अवध ओझा ने राजनीति से लिया संन्यास, शिक्षा को बनायेंगे जीवन की पहली प्राथमिकता
लोकप्रिय UPSC कोच और युवाओं के प्रेरक शिक्षक अवध ओझा ने राजनीति से पूर्ण संन्यास लिया। 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार के बाद उन्होंने शिक्षा सुधार को अपना मुख्य उद्देश्य बताया। अब उनका फोकस छात्रों और शिक्षा क्षेत्र पर रहेगा, जबकि राजनीति में सक्रिय भूमिका से पूरी तरह हट गए हैं।


दिल्ली के युवा छात्रों और देशभर के प्रतियोगी परीक्षाओं के छात्र समुदाय में अपनी गहन पकड़ रखने वाले मशहूर कोच और मोटिवेशनल शिक्षक अवध ओझा ने आखिरकार राजनीति से पूर्ण संन्यास लेने का ऐलान कर दिया है। यह घोषणा उन्होंने सोशल मीडिया पर खुद की भावनाओं को साझा करते हुए की, जिसमें उन्होंने आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह और सभी पदाधिकारियों का धन्यवाद किया। ओझा ने स्पष्ट रूप से कहा कि राजनीति छोड़ने का यह निर्णय पूरी तरह व्यक्तिगत है और भविष्य में वह राजनीति में किसी भी सक्रिय भूमिका में नहीं दिखेंगे। अवध ओझा की राजनीति की यात्रा पिछले कुछ सालों में देश की सुर्खियों में रही। 2025 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में उन्होंने पटपड़गंज सीट से आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में उन्हें भाजपा के उम्मीदवार से 28,072 वोटों के अंतर से हार मिली। हार के बावजूद, उनका मकसद राजनीति में सत्ता हासिल करना नहीं था, बल्कि शिक्षा सुधार को सत्ता तक पहुंचाना था। उन्होंने हमेशा यह साफ किया कि उनकी प्राथमिकता राजनीति नहीं, बल्कि शिक्षा और छात्रों की बेहतरी है।
अपने पॉडकास्ट में उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य राजनीति में किसी पद को प्राप्त करना नहीं था। उन्होंने बताया कि उन्होंने अखिलेश यादव से तीन घंटे लंबी बातचीत की, जिसमें केवल शिक्षा और शिक्षा सुधार पर चर्चा हुई। उन्होंने अखिलेश यादव को लिखित रूप में यह स्पष्ट किया कि न तो उन्हें सांसद बनना है, न विधायक, न मंत्री, लेकिन उनका लक्ष्य यह था कि कोई ऐसा व्यक्ति सत्ता में पहुंचे, जो शिक्षा सुधार की दिशा में उनके विचारों को लागू कर सके। उन्होंने बताया कि उनका यह पत्र विजय चौहान ने पढ़कर सुनाया था।अवध ओझा ने अपने राजनीतिक संन्यास की घोषणा करते हुए कहा कि यह निर्णय उनके जीवन का एक व्यक्तिगत और सूझ-बूझ वाला कदम है। उन्होंने लिखा कि जो प्रेम और सम्मान आम आदमी पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं से उन्हें मिला, उसके लिए वह हमेशा आभारी रहेंगे। उन्होंने अरविंद केजरीवाल को विशेष रूप से महान नेता बताते हुए उनके योगदान की सराहना की। उनका संदेश साफ था कि अब राजनीति उनके जीवन का हिस्सा नहीं रहेगी और वह पूरी तरह से शिक्षा और कोचिंग के क्षेत्र में लौटेंगे।
उनकी यह घोषणा उस समय आई है जब पिछले कुछ महीनों से उनके चुनाव न लड़ने की चर्चाएं तेज हो रही थीं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अवध ओझा ने राजनीति में आने का निर्णय केवल शिक्षा सुधार के लिए किया था। उन्हें यह अनुभव हुआ कि राजनीति में सीधे पद हासिल करना उनके उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक नहीं था। उनके अनुसार, शिक्षा सुधार की दिशा में प्रभाव डालना मुख्य लक्ष्य था और अगर सत्ता में कोई ऐसा व्यक्ति बैठता है, जो उनके विचारों के प्रति समर्पित हो, तो शिक्षा में बदलाव संभव है।अवध ओझा की राजनीति छोड़ने की घोषणा ने शिक्षा और राजनीति के समीकरण पर गहरा असर डाला है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि राजनीति में हमेशा सत्ता हासिल करना ही प्राथमिकता नहीं होती, बल्कि कभी-कभी उद्देश्य और मूल्य अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। उनकी इस भावना ने युवा छात्रों और शिक्षा क्षेत्र में काम करने वाले लोगों में नई प्रेरणा पैदा की है।
