‘माई बहिन मान योजना’ पर दो दावेदार बिहार में महिला वोट बना सियासत का मैदान

अजय कुमार,वरिष्ठ पत्रकार
बिहार की सियासत में इन दिनों महिलाओं को लेकर सियासी बिसात बिछ चुकी है। एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं, जो लंबे समय से महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए योजनाओं का पिटारा खोलते रहे हैं, तो दूसरी ओर महागठबंधन के भीतर कांग्रेस और राजद के बीच भी महिला वोट बैंक को लेकर खींचतान तेज हो गई है। तेजस्वी यादव जहां ‘माई बहिन मान योजना’ के जरिए महिलाओं के सम्मान और आर्थिक सशक्तिकरण की बात कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस ने भी ठीक वैसी ही योजना की घोषणा कर दी है। दिलचस्प बात यह है कि योजना का नाम और वादा दोनों दलों का एक ही है, लेकिन इसके पीछे की राजनीति एक-दूसरे से काफी जुदा है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब बिहार में शराबबंदी लागू की थी, तब उसका बड़ा आधार महिलाओं का समर्थन ही था। गांव-देहात की महिलाओं ने इस फैसले का खुलकर स्वागत किया था, और माना गया कि नीतीश ने यह कदम महिलाओं के हित में उठाया था। इसके बाद महिलाओं के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण, साइकल योजना, पोशाक योजना और हाल ही में महिला कर्मियों को पोस्टिंग स्थल पर आवास की सुविधा जैसी घोषणाओं से यह संदेश देने की कोशिश की गई कि सरकार महिलाओं के साथ है।

लेकिन अब मुकाबला सिर्फ नीतीश और विपक्ष के बीच नहीं रह गया है। महागठबंधन के दो बड़े घटक दल राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस अब आपस में ही महिला वोटरों को लुभाने की होड़ में लग गए हैं। दिसंबर 2024 में तेजस्वी यादव ने ‘माई बहिन मान योजना’ की घोषणा की थी। इस योजना के तहत उन्होंने वादा किया था कि अगर बिहार में महागठबंधन की सरकार बनती है तो हर जरूरतमंद महिला को ₹2500 की मासिक सम्मान राशि उनके खाते में सीधे ट्रांसफर की जाएगी। तेजस्वी ने इस घोषणा के साथ ही महिला वर्ग से भावनात्मक जुड़ाव बनाने की कोशिश की और कहा कि उनके 17 महीने के कार्यकाल में उन्होंने हर वादा निभाया।

तेजस्वी की इस घोषणा के करीब पांच महीने बाद कांग्रेस ने भी हुबहू वही योजना अपने नाम से शुरू कर दी। मई 2025 में कांग्रेस ने ‘माई बहिन मान योजना’ का औपचारिक एलान किया और महिलाओं से मिस कॉल के जरिए जुड़ने की अपील शुरू की। पार्टी ने कहा कि बिहार में अगर महागठबंधन की सरकार बनती है, तो हर जरूरतमंद महिला को ₹2500 प्रति माह की सम्मान राशि दी जाएगी। यह एलान अलका लांबा और बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश कुमार ने मिलकर किया। इसके बाद राज्यभर में पोस्टर, बैनर और सोशल मीडिया के जरिए इस योजना को प्रचारित किया गया।

कांग्रेस की इस पहल से राजद खेमे में हलचल मच गई। पार्टी को लगा कि तेजस्वी यादव की मूल पहल को कांग्रेस भुना रही है और महिला वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश कर रही है। योजना का नाम, लक्ष्य और राशि – सब कुछ एक जैसा होने के कारण कांग्रेस और राजद के बीच ‘क्रेडिट’ की लड़ाई शुरू हो गई है। इससे यह सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या महागठबंधन के भीतर तालमेल की कमी है, या फिर दोनों दल एक-दूसरे पर भरोसा नहीं कर पा रहे।

महागठबंधन की बैठकें तो होती हैं, लेकिन जब मुख्यमंत्री पद के चेहरे की बात आती है तो कांग्रेस पीछे हटती नजर आती है। जब हाल ही में कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु से पूछा गया कि क्या तेजस्वी यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा माना जाए, तो उन्होंने साफ जवाब देने से बचते हुए कहा कि तेजस्वी समन्वय समिति के नेता हैं। इससे राजद को यह संकेत मिला कि कांग्रेस फिलहाल तेजस्वी के नेतृत्व को खुलकर स्वीकार नहीं करना चाहती।

