अहमदाबाद AI-171 हादसा बोइंग की सुरक्षा पर सवाल या सियासी नैरेटिव की उलझन?

12 जून 2025 को अहमदाबाद में एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 का दर्दनाक हादसा सिर्फ एक विमान दुर्घटना नहीं, बल्कि वैश्विक एविएशन इंडस्ट्री पर एक करारा तमाचा बन गया है। बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर मॉडल का यह विमान टेकऑफ के कुछ ही मिनटों बाद क्रैश हो गया, जिसमें 242 में से 241 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। यह हादसा जितना तकनीकी और मानवीय लापरवाही का मामला है, उतना ही सियासी विमर्श और सोशल मीडिया नैरेटिव का भी। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस हादसे के बाद सोशल मीडिया पर सरकार समर्थक माने जाने वाले कई प्रभावशाली हैंडल्स बोइंग के खिलाफ मोर्चा खोलते नजर आए, वहीं सरकार विरोधी माने जाने वाले कुछ अकाउंट्स ने बोइंग को क्लीन चिट देने का प्रयास किया। इससे पूरे विमर्श की दिशा और उसकी निष्पक्षता पर सवाल उठने लगे हैं।
बोइंग की सुरक्षा व्यवस्था, खासकर उसके ड्रीमलाइनर और 737 मैक्स मॉडल्स, पिछले एक दशक से लगातार सवालों के घेरे में रही है। 787 ड्रीमलाइनर, जिसे ‘फ्यूचर ऑफ एविएशन’ के रूप में प्रचारित किया गया था, उसने शुरुआत से ही बैटरी फटने, इंजन फेलियर और फ्यूसलेज में स्ट्रक्चरल कमियों जैसी घटनाओं से बोइंग की गुणवत्ता पर प्रश्नचिह्न लगाए। अहमदाबाद हादसे में प्रारंभिक जांच में जो तथ्य सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले हैं। रिपोर्ट के अनुसार फ्लैप्स और लैंडिंग गियर की गलत सेटिंग, इंजन थ्रस्ट में असंतुलन और स्वचालित कॉकपिट सिस्टम में गड़बड़ी इस भयावह दुर्घटना के संभावित कारण बताए जा रहे हैं। इससे यह सवाल उठना स्वाभाविक हो जाता है कि क्या बोइंग अपने विमानों की डिलीवरी से पहले पर्याप्त गुणवत्ता नियंत्रण और सुरक्षा परीक्षण सुनिश्चित कर रहा है?
इस पूरे परिदृश्य को और गहराई तब मिलती है जब बोइंग के भीतर से लगातार व्हिसलब्लोअर्स की आवाजें उठती हैं। इंजीनियर सैम सेलेपौर ने दावा किया था कि 787 ड्रीमलाइनर के फ्यूसलेज को जोड़ने की प्रक्रिया में “टार्जन की तरह कूद-कूदकर” गलत जोड़ किए जाते थे, जो स्ट्रक्चरल इंटीग्रिटी को नुकसान पहुंचाते हैं। यह भी आरोप है कि यह प्रक्रिया 2020 से लगातार तीन साल तक चलती रही। 2020 से 2022 के बीच ड्रीमलाइनर की डिलीवरी रोकनी पड़ी क्योंकि फ्यूसलेज में गैप्स और खराब फिनिशिंग के मामले सामने आए। 2013 में लिथियम-आयन बैटरियों में आग लगने की घटनाओं के बाद पूरी ड्रीमलाइनर फ्लीट को अस्थायी रूप से ग्राउंड कर दिया गया था। इसके बावजूद कंपनी ने समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए। FAA की जांच रिपोर्टों में यह पाया गया कि बोइंग ने कई महत्वपूर्ण निरीक्षण या तो टाल दिए या उनके रिकॉर्ड में हेरफेर किया गया।
बोइंग का 737 मैक्स मॉडल भी किसी त्रासदी से कम नहीं रहा। 2018 में लायन एयर और 2019 में इथियोपियन एयरलाइंस की 737 मैक्स उड़ानों के क्रैश में कुल 346 लोगों की मौत हुई। इन दोनों हादसों में MCAS सॉफ्टवेयर की खामी और पायलटों को उस सिस्टम के बारे में उचित प्रशिक्षण न देना एक प्रमुख कारण बना। FAA की ऑडिट रिपोर्ट बताती है कि क्वालिटी कंट्रोल के 37 प्रतिशत परीक्षणों में बोइंग विफल रहा। और इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि कई विमानों में लूज बोल्ट्स, टूल्स, वेस्ट मटेरियल और यहां तक कि खाली शराब की बोतलें तक मिलीं।2024 में अलास्का एयरलाइंस की एक बोइंग 737 मैक्स में दरवाजा प्लग उड़ जाने की घटना ने फिर से बोइंग की गुणवत्ता को कठघरे में ला खड़ा किया। यह ठीक वैसी ही घटना थी जैसी अब अहमदाबाद में हुई है अचानक तकनीकी फेलियर, पायलटों की कंट्रोल पर पकड़ खत्म और उड़ान भरने के तुरंत बाद दुर्घटना। इस पैटर्न ने एविएशन विशेषज्ञों को आशंका जताने पर मजबूर किया है कि क्या बोइंग एक सोची-समझी कॉरपोरेट लापरवाही के रास्ते पर चल रही है?
