.
मुस्लिम लीग ने मुस्लिम समुदाय से अपनी-अपनी जाति को लिखवाने के बजाय इस्लाम धर्म लिखवाने पर जोर दिया था. इसी तरह हिंदू महासभा ने हिंदुओं से जाति के बजाय हिंदू धर्म लिखवाने की बात कही थी, जिसके चलते विवाद खड़ा हो गया था. इसके चलते ही न तो मुस्लिमों की किसी जाति की जनगणना की गई और न ही हिंदुओं की जाति की गिनती की गई. हालांकि जनगणना के दौरान अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की गिनती की जाती रही, जिसमें मुस्लिम दलित जातियां शामिल नहीं थीं. आजादी के बाद अब जातिगत जनगणना होने जा रही है तो मुस्लिमों की जनगणना का मुद्दा उठ सकता है, क्योंकि हिंदुओं की तरह मुस्लिमों में भी तमाम जातियां हैं.
बिहार-तेलंगाना का कैसा रहा पैटर्न
संविधान के अनुच्छेद 246 के अनुसार जनगणना का काम केंद्र सरकार का है, लेकिन बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना ने अपने-अपने राज्य में जातीय जनगणना कराने का काम किया. राज्य सरकारें संवैधानिक रूप से ये जातिगत जनगणना नहीं करा सकते थे, लिहाजा इन्होंने इसे कास्ट सर्वे का नाम दिया. बिहार की नीतीश सरकार ने 2023 में जातिगत सर्वे कराया. इसी तरह तेलंगाना में भी कांग्रेस सरकार ने 2023 में सामाजिक,आर्थिक एवं जातिगत सर्वे कराया.ऐसे ही कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार ने साल 2015 में कास्ट सर्वे कराया था. कांग्रेस ने अपने शासित राज्य कर्नाटक और तेलंगाना में जातिगत जनगणना कराकर मोदी सरकार पर दबाव बनाने का काम किया, उसके पैटर्न से समझा जा सकता है.
कर्नाटक के आंकड़े सामने नहीं आ सके हैं. जबकि बिहार और तेलंगाना में राज्य सरकारों ने जाति सर्वे कराया तो सिर्फ हिंदुओं की जातियां ही नहीं गिनी गई बल्कि मुस्लिमों के भीतर जातियों की गणना की गई. नीतीश कुमार ने साफ कहा था कि बिहार में सभी धर्मों की जातियों और उपजातियों की गणना कराई जाएगी और उन्होंने कराया भी. तेलंगाना में भी कांग्रेस सरकार ने हिंदुओं के साथ मुस्लिम जातियों के आंकड़े जुटाने का काम किया था.
तेलंगाना जातिगत सर्वे की रिपोर्ट के मुताबित राज्य में मुस्लिमों की आबादी 44,57,012 है, जो कुल जनसंख्या का 12.56 फीसदी है, जिसमें 10.08 फीसदी पिछड़े वर्ग के मुस्लिम और 2.48 फीसदी उच्च जाति के मुस्लिम हैं. इसी तरह से बिहार में जातिगत सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य की आबादी में 17.42 फीसदी मुसलमान हैं. इसमें से करीब 10 फीसदी अति पिछड़े मुस्लिम, दो फीसदी पिछड़े मुस्लिम और 4 फीसदी उच्च जाति की मुस्लिम आबादी है. कर्नाटक में जाति सर्वे रिपोर्ट सामने नहीं आ सकी है.
राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम कॉस्ट जनगणना
मोदी सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना कराने का फैसला किया है तो हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिमों के जातियों की गिनती पर सभी की निगाहें लगी हुई है. सरकार ने अभी कोई मॉडल पेश नहीं किया है कि किस तरह से जातिगत जनगणना होगी. मुस्लिमों के ओबीसी समुदाय के लोग जातीय जनगणना में हिंदुओं की अलग-अलग जातियों की तरह मुसलमानों के भीतर शामिल तमाम जातियों की गिनती करने की मांग करते रहे हैं.दो साल पहले दिल्ली में 15 मुस्लिम ओबीसी जाति संगठनों ने मुस्लिम जातियों की जनगणना के मुद्दे को लेकर बैठक की थी. इस बैठक में मुस्लिम समाज के अंदर शैक्षणिक, आर्थिक, सियासी और सामाजिक आधार पर जनगणना करने की मांग उठाई थी.
