बिहार चुनाव से पहले बीजेपी की सियासत में नया रंग, दिलीप जायसवाल की टीम ने बांधा जातीय गठबंधन

अजय कुमार,वरिष्ठ पत्रकार
बिहार में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लगातार यात्राएं, जनसभाएं और पार्टी बैठकों के जरिए बीजेपी ने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं कि वह इस बार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। इन्हीं तैयारियों के बीच बिहार बीजेपी ने अपने प्रदेश संगठन का नया गठन कर एक बड़ा सियासी दांव चला है। पार्टी ने एक ओर जहां पुराने नेताओं को बनाए रखा है, वहीं दूसरी ओर नए चेहरों को भी संगठन में शामिल कर सामाजिक संतुलन और जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है। प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल के नेतृत्व में गठित इस 35 सदस्यीय टीम में पार्टी ने सवर्ण, ओबीसी, दलित और अतिपिछड़े समुदायों को अलग-अलग अनुपात में प्रतिनिधित्व देकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह हर वर्ग को साथ लेकर चलना चाहती है।
भाजपा ने इस संगठन में 13 प्रदेश उपाध्यक्ष, 14 प्रदेश मंत्री, 5 प्रदेश महामंत्री, एक कोषाध्यक्ष और दो सह-कोषाध्यक्ष नियुक्त किए हैं। दिलीप जायसवाल की यह टीम 60 प्रतिशत तक पूर्व अध्यक्ष सम्राट चौधरी की टीम से मेल खाती है, जिससे स्पष्ट है कि पार्टी ने निरंतरता और अनुभव को प्राथमिकता दी है। वहीं, इस बार 15 नए चेहरों को भी मौका दिया गया है, जिससे पार्टी में नई ऊर्जा का संचार हो सके। बीजेपी ने इस संगठन को महज एक औपचारिक टीम नहीं बनाया है, बल्कि यह एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है, जिसमें अगड़े, पिछड़े, अति पिछड़े और दलित समुदायों को ध्यान में रखते हुए प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया गया है।
यदि जातीय आधार पर नए संगठन की बात करें, तो सबसे अधिक स्थान सवर्ण नेताओं को दिया गया है। बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक माने जाने वाले ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ समुदायों को संगठन में भरपूर प्रतिनिधित्व मिला है। कुल मिलाकर 15 सवर्ण नेता नई टीम का हिस्सा हैं, जो कुल पदों का लगभग 43 प्रतिशत है। वहीं, अतिपिछड़े वर्ग से 9 नेताओं को शामिल किया गया है, जो कि पिछली बार की तुलना में दोगुना है। यह इस बात का संकेत है कि बीजेपी ने अतिपिछड़ा वोट बैंक साधने के लिए संगठन स्तर पर प्रयास शुरू कर दिए हैं। ओबीसी समुदाय को जहां पिछली बार से कम स्थान दिया गया है, वहीं दलित समुदाय के 4 नेताओं को टीम में रखा गया है। मुस्लिम समुदाय को इस बार भी कोई स्थान नहीं मिला है, जो पार्टी की स्पष्ट वैचारिक दिशा को दर्शाता है।
प्रदेश उपाध्यक्षों की सूची में भी जातीय संतुलन नजर आता है। इनमें दो राजपूत, तीन वैश्य, दो दलित, एक ब्राह्मण, एक भूमिहार, एक कुशवाहा, एक सहनी, एक कहार और एक कुर्मी नेता शामिल हैं। प्रदेश महामंत्रियों में एक ब्राह्मण, एक भूमिहार, एक दलित, एक कायस्थ और एक कुर्मी समुदाय के नेता को जगह दी गई है। प्रदेश मंत्रियों की सूची और भी दिलचस्प है। इसमें तीन भूमिहार, तीन राजपूत, एक यादव, एक नोनिया, एक कुशवाहा, एक बढ़ई, एक रविदास और एक साहू समुदाय के नेता शामिल हैं। प्रदेश कोषाध्यक्ष ब्राह्मण समुदाय से हैं, जबकि दोनों सह-कोषाध्यक्ष कायस्थ और वैश्य समुदायों से आते हैं। इस पूरी संरचना से यह स्पष्ट होता है कि बीजेपी ने सामाजिक समीकरण के साथ-साथ अपने कोर वोट बैंक को संतुष्ट रखने का प्रयास किया है।
