असम-नागालैंड बॉर्डर पर बुलडोजर एक्शन रेंगमा जंगल में जिहाद, ड्रग्स और घुसपैठ का पर्दाफाश

असम-नागालैंड सीमा पर रेंगमा जंगलों में बीते चार दिनों से चल रहा बुलडोजर एक्शन अब सुर्खियों में है। असम की हिमंता बिस्वा सरमा सरकार ने वनक्षेत्र में अवैध कब्जे हटाने की मुहिम छेड़ दी है, जिसके तहत 3600 एकड़ जमीन पर बने करीब 2000 अवैध घरों और दुकानों को ध्वस्त किया जा रहा है। इस कार्रवाई ने न केवल अवैध अतिक्रमण को उजागर किया है, बल्कि एक चौंकाने वाला खुलासा भी किया है। रेंगमा जंगलों में नागालैंड सीमा से महज दो किलोमीटर दूर एक अवैध मस्जिद का पता चला, जिसे बुलडोजर से जमींदोज कर दिया गया। इस मस्जिद को लेकर कई गंभीर आरोप सामने आए हैं, जिनमें विदेशी फंडिंग, जिहादी ट्रेनिंग, लैंड जिहाद और ड्रग्स रैकेट जैसे सनसनीखेज दावे शामिल हैं। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।रेंगमा जंगल, जो असम और नागालैंड की सीमा पर बसा है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता के लिए जाना जाता है। लेकिन हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में अवैध अतिक्रमण ने वनभूमि को भारी नुकसान पहुंचाया है। असम सरकार ने उड़ियाम घाट इलाके में 3600 एकड़ से अधिक वनभूमि पर हुए कब्जे को हटाने का अभियान शुरू किया। इस अभियान के तहत अब तक 1500 परिवारों को नोटिस भेजकर उनके अवैध निर्माण को ध्वस्त किया जा चुका है। स्थानीय प्रशासन का कहना है कि यह कार्रवाई पर्यावरण संरक्षण और कानून के शासन को स्थापित करने के लिए जरूरी है। लेकिन इस कार्रवाई के दौरान जो खुलासे हुए, उन्होंने पूरे देश का ध्यान इस ओर खींच लिया है।

जंगल के बीच बनी एक अवैध मस्जिद, जो तकरीबन 15 एकड़ जमीन पर फैली थी, इस कार्रवाई का सबसे बड़ा केंद्र बनी। दावा किया जा रहा है कि इस मस्जिद का इस्तेमाल न केवल धार्मिक गतिविधियों के लिए, बल्कि कई गैरकानूनी कार्यों के लिए भी हो रहा था। स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि इस मस्जिद में छोटे बच्चों को जिहादी ट्रेनिंग दी जाती थी। इसके अलावा, मस्जिद को विदेशी फंडिंग से चलाए जाने के दावे भी सामने आए हैं। जांच के दौरान मस्जिद के अंदर से इस्लामिक साहित्य और पैसे के लेन-देन से संबंधित रसीदें बरामद हुईं, जो इन आरोपों को और बल देती हैं। इतना ही नहीं, यह भी दावा किया गया कि मस्जिद की आड़ में लैंड जिहाद को बढ़ावा दिया जा रहा था, जिसमें वनभूमि पर कब्जा कर अवैध बस्तियां बसाई जा रही थीं। स्थानीय लोगों ने यह भी बताया कि मस्जिद के आसपास रहने वाले मुस्लिम परिवार हिंदू परिवारों पर अत्याचार करते थे। इलाके से गुजरने वाली गाड़ियों से अवैध रूप से टैक्स वसूला जाता था। यह टैक्स मस्जिद के संचालकों द्वारा लिया जाता था, जो क्षेत्र में अपनी दबंगई कायम करने का एक तरीका था। दस साल पहले इस इलाके में 24 हिंदू और 30 मुस्लिम परिवार रहते थे। आज हिंदू परिवारों की संख्या बढ़कर 60 हो गई है, जबकि मुस्लिम परिवारों की संख्या 400 तक पहुंच गई है। इस असंतुलित जनसंख्या वृद्धि ने स्थानीय बोडो आदिवासियों में असंतोष पैदा किया, जो इस क्षेत्र के मूल निवासी हैं। हिमंता सरकार ने साफ कर दिया है कि वनभूमि पर अवैध कब्जा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और सभी अवैध निर्माणों को हटाया जाएगा।

इस कार्रवाई के दौरान यह भी सामने आया कि जंगल में अवैध सुपारी की फैक्ट्रियां चल रही थीं, जो पूरी तरह गैरकानूनी थीं। इसके अलावा, ड्रग्स रैकेट के संचालन के भी आरोप लगे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि मस्जिद और इसके आसपास की बस्तियों में कई संदिग्ध गतिविधियां चल रही थीं, जिनमें ड्रग्स की तस्करी भी शामिल थी। इन गतिविधियों ने न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया, बल्कि क्षेत्र की शांति और सुरक्षा को भी खतरे में डाल दिया। हिमंता सरकार ने इन सभी अवैध गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए सख्त कदम उठाए हैं।यह कार्रवाई केवल अवैध निर्माण हटाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक बड़ा सामाजिक और राजनीतिक संदेश भी है। असम में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा लंबे समय से चर्चा में रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी 24 मार्च 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले बांग्लादेशी प्रवासियों को अवैध घोषित किया है और उनकी पहचान, पता लगाने और निर्वासन की प्रक्रिया को तेज करने का आदेश दिया है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कई मौकों पर कहा है कि असम केवल भारतीय नागरिकों का घर है और अवैध घुसपैठियों के लिए कोई जगह नहीं है। उनकी सरकार ने जीरो टॉलरेंस नीति अपनाई है, जिसके तहत अवैध घुसपैठियों को चिह्नित कर कार्रवाई की जा रही है। हाल ही में श्रीभूमि जिले से 20 बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजा गया, जो इस नीति का हिस्सा है।

हालांकि, इस कार्रवाई पर कुछ विवाद भी उठे हैं। विपक्षी दलों और कुछ संगठनों ने सरकार पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का आरोप लगाया है। ग्वालपाड़ा जिले में हाल ही में बेदखली अभियान के दौरान हुई हिंसा में एक युवक की मौत ने इस मुद्दे को और गर्म कर दिया। स्थानीय लोगों और विपक्ष का कहना है कि सरकार की कार्रवाई पक्षपातपूर्ण है और इसका उद्देश्य बंगाली भाषी मुसलमानों को मतदाता सूची से हटाना है। दूसरी ओर, सरकार का तर्क है कि यह कार्रवाई जनसांख्यिकीय संतुलन बनाए रखने और वनभूमि को बचाने के लिए जरूरी है। गुवाहाटी हाई कोर्ट के आदेश के बाद वन विभाग ने इस अभियान को और तेज कर दिया है।इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह कार्रवाई केवल अवैध अतिक्रमण हटाने तक सीमित है, या इसके पीछे कोई बड़ा एजेंडा है? स्थानीय बोडो आदिवासियों का कहना है कि उनकी जमीन और संस्कृति को बचाने के लिए यह कदम जरूरी था। वहीं, कुछ लोग इसे धार्मिक और राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं। जो भी हो, हिमंता सरकार की यह मुहिम न केवल असम, बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई है। पर्यावरण संरक्षण, अवैध घुसपैठ और सामाजिक संतुलन जैसे मुद्दों पर यह कार्रवाई एक नई बहस छेड़ रही है।

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