राजद का कहना है कि तेजस्वी यादव महागठबंधन के सर्वमान्य नेता हैं और चुनाव बाद वही मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन कांग्रेस की तरफ से जिस तरह से अस्पष्ट बयान दिए जा रहे हैं, उससे यह संदेश जा रहा है कि पार्टी अंदर ही अंदर कोई और समीकरण साधने की कोशिश में है। कई राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस यह स्थिति इसलिए बनाए रखना चाहती है ताकि सीट बंटवारे के समय वह दबाव की स्थिति में बनी रहे।

अब बात सिर्फ राजनीतिक क्रेडिट की नहीं रह गई है, बल्कि महिला वोट बैंक को लेकर गंभीर रणनीतिक जंग शुरू हो चुकी है। मध्य प्रदेश में ‘लाड़ली बहना योजना’ ने बीजेपी को चुनाव जिताने में बड़ी भूमिका निभाई थी। शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह से महिला मतदाताओं को अपने पक्ष में जोड़ा, उसी रणनीति को अब बिहार में सभी दल अपनाना चाहते हैं। झारखंड में ‘मैया सम्मान योजना’ और महाराष्ट्र में ‘लाडली बहिन योजना’ के अच्छे परिणामों को देखते हुए अब बिहार की सियासत भी महिला वोटरों के इर्द-गिर्द घूमने लगी है।

कांग्रेस और राजद दोनों ही यह जानते हैं कि बिहार की राजनीति में महिलाओं का वोट निर्णायक भूमिका निभा सकता है। महिला मतदाता अब न सिर्फ बड़ी संख्या में मतदान करती हैं, बल्कि वे राजनीतिक रूप से भी सजग हो चुकी हैं। योजनाओं के प्रति उनकी प्रतिक्रियाएं अब पहले से कहीं अधिक अहमियत रखती हैं। ऐसे में ‘माई बहिन मान योजना’ को लेकर कांग्रेस और राजद के बीच चल रही प्रतिस्पर्धा बताती है कि महिला वोटरों को लेकर सियासत कितनी गंभीर हो चुकी है।

इस बीच यह भी सवाल उठता है कि क्या इस योजना को लागू करना वाकई मुमकिन होगा? बिहार जैसे राज्य में जहां वित्तीय संसाधन सीमित हैं, वहां करोड़ों महिलाओं को ₹2500 महीना देना आसान नहीं होगा। यह राज्य के बजट पर भारी बोझ डालेगा और बाकी विकास योजनाएं प्रभावित हो सकती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी योजनाएं चुनावी वादे के रूप में तो आकर्षक होती हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इनकी व्यवहारिकता पर सवाल खड़े होते हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यह योजना सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं, बल्कि गठबंधन की आंतरिक राजनीति को भी प्रभावित करने वाली है। अगर कांग्रेस इस योजना को लेकर महिलाओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत कर लेती है, तो उसे सीट बंटवारे और नेतृत्व के सवाल पर ज्यादा मजबूती मिलेगी। वहीं राजद के लिए यह योजना तेजस्वी यादव की छवि और नेतृत्व को स्थापित करने का जरिया है। दोनों दलों की मंशा एक ही है महिला वोट बैंक में बड़ी हिस्सेदारी लेकिन रास्ता अलग-अलग है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार की महिलाएं किस पर भरोसा जताती हैं। क्या तेजस्वी यादव के भावनात्मक जुड़ाव का असर ज़्यादा होगा या कांग्रेस के संगठनात्मक प्रयास रंग लाएंगे? और क्या यह रणनीति महागठबंधन को मजबूत करेगी या अंततः उसकी कमजोरी बन जाएगी? आने वाले दिनों में जब चुनावी सरगर्मी तेज होगी, तब इन सवालों के जवाब भी साफ होते जाएंगे। फिलहाल इतना तय है कि बिहार की राजनीति में ‘बहिनों’ को लेकर सियासी घमासान अपने चरम पर है।

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