बिहार में वोटर लिस्ट पर सियासी महाभारत, तेजस्वी के दावे पर चुनाव आयोग का पलटवार

अजय कुमार,लखनऊ
वरिष्ठ पत्रकार
पटना में चुनावी मौसम से पहले ही वोटर लिस्ट पर घमासान मच गया है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने नई मतदाता सूची पर सवाल उठाकर बिहार की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। तेजस्वी का दावा है कि उनका नाम नई ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में ही नहीं है। वहीं चुनाव आयोग ने रिकॉर्ड दिखा कर उनके दावे को हवा में उड़ा दिया है। तेजस्वी ने प्रेस कांफ्रेंस कर जैसे ही ये मुद्दा उठाया, वैसे ही सत्ता पक्ष से लेकर आयोग तक हर कोई हरकत में आ गया।तेजस्वी यादव ने प्रेस के सामने कहा कि जब उन्होंने वोटर लिस्ट में अपना नाम EPIC नंबर से खोजना चाहा तो कोई रिकॉर्ड नहीं मिला। उन्होंने सवाल खड़ा किया कि जब नेता प्रतिपक्ष का नाम ही लिस्ट से गायब कर दिया जाए तो आम जनता का क्या हाल होगा? तेजस्वी का आरोप है कि खास तौर पर गरीब, पिछड़े और अल्पसंख्यक मतदाताओं के नाम बड़ी संख्या में काटे जा रहे हैं ताकि सत्ता पक्ष को फायदा पहुंचे। तेजस्वी के मुताबिक हर विधानसभा में औसतन 20 से 30 हजार नाम काट दिए गए हैं, जिससे कुल 65 लाख से ज्यादा मतदाता सूची से बाहर कर दिए गए हैं।
तेजस्वी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि उन्होंने खुद SIR यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के तहत फॉर्म भरा था, फिर भी उनका नाम नहीं आया। तेजस्वी ने सीधे चुनाव आयोग पर निशाना साधा कि पहले आयोग जब भी लिस्ट जारी करता था तो उसमें शिफ्ट हुए लोगों, मृत लोगों या दोहरे नामों का ब्योरा साफ दिया जाता था, लेकिन इस बार मतदाताओं के पते तक गायब कर दिए गए हैं। ऐसे में कोई कैसे पता लगाए कि आखिर उसका नाम क्यों कटा?तेजस्वी ने दावा किया कि उनके घर में भी एक नाम जोड़ा गया, लेकिन एक का काट दिया गया। यही हाल पूरे बिहार में है। उन्होंने चेतावनी दी कि यह वोट कटौती नहीं बल्कि वोटबंदी है। उनका आरोप है कि सत्ता पक्ष जानबूझ कर कमजोर तबकों के वोट काट कर चुनावी खेल बदलना चाहता है। इस पूरे मामले को तेजस्वी ने सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने का इशारा दिया है। साथ ही राजद और इंडिया गठबंधन ने राज्य भर में जागरूकता अभियान छेड़ने की घोषणा की है ताकि लोग अपने वोट के अधिकार को लेकर सजग रहें।

तेजस्वी के इस दावे पर चुनाव आयोग ने भी देर नहीं लगाई। पटना के जिला प्रशासन ने तुरंत जांच कर रिपोर्ट दी कि तेजस्वी यादव का नाम वोटर लिस्ट में पहले भी था और अभी भी दर्ज है। पहले उनका नाम बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के पुस्तकालय भवन स्थित मतदान केंद्र संख्या 171 में था, अब ड्राफ्ट लिस्ट में मतदान केंद्र संख्या 204 में उनका नाम क्रम संख्या 416 पर दर्ज है। आयोग ने कहा कि EPIC नंबर से रिकार्ड न मिलने का कारण टेक्निकल गड़बड़ी या अपडेट प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन नाम सूची में है।