बीजेपी ने संकल्प दिवस के बहाने पूर्वांचल में चौहान समाज के सहारे बिछाई नई सियासी बिसात

अजय कुमार,लखनऊ
लखनऊ में शुक्रवार को आयोजित ‘संकल्प दिवस’ कार्यक्रम ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में नया संदेश दिया है। 2024 के लोकसभा चुनावों में उम्मीद से कम प्रदर्शन के बाद अब भारतीय जनता पार्टी ने 2027 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए सामाजिक समीकरणों को फिर से गढ़ना शुरू कर दिया है। इस क्रम में चौहान समाज पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया है, जो पूर्वांचल और मध्य यूपी में एक प्रभावशाली ओबीसी समुदाय माना जाता है। संकल्प दिवस का आयोजन सिर्फ एक जन्मदिन समारोह नहीं था, बल्कि यह बीजेपी की जातीय राजनीति को नया स्वरूप देने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।यह कार्यक्रम इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में शुक्रवार को दोपहर 11 बजे शुरू हुआ, जिसमें बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक, समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने भाग लिया। कार्यक्रम की खास बात यह रही कि यह आयोजन दारा सिंह चौहान के जन्मदिन के बहाने आयोजित किया गया, लेकिन इसके पीछे पार्टी की राजनीतिक रणनीति स्पष्ट दिखी।
दारा सिंह चौहान लंबे समय से चौहान समाज के प्रमुख चेहरे रहे हैं। वे पहले बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के प्रमुख रहे, फिर सपा में गए, और अब एक बार फिर बीजेपी में लौट आए हैं। हाल ही में उन्हें विधान परिषद सदस्य भी बनाया गया है। उनकी यह वापसी न केवल राजनीतिक रूप से अहम है, बल्कि यह भी दिखाता है कि बीजेपी अब हर उस वर्ग को फिर से साधना चाहती है, जिससे उसे लोकसभा चुनावों में अपेक्षित समर्थन नहीं मिला।बीजेपी का यह कार्यक्रम संदेश देता है कि अब पार्टी चौहान समाज को संगठित कर अपने पक्ष में लामबंद करना चाहती है। संकल्प दिवस में चौहान समाज के हज़ारों लोगों की उपस्थिति ने यह दिखा दिया कि इस समुदाय के लोग भी अब फिर से बीजेपी की ओर उम्मीद से देख रहे हैं। मंच से नेताओं ने 2027 के चुनावों में बीजेपी को विजयी बनाने का संकल्प दोहराया। यह कार्यक्रम पार्टी के लिए एक सामाजिक शक्ति प्रदर्शन जैसा रहा।
उत्तर प्रदेश में जातीय राजनीति हमेशा से निर्णायक रही है। बीजेपी ने 2014, 2017 और 2019 के चुनावों में गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित वर्गों को अपने पक्ष में करने में सफलता पाई थी। लेकिन 2024 में इस सामाजिक आधार में सेंध लगी है, खासकर पूर्वांचल के क्षेत्रों में सपा की रणनीति ने बीजेपी को नुकसान पहुंचाया। सपा के PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले ने सामाजिक गोलबंदी में नई जान फूंकी, जिससे बीजेपी को नुकसान हुआ।अब बीजेपी उसी फार्मूले की काट खोजने में लगी है। चौहान समाज, जो नोनिया जाति के अंतर्गत आता है, पूर्वांचल में एक बड़ा प्रभाव रखता है। मऊ, बलिया, गाजीपुर, आजमगढ़, चंदौली, जौनपुर, वाराणसी, गोरखपुर, मिर्जापुर जैसे जिलों में इस समाज की जनसंख्या अच्छी-खासी है। यही वजह है कि पार्टी ने दारा सिंह चौहान के माध्यम से इस समुदाय को फिर से जोड़ने की कवायद शुरू कर दी है।
