छोटे राज्यों के हिमायती थे आंबेडकर, यूपी-बिहार को बांटने का सपना देखा था!

देश में छोटे राज्यों के निर्माण की मांग आज भी समय-समय पर उठती रहती है। खासकर उत्तर प्रदेश को विभाजित करने की मांग कई बार सुर्खियों में रही है। लेकिन कम ही लोगों को यह पता है कि इसकी नींव संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर ने ही दशकों पहले रख दी थी। डॉ. आंबेडकर ने हमेशा छोटे राज्यों की वकालत की थी। उनका मानना था कि बड़े राज्य न केवल प्रशासनिक रूप से मुश्किल होते हैं, बल्कि लोकतांत्रिक जवाबदेही को भी कमजोर करते हैं। इसके विपरीत छोटे राज्य बेहतर प्रबंधन, प्रशासनिक दक्षता और समान विकास सुनिश्चित करने में सहायक होते हैं।
डॉ. आंबेडकर ने अपनी चर्चित पुस्तक में लिखा था कि बड़े भाषाई राज्यों की अवधारणा लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। उनका कहना था कि यह विचार न केवल अलोकतांत्रिक है, बल्कि लोकतंत्र की भावना से भी असंगत है। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि राज्य का निर्माण न केवल प्रशासनिक सुविधा के लिए होना चाहिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी भी क्षेत्र या समुदाय को उपेक्षित या हाशिए पर महसूस न हो। उनके अनुसार यदि राज्य छोटे होंगे तो आम नागरिक शासन और व्यय पर अधिक नियंत्रण रख सकेंगे, जिससे उत्तरदायित्व और पारदर्शिता में वृद्धि होगी।
डॉ. आंबेडकर ने बिहार को दो भागों में और मध्य प्रदेश को उत्तरी तथा दक्षिणी भागों में विभाजित करने का सुझाव दिया था। उत्तर प्रदेश के संबंध में भी उन्होंने इसे तीन हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव रखा था। उनके अनुसार प्रत्येक नए राज्य की जनसंख्या लगभग दो करोड़ होनी चाहिए। उन्होंने मेरठ, कानपुर और इलाहाबाद (अब प्रयागराज) को इन प्रस्तावित राज्यों की राजधानियां बनाने का सुझाव दिया था। उनका तर्क था कि छोटे राज्यों में खर्च की मांग नियंत्रित रहती है और शासन प्रणाली नागरिकों के अधिक निकट होती है।
उन्होंने यह भी चेतावनी दी थी कि राज्यों के पुनर्गठन में भावनाओं, विशेषकर भाषा आधारित मांगों, को प्राथमिकता देना राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा हो सकता है। उनके अनुसार भाषाई प्रेम एक सकारात्मक विघटनकारी शक्ति में बदल सकता है, जिससे राष्ट्रीय अखंडता पर असर पड़ सकता है। अतः राज्य की सीमाएं तय करते समय प्रशासनिक व्यावहारिकता और राष्ट्रीय एकता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
डॉ. आंबेडकर के इन दूरदर्शी विचारों की झलक हमें वर्ष 2000 में देखने को मिली, जब बिहार से झारखंड और मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ नामक नए राज्य बनाए गए। वहीं 2011 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने प्रशासनिक सुविधा के लिए प्रदेश को पूर्वांचल, पश्चिम प्रदेश, बुंदेलखंड और अवध जैसे चार भागों में बांटने का प्रस्ताव रखा था, हालांकि इसे केंद्र की यूपीए सरकार से समर्थन नहीं मिल सका। आज जब देश में संघवाद और विकेंद्रीकरण की बहस फिर से जोर पकड़ रही है, तो डॉ. आंबेडकर के ये विचार और भी अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं।