लोधी और निषाद नेताओं पर बीजेपी की नजर, 2027 विधानसभा से पहले बड़ा फैसला

यूपी बीजेपी जल्द नए प्रदेशाध्यक्ष का ऐलान कर सकती है। मौर्य, कुर्मी, जाट के बाद अब लोधी, निषाद और पाल जैसे गैर-यादव ओबीसी और दलित समुदायों पर नजर है। यह बदलाव संगठनात्मक मजबूती, जातीय संतुलन और 2027 विधानसभा चुनाव में वोट बैंक रणनीति को ध्यान में रखकर किया जा रहा है।

 

अजय कुमार, वरिष्ठ पत्रकार

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने प्रदेश अध्यक्ष पद के चयन को लेकर रणनीतिक रूप से तैयारी तेज कर दी है। भूपेंद्र चौधरी का कार्यकाल समाप्त हो चुका है और 2027 विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी संगठन में नए चेहरे को आगे लाना चाहती है। यह बदलाव केवल औपचारिक नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश में आगामी राजनीतिक समीकरण, जातीय और क्षेत्रीय वोट बैंक, और संगठनात्मक मजबूती को ध्यान में रखकर किया जा रहा है।बीजेपी का उत्तर प्रदेश संगठन हमेशा जातीय संतुलन के आधार पर चलता रहा है। पिछले दस साल में मौर्य, कुर्मी और जाट ओबीसी समाज से प्रदेश अध्यक्ष बन चुके हैं। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद पार्टी ने केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर गैर-यादव ओबीसी वोटों को साधा। मौर्य के नेतृत्व में पार्टी ने संगठन को मजबूत किया और 2014 लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बहुमत हासिल किया। इसके बाद 2016 में स्वतंत्र देव सिंह को कुर्मी समाज से प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। कुर्मी जाति उत्तर प्रदेश की बड़ी ओबीसी आबादी में शामिल है और पार्टी के लिए यह समुदाय गैर-यादव ओबीसी वोटों का महत्वपूर्ण स्रोत है। स्वतंत्र देव सिंह के नेतृत्व में 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राज्य में मजबूती बनाए रखी। इसके बाद भूपेंद्र चौधरी, जाट समुदाय से, अध्यक्ष बने। अब पार्टी को यह तय करना है कि मौर्य, कुर्मी और जाट के बाद किस ओबीसी या दलित चेहरे को अगला प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए।

विश्लेषकों का कहना है कि लोधी और निषाद समुदाय के नेताओं की संभावनाएँ सबसे अधिक हैं। लोधी जाति उत्तर प्रदेश के लगभग 15 जिलों में प्रभावशाली है। इनमें रामपुर, बुलंदशहर, आगरा, लखीमपुर, कानपुर, झांसी और हमीरपुर जैसे जिले शामिल हैं। इन जिलों में लोधी वोट बैंक 5 से 10 प्रतिशत तक है। लोधी जाति से पार्टी का परंपरागत वोट बैंक जुड़ा हुआ है। कल्याण सिंह के समय से यह समाज बीजेपी का मजबूत आधार रहा है। वर्तमान में केंद्रीय राज्य मंत्री बीएल वर्मा, राज्य मंत्री धर्मपाल सिंह और संदीप सिंह इस समुदाय के प्रमुख नेता हैं। बीएल वर्मा मोदी-शाह के करीबी और संगठन के भरोसेमंद नेता माने जाते हैं। संदीप सिंह कल्याण सिंह के पोते हैं, जबकि धर्मपाल सिंह संगठन के पुराने अनुभव और अनुशासन का प्रतीक हैं।निषाद समुदाय उत्तर प्रदेश की राजनीतिक सरगर्मी में महत्वपूर्ण है। यह समुदाय पूर्वांचल और गंगा के किनारे वाले जिलों में फैला हुआ है। मल्लाह, बिंद, कश्यप और केवट जैसी उपजातियाँ इस समुदाय का हिस्सा हैं। कुल वोटर लगभग 6 प्रतिशत हैं, जो उत्तर प्रदेश के कई जिलों में निर्णायक साबित हो सकते हैं। पार्टी इस समुदाय से बाबूराम निषाद और साध्वी निरंजन ज्योति को अगला अध्यक्ष बनाने पर विचार कर सकती है। बाबूराम निषाद लंबे समय से संगठन में शामिल और भरोसेमंद नेता हैं, जबकि साध्वी निरंजन ज्योति केंद्रीय नेतृत्व की पसंद के रूप में उभर रही हैं। उनके नेतृत्व से पार्टी ओबीसी और हिंदुत्व दोनों ही कार्ड खेल सकती है।