संगठन में जिन जातियों को स्थान दिया गया है, उनमें कई ऐसे समुदाय हैं जो राजनीतिक रूप से निर्णायक माने जाते हैं। खासकर सवर्ण समुदाय में ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और वैश्य वर्ग बिहार में बीजेपी के सबसे वफादार वोटर रहे हैं। यही कारण है कि इन्हें संगठन में प्रमुखता दी गई है। वहीं, अतिपिछड़ा वर्ग जो कि राज्य की कुल आबादी का करीब 35 प्रतिशत है, अब बीजेपी के लिए एक बड़ा टारगेट ग्रुप बन गया है। प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल स्वयं भी इसी वर्ग से आते हैं, जिससे पार्टी की प्राथमिकता और स्पष्ट हो जाती है। यह वर्ग अब तक नीतीश कुमार का परंपरागत आधार रहा है, लेकिन भाजपा अब इस वर्ग को अपने पाले में लाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है।
इसी के साथ बीजेपी ने गैर-यादव ओबीसी समुदाय पर भी ध्यान केंद्रित किया है। संगठन में यादव समुदाय से केवल एक नेता को शामिल किया गया है, जिससे यह संदेश गया है कि पार्टी अब गैर-यादव ओबीसी को साधने की नीति पर काम कर रही है। यह वर्ग पिछले कई वर्षों से लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद का वोट बैंक रहा है, लेकिन भाजपा को लगता है कि गैर-यादव ओबीसी में अभी भी वह सेंध लगा सकती है। यही वजह है कि यादवों की अपेक्षा नोनिया, कुशवाहा, कहार, साहू, बढ़ई जैसे समुदायों को अधिक प्रतिनिधित्व दिया गया है।
प्रधानमंत्री मोदी की हालिया बिहार यात्रा और लगातार हो रहे कार्यक्रम इस बात का संकेत हैं कि पार्टी बिहार चुनाव को लेकर पूरी तरह गंभीर है। उन्होंने राज्य के नेताओं को जनता से सीधे संवाद बढ़ाने और केंद्र की योजनाओं को ज़मीनी स्तर तक पहुंचाने का निर्देश दिया है। वहीं दूसरी ओर, विपक्ष खासकर कांग्रेस और राजद इन गतिविधियों पर नजर बनाए हुए है। राहुल गांधी के प्रस्तावित बिहार दौरे को लेकर भाजपा ने उन्हें अवसरवादी बताते हुए कहा है कि वे केवल चुनावों के समय ही बिहार की याद करते हैं, जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दस वर्षों में राज्य के पचास से अधिक दौरे किए हैं। ऐसे में बीजेपी जनता के बीच अपनी सक्रियता और समर्पण को मुद्दा बनाकर वोटरों को लुभाने की रणनीति पर काम कर रही है।
बिहार में जातीय गणित हमेशा से राजनीति की धुरी रहा है। ऐसे में बीजेपी का यह संगठनात्मक परिवर्तन साफ दर्शाता है कि पार्टी जातीय संतुलन के साथ-साथ अपने कोर समर्थकों को भी बनाए रखना चाहती है। इस नई टीम के गठन से न सिर्फ कार्यकर्ताओं में उत्साह देखने को मिल रहा है, बल्कि यह भी साफ है कि बीजेपी अब जातिगत समीकरणों को नए ढंग से परिभाषित करने की दिशा में बढ़ रही है। पार्टी की कोशिश है कि सवर्णों को जोड़े रखते हुए वह उन तबकों तक भी पहुंचे जो अब तक नीतीश कुमार या विपक्षी दलों के खेमे में थे। इसलिए, दिलीप जायसवाल की इस नई टीम को सिर्फ संगठनात्मक ढांचा नहीं बल्कि चुनावी तैयारी का एक मजबूत आधार माना जा रहा है, जो आने वाले महीनों में चुनावी नतीजों को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकता है।