दारा सिंह चौहान का राजनीतिक सफर दिलचस्प रहा है। वे 1996 में बहुजन समाज पार्टी से सांसद बने थे। इसके बाद वे राज्यसभा के सदस्य रहे। 2015 में बीजेपी से जुड़ने के बाद उन्हें 2017 में योगी सरकार में मंत्री बनाया गया। लेकिन 2022 विधानसभा चुनावों से पहले उन्होंने इस्तीफा देकर समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। हालांकि 2023 में उन्होंने सपा छोड़कर बीजेपी में फिर वापसी की। उनके इस ‘आना-जाना’ को लेकर विपक्ष सवाल उठाता रहा है, लेकिन चौहान समाज में उनकी पकड़ को नकारा नहीं जा सकता।संकल्प दिवस के आयोजन को बीजेपी ने पूरी तरह एक राजनीतिक कार्यक्रम में तब्दील कर दिया। नारे लगे “2027 में फिर से योगी सरकार”, “चौहान समाज का संकल्प बीजेपी के साथ”। नेताओं ने चौहान समाज को यह भरोसा दिलाने की कोशिश की कि बीजेपी ही एकमात्र पार्टी है जो पिछड़े वर्गों को वास्तविक भागीदारी देती है। मंच से डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि “बीजेपी ने हमेशा पिछड़े वर्गों को सम्मान और सत्ता में भागीदारी दी है। अब समय आ गया है कि हम एक बार फिर एकजुट होकर 2027 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाएं।”
इस कार्यक्रम की टाइमिंग भी खास है। 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद बीजेपी में चिंता की लकीरें उभर आई थीं, खासकर यूपी को लेकर जहां पार्टी को सपा के हाथों अप्रत्याशित झटका लगा। अब पार्टी जातीय समीकरणों को नए सिरे से गढ़ने में लगी है। यादवों के खिलाफ पहले से बीजेपी की रणनीति रही है, लेकिन अब वह गैर-यादव ओबीसी वोटों को फिर से साधना चाहती है।चौहान समाज का रुझान यदि बीजेपी की ओर बना रहता है, तो यह पार्टी को पूर्वांचल में काफी मजबूती दे सकता है। यही वजह है कि पार्टी ने न केवल दारा सिंह चौहान को वापस लाया, बल्कि उन्हें रणनीतिक रूप से सम्मान भी दिया। यह आयोजन उसी का प्रमाण है।
हालांकि चुनौतियां भी कम नहीं हैं। सपा और बसपा भी ओबीसी और दलित वोटों के लिए गंभीर प्रयास कर रही हैं। सपा ने हाल के वर्षों में निषाद, कुर्मी, मौर्य, सैनी, पासी जैसी जातियों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की है। ऐसे में बीजेपी को केवल एक-दो समुदायों पर निर्भर रहना काफी नहीं होगा। उसे व्यापक सामाजिक समीकरण बनाना होगा।विपक्ष यह भी आरोप लगा रहा है कि बीजेपी केवल जातीय गोलबंदी में विश्वास रखती है और असल मुद्दों से भटक गई है। महंगाई, बेरोजगारी, कानून-व्यवस्था जैसे विषयों को विपक्ष प्रमुख बना रहा है, जबकि बीजेपी सामाजिक समीकरणों के जरिए समीकरण साधने में लगी है। संकल्प दिवस को भी विपक्ष ने ‘राजनीतिक ड्रामा’ कहकर खारिज कर दिया है।
बावजूद इसके, बीजेपी की ओर से यह कार्यक्रम एक स्पष्ट संदेश है कि पार्टी अब मैदान में पूरी तैयारी के साथ उतरने जा रही है। 2027 की बिसात बिछ चुकी है और जातीय समाजों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास तेज हो चुका है। चौहान समाज की गोलबंदी के जरिए बीजेपी ने यह जता दिया है कि हर समुदाय की भूमिका उसके लिए महत्वपूर्ण है इस संकल्प दिवस से बीजेपी को कितना राजनीतिक लाभ मिलेगा, यह तो 2027 में ही पता चलेगा, लेकिन यह साफ हो गया है कि पार्टी अब पूरी ताकत के साथ अपनी रणनीति को जमीन पर उतार रही है। जातीय समीकरणों की यह सियासी बिसात आने वाले समय में प्रदेश की राजनीति की दिशा और दशा तय करेगी।