पाल समाज भी पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है। कुल वोट प्रतिशत लगभग 3 है, लेकिन यह समुदाय अतिपिछड़ी जातियों और गैर-यादव ओबीसी को जोड़ने में मदद कर सकता है। केंद्रीय मंत्री एसपी बघेल पाल समाज का प्रमुख चेहरा हैं। अगर पार्टी इस समुदाय का नेता अध्यक्ष बनाती है, तो संगठन में जातीय संतुलन बनाए रखने के साथ चुनावी रणनीति को और मजबूती मिलेगी।बीजेपी अपने नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन में जातीय संतुलन के साथ संगठनात्मक अनुभव और चुनावी ताकत को भी महत्व दे रही है। पिछले चुनाव में मिली हार ने पार्टी को यह सिखाया कि नेतृत्व केवल जाति या क्षेत्र पर आधारित नहीं होना चाहिए, बल्कि संगठनात्मक मजबूती और अनुशासन भी आवश्यक है। इसलिए उम्मीदवारों की सूची में केवल लोकप्रिय चेहरे ही नहीं, बल्कि संगठन में सक्रिय और अनुभवी नेताओं को शामिल किया गया है।पार्टी के अंदर सूत्रों की मानें तो अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा की मंजूरी के बाद लिया जाएगा। प्रदेश प्रभारी पीयूष गोयल और सह-प्रभारी विनोद तावड़े इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। बीजेपी जल्द ही नए प्रदेश अध्यक्ष का ऐलान कर सकती है, ताकि संगठन को आगामी विधानसभा चुनावों के लिए धार मिल सके।विश्लेषकों का कहना है कि अगले अध्यक्ष का चयन ओबीसी और दलित वोटों को जोड़ने का बड़ा दांव होगा। लोधी और निषाद जैसे गैर-यादव ओबीसी समुदायों की भूमिका निर्णायक साबित हो सकती है। दलित समुदाय से भी पार्टी अध्यक्ष के चयन की संभावना है, जिससे सभी जातियों को संतुलित रूप से संगठन में प्रतिनिधित्व मिले।

बीजेपी की रणनीति साफ है। संगठन के भीतर स्थिरता और अनुशासन बनाए रखने के साथ जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए नया नेतृत्व चुना जाएगा। लोधी, निषाद और पाल समुदायों के नेताओं पर पार्टी की विशेष नजर है। यह केवल संगठनात्मक बदलाव नहीं, बल्कि आगामी विधानसभा चुनाव में दलित और ओबीसी वोटों को जोड़ने का रणनीतिक कदम भी है। उत्तर प्रदेश की राजनीतिक परिदृश्य में यह फैसला सियासी रणनीति और संगठनात्मक मजबूती दोनों के लिए निर्णायक होगा। नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन से पार्टी को न केवल संगठन में स्थिरता मिलेगी, बल्कि आगामी चुनाव में विपक्षी दलों पर दबाव भी बढ़ेगा। कुल मिलाकर, यूपी बीजेपी में अब मौर्य, कुर्मी और जाट के बाद लोधी, निषाद और पाल जैसे गैर-यादव ओबीसी और पिछड़ी जातियों के नेताओं की भूमिका निर्णायक है। जातीय समीकरण, वोट प्रतिशत और संगठनात्मक ताकत को ध्यान में रखते हुए पार्टी नया प्रदेश अध्यक्ष चुनेगी। यह फैसला 2027 विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी की रणनीति को और धार देगा।

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