बिहार में रिकॉर्ड मतदान, जनता ने दिखाया लोकतंत्र की ताकत, किसके हक में लहर?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में 18 जिलों की 121 सीटों पर रिकॉर्ड 65.08% मतदान हुआ। महिलाओं और युवाओं की बढ़ी भागीदारी से सियासी माहौल गरम है। सत्ता में भरोसे या बदलाव की लहर किसके पक्ष में जाएगी जनता की ताकत, अब सबकी नजरें नतीजों पर।


6 नवंबर 2025 को बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 18 जिलों की 121 सीटों पर मतदान संपन्न हुआ और राज्य में लगभग 65.08 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। यह न केवल अब तक का सबसे उच्च मतदान प्रतिशत है बल्कि राजनीतिक दलों और विश्लेषकों में यह बहस भी पैदा कर गया कि इस मतदान वृद्धि का फायदा किसको मिलेगा। सत्तारूढ़ गठबंधन इसे अपनी योजनाओं और विकास कार्यों के प्रति जनता के भरोसे के रूप में देख रहा है, जबकि विपक्ष इसे बदलाव की लहर के संकेत के रूप में ले रहा है। इतिहास यह दिखाता है कि बिहार में मतदान प्रतिशत और सत्ता परिवर्तन के बीच हमेशा प्रत्यक्ष संबंध नहीं रहा है।1952 से लेकर 1977 तक बिहार में मतदान में धीरे-धीरे वृद्धि होती रही। 1977 में मतदान लगभग 58.40 प्रतिशत था, जबकि 1980 में यह 56.70 प्रतिशत ही रहा। 1990 में पहली बार मतदान 62.10 प्रतिशत पर पहुँचा और उसी साल लालू प्रसाद यादव की पार्टी सत्ता में आई। इसके बाद 1995 और 2000 में मतदान लगातार 60 प्रतिशत से अधिक रहा, लेकिन लालू यादव की सत्ता पर कोई असर नहीं पड़ा। 2005 में फरवरी और अक्टूबर में मतदान क्रमशः 58.20 प्रतिशत और 57.60 प्रतिशत रहा, और सत्ता बदल गई। इस तरह बिहार में उच्च मतदान हमेशा सत्ता परिवर्तन का संकेत नहीं रहा।
इस बार पहले चरण में रिकॉर्ड मतदान में कई कारण सामने आए हैं। सबसे पहले, चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची में व्यापक सुधार किया गया, जिसमें मृत, डुप्लीकेट या स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाए गए। इससे वास्तविक मतदाता आधार स्पष्ट हुआ और प्रतिशत में वृद्धि दिखाई दी। दूसरी ओर, महिलाओं और युवाओं की सक्रिय भागीदारी ने मतदान को ऊँचा किया। सरकारी योजनाओं के तहत महिला बैंक खातों में धनराशि, मुफ्त बिजली, सामाजिक सुरक्षा पेंशन और रोजगार योजनाओं ने मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक खींचा। युवा मतदाता भी पहले से अधिक सक्रिय हुए और नए विकल्पों की ओर रूख दिखाया।तीसरा कारण चुनाव प्रचार और घोषणाओं का प्रभाव रहा। सत्तारूढ़ गठबंधन ने विकास और योजनाओं पर जोर दिया, जबकि विपक्ष ने बदलाव और रोजगार के वादों के माध्यम से मतदाताओं को आकर्षित किया। इस बार राजनीतिक दलों की गतिविधियाँ, सोशल मीडिया प्रचार, और जनता तक पहुंचाने के प्रयास मतदान में वृद्धि का महत्वपूर्ण कारण बने। मतदान केंद्रों की बेहतर व्यवस्था, तकनीकी सहायता और निगरानी ने भी मतदान सुगम बनाया।
इस उच्च मतदान का राजनीतिक विश्लेषण जटिल है। सत्तारूढ़ गठबंधन इसे जनता के विकास पर भरोसे का संकेत मान रहा है, जबकि विपक्ष इसे बदलाव की लहर के रूप में देख रहा है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि पिछले चुनावों में भी उच्च मतदान हमेशा सत्ता परिवर्तन का संकेत नहीं रहा। 1995 और 2000 में 60 प्रतिशत से अधिक मतदान होने के बावजूद सत्ता नहीं बदली, जबकि 2005 में कम मतदान होने के बावजूद सत्ता बदल गई। इसलिए इस बार भी सिर्फ मतदान प्रतिशत को आधार मानकर परिणाम की भविष्यवाणी करना सही नहीं होगा।इस बार मतदान में वृद्धि मुख्य रूप से ग्रामीण और महिला मतदाताओं में हुई है। महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने ग्रामीण इलाकों में मतदान को ऊँचा किया, जबकि युवा मतदाता शहरी क्षेत्रों में सक्रिय हुए। यह दर्शाता है कि मतदाता सिर्फ परंपरागत वोट बैंक नहीं रहे, बल्कि सक्रिय और जागरूक हो गए हैं। इसके साथ ही, मतदाता सूची में सुधार (SIR) के कारण वास्तविक मतदाता संख्या स्पष्ट हुई और प्रतिशत में वृद्धि हुई। यह आंकड़ा बताता है कि चुनाव प्रक्रिया में सुधार और लोकतंत्र की सक्रियता दोनों योगदान कर रहे हैं।
