बिहार में ‘अगस्त क्रांति’ राहुल-तेजस्वी की जोड़ी बनाम मोदी-नीतीश की सत्ता परीक्षा

नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी की जोड़ी पिछले दो दशकों से बिहार की सत्ता पर काबिज रही है। इतने लंबे समय के वनवास के बाद कांग्रेस और आरजेडी अब सत्ता की कुंजी पाने के लिए एकजुट होकर मैदान में उतर रहे हैं। पटना में हुई महागठबंधन की बैठक में यह फैसला लिया गया कि रक्षाबंधन के बाद राहुल गांधी और तेजस्वी यादव साथ मिलकर राज्य के नौ प्रमंडलों में यात्रा और रैलियों का बड़ा अभियान चलाएंगे। इस अभियान को ‘अगस्त क्रांति’ नाम दिया गया है, ताकि जनता के बीच यह संदेश जाए कि अब बदलाव का समय आ चुका है। तेजस्वी यादव का कहना है कि बिहार की जनता को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है, वोटर लिस्ट में बड़े पैमाने पर नाम काटे जा रहे हैं और राज्य अपराध व भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है। उन्होंने सीएजी रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि हाल ही में करीब 70 हजार करोड़ रुपये का महाघोटाला सामने आया है। इन मुद्दों को लेकर वे और राहुल गांधी सीधे जनता के बीच जाएंगे।

महागठबंधन की रणनीति साफ है कि वे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सिंचाई जैसे बुनियादी मुद्दों को चुनावी बहस का केंद्र बनाएंगे। तेजस्वी का कहना है कि पढ़ाई, दवाई, कमाई और सिंचाई के मामले में बिहार सबसे पीछे है, जबकि पलायन, गरीबी और बेरोजगारी में सबसे आगे है। यही कारण है कि वे इस बार गांव-गांव और बूथ स्तर तक जाकर लोगों से संवाद करेंगे। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने स्पष्ट किया कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की संयुक्त यात्राओं में कांग्रेस और अन्य घटक दलों के बड़े नेता भी शामिल होंगे। इसका उद्देश्य जनता को यह बताना है कि नीतीश सरकार ने 20 साल में क्या किया और क्या नहीं किया।यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब विपक्ष लगातार आरोप लगा रहा है कि मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां की जा रही हैं। कुछ दिन पहले राहुल गांधी और तेजस्वी यादव पटना की सड़कों पर उतरकर चुनाव आयोग कार्यालय तक मार्च कर चुके हैं। उनका कहना है कि गरीब और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं के नाम जानबूझकर काटे जा रहे हैं, जिससे लोकतंत्र पर हमला हो रहा है। अब यही मुद्दे वे अपनी यात्राओं के दौरान लोगों के सामने रखेंगे।

बिहार के नौ प्रमंडलों पटना, मगध, तिरहुत, दरभंगा, कोसी, पूर्णिया, भागलपुर, मुंगेर और सारण में होने वाली इन रैलियों से महागठबंधन यह कोशिश करेगा कि वह हर वर्ग तक अपना संदेश पहुंचा सके। 2020 के चुनाव में सारण, तिरहुत और मगध में महागठबंधन मजबूत रहा था, जबकि बाकी प्रमंडलों में एनडीए को बढ़त मिली थी। इस बार राहुल और तेजस्वी की जोड़ी उन इलाकों पर फोकस करेगी जहां पिछली बार कमजोर प्रदर्शन रहा था।महागठबंधन के लिए यह चुनाव बेहद अहम है। 2020 में तेजस्वी यादव ने अकेले दम पर नीतीश कुमार को कड़ी टक्कर दी थी, लेकिन कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन के चलते सत्ता हासिल नहीं हो सकी। अब राहुल गांधी पहले से ज्यादा सक्रिय हैं। उन्होंने बिहार के कई दौरे किए और सामाजिक न्याय के मुद्दों को उभारा। यही कारण है कि इस बार दोनों दल मिलकर दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक वोटरों को साधने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

दूसरी ओर एनडीए ने साफ कर दिया है कि 2025 में उनका मुख्यमंत्री चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे। प्रधानमंत्री मोदी बिहार के लगातार दौरे कर रहे हैं और विकास योजनाओं की घोषणाएं कर रहे हैं। एनडीए की रणनीति है कि चुनाव विकास और सुशासन के मुद्दों पर लड़ा जाए। सम्राट चौधरी और भाजपा नेता लगातार महागठबंधन पर निशाना साध रहे हैं। उनका कहना है कि तेजस्वी और राहुल भ्रष्टाचार, जंगलराज और जातीय राजनीति की वापसी करना चाहते हैं।हालांकि महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर तनाव भी बढ़ रहा है। वीआईपी नेता मुकेश सहनी ने तेजस्वी यादव से नाराजगी जताई है क्योंकि उन्हें उनकी अपेक्षा के मुताबिक सीटें नहीं मिल रहीं। सहनी ने चुनाव बहिष्कार तक का संकेत दे दिया है। इससे साफ है कि महागठबंधन को भीतर से भी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

सर्वे रिपोर्ट्स में यह दिख रहा है कि महागठबंधन को फिलहाल लगभग 36 प्रतिशत और एनडीए को 35 प्रतिशत समर्थन मिल रहा है। रोजगार के मुद्दे पर महागठबंधन को बढ़त बताई जा रही है। यह स्थिति महागठबंधन के लिए उत्साहजनक है, क्योंकि पिछली बार वे बहुमत से मामूली अंतर से हार गए थे।अब देखना यह होगा कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की यह जोड़ी बिहार की जनता के बीच कितनी पैठ बना पाती है। क्या वे अपने संदेश को उन इलाकों तक पहुंचा पाएंगे जहां एनडीए की पकड़ मजबूत है? क्या वे दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वोटरों को अपने पक्ष में जोड़ पाएंगे?

यह चुनाव विकास बनाम भ्रष्टाचार के साथ-साथ नेतृत्व की विश्वसनीयता की भी लड़ाई बन चुका है। एक तरफ मोदी-नीतीश की अनुभवी जोड़ी है, जो सुशासन और विकास का दावा कर रही है। दूसरी तरफ राहुल-तेजस्वी की युवा जोड़ी है, जो बदलाव, न्याय और अधिकारों की बात कर रही है। अगस्त क्रांति की यह मुहिम कितनी असरदार साबित होगी, यह आने वाले महीनों में साफ होगा।बिहार की राजनीति में यह मुकाबला अब सिर्फ दो गठबंधनों के बीच नहीं रह गया, बल्कि यह जनता के फैसले पर टिका है कि क्या वे पुरानी सत्ता को मौका देंगे या बदलाव की राह चुनेंगे। 20 साल से सत्ता से बाहर कांग्रेस और आरजेडी को अब अपने अभियान से जनता का भरोसा जीतना होगा। वोटर की अंतिम चुप्पी ही तय करेगी कि बिहार की सत्ता पर किसका कब्जा होगा अनुभव की जोड़ी या युवा बदलाव की नई उम्मीद।

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