डिंपल के अपमान पर अखिलेश का मौन मुस्लिम वोट बैंक बना सपा की बेड़ियां

उत्तर प्रदेश की राजनीति में अखिलेश यादव का मौन इस समय सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है। ये वही अखिलेश यादव हैं जो मंच पर खड़े होकर बीजेपी पर शब्दों के बाण चलाने से कभी पीछे नहीं हटते। वही अखिलेश यादव जो हर बात पर ट्वीट कर सरकार को कठघरे में खड़ा कर देते हैं, वही अखिलेश यादव जब बात अपनी पत्नी की इज़्ज़त पर आई तो अचानक चुप्पी साधे बैठे हैं। चुप्पी भी ऐसी कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं। लेकिन जनता जानती है कि यह मामला कोई मामूली नहीं है। यह उस परिवार की इज़्ज़त का सवाल है जिसने समाजवादी पार्टी को ताकत दी, सत्ता दी और खुद अखिलेश को भी नेताजी के बाद जनता के दिलों में जगह दिलाई। मगर आज वही अखिलेश यादव खामोश हैं और यह खामोशी बहुत कुछ कह रही है।पूरा विवाद संसद भवन के पास की एक मस्जिद से शुरू हुआ, जहां समाजवादी पार्टी के कुछ सांसद बैठक करने पहुंचे थे। डिंपल यादव भी वहां मौजूद थीं। डिंपल साड़ी में थीं। बस, इसी पर मौलाना साजिद रशीदी ने एक टीवी चैनल पर ऐसी घटिया टिप्पणी कर दी, जिसे कोई सभ्य समाज बर्दाश्त नहीं करेगा। साजिद रशीदी वही हैं जो पहले भी विवादित बयान देते रहे हैं। मगर इस बार मामला कुछ अलग था क्योंकि बात सीधे डिंपल यादव के पहनावे को लेकर की गई और उसमें उनके लिए आपत्तिजनक शब्द इस्तेमाल किए गए।
सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुआ तो हंगामा मच गया। बीजेपी तुरंत मैदान में उतर गई। संसद भवन के बाहर बीजेपी की महिला सांसदों ने पोस्टर लेकर प्रदर्शन किया। पोस्टर पर लिखा था ‘धिक्कार है अखिलेश यादव’। राजधानी लखनऊ के चौराहों पर भी पोस्टर लगे। बीजेपी के मंत्री खुलकर बोले कि अखिलेश यादव को शर्म आनी चाहिए कि वो अपनी पत्नी के अपमान पर चुप बैठे हैं। इधर यूपी पुलिस ने मौलाना के खिलाफ केस दर्ज कर दिया। मगर अखिलेश यादव की जुबान अब तक बंद है। वो सिर्फ इतना बोले कि जो कपड़े लोकसभा में पहनकर जाते हैं वही हर जगह पहनेंगे। यानी बात को घुमा दिया, मगर मौलाना पर एक शब्द नहीं बोला। यह वही अखिलेश हैं जो कथा वाचक अनिरुद्धाचार्य महाराज से बीच सभा में उलझ सकते हैं। वो वीडियो किसने नहीं देखा जिसमें अखिलेश खुलकर सवाल करते हैं और अनिरुद्धाचार्य को मंच पर उलझाकर नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। तब उन्हें संत का अपमान करने में कोई हिचक नहीं थी। लेकिन एक मौलाना ने जब उनकी पत्नी पर गंदी बात कह दी तो वो मौलाना के सामने मौन हो गए। यही सियासत है। यही वोट बैंक का गणित है। अखिलेश यादव जानते हैं कि यूपी में मुस्लिम वोट बैंक ही उनका सबसे बड़ा सहारा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक यूपी में करीब 19 फीसदी मुसलमान हैं। यही वो आधार है जिस पर सपा खड़ी है। यादव-मुस्लिम समीकरण के बिना अखिलेश की राजनीति अधूरी है। अखिलेश भलीभांति जानते हैं कि अगर वो खुलकर मौलाना पर निशाना साध देंगे तो एक तबका नाराज हो जाएगा। उसी का डर उनकी जुबान को बंद कर बैठा है।