मतदान वृद्धि का प्रभाव किसके पक्ष में जाएगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है। अगर यह वृद्धि मुख्य रूप से सत्तारूढ़ गठबंधन के समर्थक वर्ग में हुई, तो यह उनके लिए सकारात्मक संकेत हो सकता है। वहीं, अगर यह वृद्धि विपक्षी या नए दलों के मतदाताओं में हुई है, तो यह बदलाव की संभावना को मजबूत कर सकती है। इसके अलावा, मतदान प्रतिशत में वृद्धि को सिर्फ उत्साही वोटर वृद्धि के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे सामाजिक और क्षेत्रीय बदलाव का संकेत भी माना जाना चाहिए।पहले चरण में मतदान ने यह स्पष्ट किया कि बिहार के मतदाता सक्रिय हैं। वे सामाजिक और आर्थिक बदलावों के प्रति जागरूक हैं और चुनाव प्रक्रिया में भाग ले रहे हैं। यह मतदान केवल संख्या का खेल नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की वास्तविक सक्रियता और जनता की भागीदारी का प्रतीक है। इससे यह संदेश भी जाता है कि मतदाता अपने अधिकार का उपयोग करने में पूरी तरह सक्षम हैं और वे अब केवल परंपरागत विकल्पों पर निर्भर नहीं रहना चाहते।
राजनीतिक दलों के लिए यह चुनौतीपूर्ण है कि वे इस रिकॉर्ड मतदान का सही विश्लेषण करें और अपने रणनीतिक कदम तय करें। यह देखना होगा कि कौन से क्षेत्र और किस वर्ग में मतदान वृद्धि हुई। जिलावार और बूथ स्तर के आंकड़े यह बताएंगे कि वृद्धि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है या शहरी, महिलाओं में अधिक है या पुरुषों में, और किस सामाजिक समूह की भागीदारी बढ़ी है। इस विश्लेषण के आधार पर ही भविष्य की चुनावी रणनीतियाँ तैयार की जा सकती हैं।अगले चरण के मतदान और मतगणना के दिन ही यह स्पष्ट होगा कि इस उच्च मतदान का वास्तविक लाभ किस गठबंधन को मिलेगा। यह चुनाव न केवल सीटों की संख्या के आधार पर, बल्कि मतदाता व्यवहार, क्षेत्रीय और सामाजिक समीकरण, उम्मीदवार की छवि और गठबंधन रणनीतियों के आधार पर तय होगा। बिहार में उच्च मतदान ने यह साबित कर दिया है कि लोकतंत्र में जनता की सक्रियता महत्वपूर्ण है और यह किसी भी दल के लिए अनदेखी नहीं की जा सकती।
इस पहले चरण के रिकॉर्ड मतदान ने यह भी दिखाया कि मतदाता अब जागरूक हैं और वे बदलाव के संकेत के रूप में अपनी भागीदारी बढ़ा रहे हैं। यह सिर्फ सत्ता परिवर्तन का संकेत नहीं है, बल्कि लोकतंत्र में जनता की सक्रिय भागीदारी और मतदान की सच्ची शक्ति का प्रमाण है। बिहार की राजनीति में यह आंकड़ा भविष्य के लिए संकेत देता है कि मतदाता अब अपने निर्णय स्वयं लेने और अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार मतदान करने में समर्थ हैं।बिहार के पहले चरण के मतदान ने यह स्पष्ट किया कि लोकतंत्र की असली ताकत जनता में है। चाहे यह सत्तारूढ़ गठबंधन के पक्ष में हो या विपक्ष के पक्ष में, यह मतदान जनता की सक्रिय भागीदारी का प्रतीक है। इतिहास ने यह सिखाया है कि केवल मतदान प्रतिशत से ही सत्ता परिवर्तन का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। इस बार भी यह देखने की जरूरत होगी कि किस क्षेत्र और वर्ग में मतदान वृद्धि हुई, और इसका वास्तविक परिणाम सीटों में कैसे दिखाई देगा। अंततः बिहार में पहले चरण का यह रिकॉर्ड मतदान यह दर्शाता है कि मतदाता अब सिर्फ वोट देने वाले नहीं रहे, बल्कि वे लोकतंत्र की दिशा तय करने वाले निर्णायक पात्र बन चुके हैं। यह चुनाव न केवल राजनीतिक दलों के लिए, बल्कि पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है कि जनता की सक्रियता और मतदान की सच्ची शक्ति ही लोकतंत्र की नींव है।