चुनाव आयोग ने यह भी साफ किया कि SIR के दौरान 65 लाख नाम हटाए गए हैं लेकिन ये नाम किसी राजनीतिक साजिश के तहत नहीं, बल्कि तय प्रक्रिया के तहत हटे हैं। इनमें से 22 लाख से ज्यादा मतदाता मृत पाए गए, करीब 36 लाख स्थायी रूप से बिहार से बाहर चले गए या अनुपस्थित पाए गए और 7 लाख दोहरे नाम थे। आयोग ने कहा कि यह विशेष पुनरीक्षण मतदाता सूची को दुरुस्त करने और फर्जी नाम हटाने के लिए जरूरी था। आयोग के मुताबिक अगर किसी मतदाता को लगता है कि उनका नाम गलती से कटा है तो वे दावे-आपत्ति के लिए निर्धारित समय में आवेदन कर सकते हैं।
वहीं सत्ता पक्ष यानी NDA के नेताओं ने तेजस्वी पर पलटवार किया कि जब जनता ने ही राजद को वोट देना बंद कर दिया तो ये लोग अब वोटर लिस्ट पर सवाल उठाकर सियासी जमीन बचाना चाहते हैं। जदयू और भाजपा नेताओं ने कहा कि तेजस्वी को अगर इतनी ही चिंता है तो पहले अपनी पार्टी में लोकतंत्र ठीक कर लें। NDA नेताओं का कहना है कि मतदाता सूची पूरी तरह पारदर्शी प्रक्रिया से बनी है और हर नागरिक को इसका पूरा हक है कि वह सूची में अपना नाम जांचे और जरूरत पड़े तो सुधार कराए।इस बीच तेजस्वी यादव और राहुल गांधी ने इस मुद्दे को और बड़ा बनाने के लिए बिहार के कई जिलों में ‘वोट बचाओ यात्रा’ शुरू करने का ऐलान कर दिया है। विपक्ष का दावा है कि SIR के जरिए गरीबों और अल्पसंख्यकों के मताधिकार पर हमला किया जा रहा है। तेजस्वी और राहुल इसे नई वोटबंदी करार दे रहे हैं। उधर सत्ता पक्ष इसे विपक्ष का ड्रामा बता रहा है।
इस पूरी लड़ाई के बीच आम मतदाता एक बार फिर कंफ्यूज नजर आ रहा है। कहीं नाम कटा है तो कोई नया जुड़ा है। ग्रामीण इलाकों में जहां इंटरनेट और मोबाइल की पहुंच सीमित है, वहां लोग अभी तक ड्राफ्ट लिस्ट की सच्चाई से अनजान हैं। BLO यानी बूथ लेवल ऑफिसर घर-घर जाकर जानकारी तो देते हैं लेकिन बहुत से लोग जागरूक नहीं हैं कि अगर उनका नाम ड्राफ्ट लिस्ट में नहीं है तो उन्हें फॉर्म कैसे भरना है।अब देखना यह होगा कि तेजस्वी यादव के इस बड़े दावे से बिहार की सियासत में क्या असर पड़ता है। क्या विपक्ष इसे जनता के बीच बड़ा मुद्दा बना पाएगा या चुनाव आयोग के तर्क लोगों को भरोसा दिला पाएंगे? यह तो तय है कि जैसे-जैसे बिहार चुनाव करीब आएगा, वोटर लिस्ट को लेकर सवाल और आरोप-प्रत्यारोप और तेज़ होंगे। विपक्ष इसे गरीबों की आवाज बता रहा है तो सत्ता पक्ष इसे विपक्ष की हताशा का हथकंडा करार दे रहा है।
बिहार में सियासत के इस नए अध्याय में वोटर लिस्ट अब महज दस्तावेज नहीं, बल्कि चुनावी रणभूमि का सबसे बड़ा हथियार बन गई है। चुनाव आयोग को अब यह साबित करना होगा कि उसकी प्रक्रिया पारदर्शी है और हर वोटर का नाम सही जगह दर्ज है। साथ ही विपक्ष को भी सबूत के साथ अपने दावे को जनता के सामने रखना होगा। लोकतंत्र में वोट सबसे बड़ा अधिकार है, और अगर इसे लेकर शक की सुई घूम गई तो नतीजे सिर्फ चुनावी नहीं बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भी असर डालेंगे। बिहार इस सियासी रण के बीच क्या फैसला सुनाएगा, यह आने वाले दिनों में और साफ होगा। फिलहाल तो वोटर लिस्ट ने सबको अपने-अपने पाले में खड़ा कर दिया है।