बीजेपी को ये मौका मिल गया है। बीजेपी को पता है कि अगर अखिलेश की ये चुप्पी जनता के बीच जाती रही तो सपा को बड़ा नुकसान हो सकता है। इसलिए बीजेपी ने महिला सम्मान का मुद्दा उठाकर अखिलेश को उसी के मैदान में घेर लिया है। बीजेपी कह रही है कि जो व्यक्ति महिलाओं के सम्मान की बात करता है, वो अपनी ही पत्नी के अपमान पर खामोश क्यों है? ये सवाल अब गांव-गांव में पूछा जा रहा है। सोशल मीडिया पर ट्रेंड चल रहे हैं ‘धिक्कार है अखिलेश’। बीजेपी आईटी सेल ने इस मुद्दे को हवा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।इस बीच मुस्लिम समाज भी दो हिस्सों में बंटा दिख रहा है। मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने सपा सांसदों की मस्जिद मीटिंग का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि मस्जिद सिर्फ नमाज पढ़ने की जगह नहीं बल्कि सामाजिक चर्चा का मंच भी है। मगर कट्टरपंथी तबका मौलाना रशीदी के साथ खड़ा है जो कह रहा है कि डिंपल यादव को मस्जिद में साड़ी पहनकर नहीं जाना चाहिए था। यानी मुसलमानों के भीतर भी मतभेद है, मगर अखिलेश को पता है कि वो इन मतभेदों में फंसना नहीं चाहते। इसलिए वो चुप हैं।
सपा के अंदर भी हलचल है। पार्टी के कार्यकर्ता कह रहे हैं कि नेताजी होते तो कब का जवाब दे देते। पार्टी के कुछ नेता दबे सुर में मानते हैं कि अखिलेश को एक बयान तो देना ही चाहिए था ताकि कार्यकर्ताओं में संदेश जाए कि परिवार का सम्मान सपा के लिए सबसे ऊपर है। लेकिन अखिलेश के लिए वोट बैंक ज्यादा बड़ा है। वो जानते हैं कि बीजेपी पहले से ही हिंदू वोट को अपने साथ जोड़ने में लगी है। अगर मुस्लिम वोट बैंक में भी सेंध लग गई तो बचा-खुचा भी चला जाएगा। इसलिए चुप्पी उनकी मजबूरी है।सियासत में यही होता है। परिवार और सिद्धांत पीछे छूट जाते हैं, वोट बैंक सबसे ऊपर आ जाता है। डिंपल यादव ने भी कोई बड़ा बयान नहीं दिया। उन्होंने बस इतना कहा कि संसद में जो कपड़े पहनते हैं वही हर जगह पहनेंगी। यानी वो भी विवाद को आगे बढ़ाना नहीं चाहतीं। मगर बीजेपी को तो मौका मिल गया। अब ये मुद्दा पंचायत से लेकर विधानसभा चुनाव तक चलेगा। पोस्टर लगेंगे, धरने होंगे, बयानबाजी होगी। बीजेपी को पता है कि ये मामला सपा की कमजोरी को उजागर करता है।
कुल मिलाकर अखिलेश यादव की चुप्पी उनकी सबसे बड़ी ढाल भी है और सबसे बड़ा खतरा भी। ढाल इसलिए कि मुस्लिम वोट बैंक उनके साथ खड़ा रहेगा। खतरा इसलिए कि यादव वोट बैंक और दूसरे गैर-मुस्लिम वोटर सोचने लगे हैं कि जब परिवार की इज्जत पर कोई खड़ा नहीं होता तो उनके लिए कौन खड़ा होगा। यही सवाल अगले चुनाव में अखिलेश के सामने खड़ा होगा।अखिलेश बोलेंगे या चुप रहेंगे? अब सवाल यही है। मगर इतना तय है कि उनकी ये खामोशी यूपी की सियासत में लंबे समय तक गूंजेगी। और बीजेपी इसे भूलेगी नहीं, बार-बार याद दिलाएगी कि जब बात अपनी पत्नी की इज्जत की थी तब भी अखिलेश यादव वोट बैंक के ताले में बंद हो गए थे। यही है सियासत का असली चेहरा जहां परिवार भी राजनीति से बड़ा नहीं होता।