एक और चौंकाने वाली बात है कि बोइंग के खिलाफ बोलने वाले दो प्रमुख इंजीनियरों जॉन बार्नेट और सैम सेलेपौर – की संदिग्ध परिस्थितियों में मौतें हो चुकी हैं। बार्नेट ने दावा किया था कि बोइंग के ऑक्सीजन सिस्टम में तकनीकी खामियां थीं, जिससे आपातकालीन स्थिति में चार में से एक मास्क फेल हो सकता है। FAA अब इस मामले की भी जांच कर रही है कि क्या इन मौतों का संबंध बोइंग की आंतरिक गड़बड़ियों से है?दुनिया भर में बोइंग की विश्वसनीयता को लेकर संदेह तब और गहरा हुआ जब चीन, यूरोप, कनाडा, सिंगापुर, इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने अपने-अपने एयरस्पेस में बोइंग 737 मैक्स और ड्रीमलाइनर की उड़ानों पर अस्थायी प्रतिबंध लगा दिए। चीन ने तो सबसे पहले 2019 में ही 737 मैक्स को ग्राउंड कर दिया था और 2023 तक इसे सेवा में वापस नहीं लाया। यह कदम तब और महत्वपूर्ण हो जाता है जब यह समझा जाए कि चीन बोइंग का एक बड़ा बाजार रहा है। इसी तरह, यूरोपीय संघ ने FAA के निर्णय को नजरअंदाज करते हुए अपने एयरस्पेस में बोइंग को प्रतिबंधित किया। यह पूरी वैश्विक प्रतिक्रिया एक संकेत है कि बोइंग की विश्वसनीयता केवल तकनीकी नहीं, बल्कि रणनीतिक और राजनीतिक निर्णयों के स्तर पर भी सवालों के घेरे में है।
अब जब सोशल मीडिया की भूमिका की बात आती है, तो यह और पेचीदा हो जाता है। आमतौर पर सरकार समर्थक माने जाने वाले लेखक और यूट्यूबर जैसे अजित भारती और मिस्टर सिन्हा ने बोइंग पर तीखे सवाल उठाए, वहीं ध्रुव राठी जैसे सरकार विरोधी माने जाने वाले प्रभावशाली नाम बोइंग के पक्ष में तर्क रखते नजर आए। इससे यह भ्रम और गहराता है कि क्या यह विमर्श वस्तुनिष्ठ है या फिर अपने-अपने राजनीतिक विचारधाराओं से प्रेरित?यह भी सवाल उठता है कि क्या भारत सरकार ने बोइंग की गुणवत्ता की जांच के लिए समय रहते कोई स्वतंत्र एविएशन ऑडिट करवाया? क्या DGCA (नागर विमानन महानिदेशालय) ने एयर इंडिया के विमानों की टेक्निकल सेफ्टी का व्यापक मूल्यांकन किया था, विशेष रूप से तब जब ड्रीमलाइनर जैसे मॉडल पर पहले से ही इतने गंभीर आरोप लग चुके थे? यदि नहीं, तो क्या यह महज़ तकनीकी लापरवाही है या नीति-निर्धारकों की ढिलाई?
एक दिलचस्प बात यह भी है कि हाल के वर्षों में भारत में रक्षा सौदों से लेकर वाणिज्यिक विमानन तक कई अमेरिकी कंपनियों को प्राथमिकता दी गई है। ऐसे में क्या बोइंग को लेकर भारत सरकार की नीतियां किसी रणनीतिक साझेदारी की बलि चढ़ रही हैं? इस पर सार्वजनिक बहस जरूरी है।अहमदाबाद AI-171 हादसा केवल एक दर्दनाक दुर्घटना नहीं बल्कि बोइंग, FAA, DGCA और पूरे वैश्विक विमानन उद्योग के लिए एक चेतावनी है। यह समय है जब तकनीकी उत्कृष्टता के दावों को हकीकत की कसौटी पर परखा जाए, और किसी भी कॉरपोरेट को मानव जीवन की कीमत पर मुनाफा कमाने की छूट न दी जाए। अगर समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य की और भी अधिक भयावह घटनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।