पसमांदा मुस्लिम समाज के अध्यक्ष और पूर्व सांसद अली अनवर ने देश के प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री को पत्र लिखकर कहा था कि सिर्फ हिंदू जातियों की ही नहीं बल्कि मुस्लिमों की जातियों की गणना की जानी चाहिए, क्योंकि मुसलमानों के भीतर भी जातियां और उपजातियां शामिल हैं. इस दौरान मुस्लिम ओबीसी जातियों की स्थिति पर एक बुकलेट भी जारी की गई थी और कहा गया था कि जातिगत जनगणना में हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिमों की भी जातियों की गिनती कराए जाए ताकि उनकी स्थिति का भी सही आकलन देश के सामने आ सके.
कई जातियों में बंटे हैं मुसलमान
मुस्लिम समुदाय की जातियां 3 प्रमुख वर्गों और सैकड़ों बिरादरियों में विभाजित हैं. उच्चवर्गीय मुसलमान को अशराफ कहा जाता है तो पिछड़े मुस्लिमों को पसमांदा और दलित जातियों के मुसलमानों को अरजाल. अशराफ में सय्यद, शेख, तुर्क, मुगल, पठान, रांगड़, कायस्थ मुस्लिम, ठकुराई या मुस्लिम राजपूत, त्यागी मुस्लिम आते हैं.ओबीसी मुस्लिमों को पसमांदा मुस्लिम कहा जाता है, जिनमें कुंजड़े (राईन), जुलाहे (अंसारी), धुनिया (मंसूरी), कसाई (कुरैशी), फकीर (अलवी), नई (सलमानी), मेहतर (हलालखोर), ग्वाला (घोसी), धोबी (हवारी), गद्दी, लोहार-बढ़ई (सैफी), मनिहार (सिद्दीकी), दर्जी (इदरीसी), वन्गुज्जर, मेवाती, गद्दी और मलिक हैं. दलित मुस्लिम को अरजाल के नाम से कहा जाता है, लेकिन मुस्लिम दलित जातियों को ओबीसी में डाल दिया गया है.
मोदी सरकार मुस्लिमों की कराएगी गिनती?
मुस्लिम ओबीसी समुदाय के लोग जातीय आधार पर मुस्लिमों की जनगणना कराने की मांग करते रहे हैं. उनका कहना है कि मुस्लिम के नाम पर सारे सुख और सुविधाओं का लाभ मुस्लिम समाज की कुछ उच्च जातियों को मिल रहा है. ऐसे में मुस्लिम ओबीसी जातियों की स्थिति हिंदुओं से भी खराब है. ऐसे में जनगणना के जरिए सही आंकड़े सामने आ सकेंगे. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह कहते रहे हैं कि मुस्लिम जाति की श्रेणी में रख कर उनकी जनगणना जाति के आधार पर कराई जानी चाहिए. मुस्लिम वर्ग में भी कई जातियां हैं और उन्हें भी जातीय रूप से श्रेणीबद्ध करके उनकी गिनती की जानी चाहिए.
पीएम मोदी भी पसमांदा मुस्लिमों का मुद्दा उठाते रहे हैं. पीएम मोदी कहते रहे हैं कि उनके ही धर्म के एक वर्ग ने पसमांदा मुसलमानों का इतना शोषण किया है, लेकिन देश में इसकी कभी चर्चा नहीं होती. उनकी आवाज सुनने को भी कोई तैयार नहीं. जो पसमांदा मुसलमान है, उन्हें आज भी बराबरी का दर्जा नहीं मिला है. इसके लिए प्रधानमंत्री मुस्लिमों की अलग जातियों के नाम लेते रहे हैं, जिसमें मोची, भठियारा, जोगी, मदारी, जुलाहा, लंबाई, तेजा, लहरी, हलदर जैसी पसमांदा जातियों का जिक्र करते हुए कहते रहे कि इनके साथ इतना भेदभाव हुआ है जिसका नुकसान उनकी कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ा. ऐसे में मोदी सरकार जातिगत जनगणना कराने के दिशा में कदम बढ़ाया तो मुस्लिम धर्म में शामिल अलग-अलग जातियों की गिनती करा सकते हैं?