अवध ओझा ने कहा कि राजनीति में आने का कारण शिक्षा सुधार था, लेकिन अब जब यह मकसद सीधे सत्ता में बैठकर संभव नहीं दिख रहा, तो उन्होंने अपनी ऊर्जा और समय सीधे शिक्षा के क्षेत्र में लगाने का निर्णय लिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका मार्गदर्शन और प्रयास शिक्षा सुधार और छात्रों के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए हमेशा जारी रहेगा।उनकी विदाई राजनीति से केवल व्यक्तिगत निर्णय नहीं है, बल्कि यह देश के युवा शिक्षकों और कोचों के लिए एक संदेश भी है। यह दिखाता है कि कभी-कभी अपने मूल उद्देश्य और मूल पेशे के प्रति समर्पण ही सबसे बड़ी ताकत होती है। अवध ओझा का यह कदम यह प्रमाणित करता है कि शिक्षा सुधार के लिए राजनीति में प्रवेश किया जा सकता है, लेकिन असली बदलाव तब आता है जब व्यक्ति अपने ज्ञान और अनुभव को सीधे छात्रों तक पहुंचाने पर ध्यान देता है।
अवध ओझा की कहानी यह भी दर्शाती है कि समाज में परिवर्तन लाने के लिए जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति सत्ता में बैठे। कभी-कभी विचारों और मूल्यों के प्रति सच्ची प्रतिबद्धता ही वास्तविक बदलाव की कुंजी होती है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनके पास राजनीति में पद पाने की कोई महत्वाकांक्षा नहीं थी, बल्कि उनका लक्ष्य हमेशा शिक्षा सुधार की दिशा में योगदान देना रहा।अवध ओझा की विदाई राजनीति से उनके समर्थकों और छात्रों के लिए भावनात्मक पल है। हालांकि राजनीतिक मंच से हट रहे हैं, लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में उनकी भूमिका और प्रभाव अब भी उतना ही महत्वपूर्ण रहेगा। उनके प्रयासों से न केवल दिल्ली, बल्कि पूरे देश के युवा छात्रों को प्रेरणा मिली है कि अगर उद्देश्य साफ हो, तो किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है।
इस पूरे घटनाक्रम से स्पष्ट है कि अवध ओझा का जीवन शिक्षा और छात्रों की बेहतरी के लिए समर्पित रहेगा। राजनीति में उनका समय छोटा रहा, लेकिन उनकी सोच और उद्देश्य ने यह दिखा दिया कि शिक्षा सुधार की दिशा में काम करने के लिए किसी पद या सत्ता की आवश्यकता नहीं होती। उनके फैसले ने यह संदेश भी दिया कि यदि उद्देश्य सही और मजबूत हो, तो व्यक्ति अपने मूल पेशे में लौटकर भी समाज और देश के लिए बड़ा योगदान दे सकता है।अवध ओझा अब पूरी तरह शिक्षा और कोचिंग के क्षेत्र में लौटेंगे। उनके मार्गदर्शन में आने वाले लाखों छात्र उनकी सीख और अनुभव से लाभ उठाएंगे। यह कदम केवल उनके व्यक्तिगत निर्णय का परिणाम नहीं है, बल्कि शिक्षा क्षेत्र के लिए भी एक प्रेरणास्त्रोत है। उनका संदेश यह है कि उद्देश्य, प्रतिबद्धता और सच्चाई के साथ कार्य करना ही वास्तविक सफलता है।राजनीति छोड़ने के बाद अब अवध ओझा का पूरा ध्यान शिक्षा सुधार और छात्रों की बेहतरी पर रहेगा। उनके इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया कि कभी-कभी अपने मूल उद्देश्य और शिक्षा के प्रति समर्पण ही सबसे बड़ी ताकत होती है। अवध ओझा का जीवन और उनका यह कदम देश के युवा शिक्षकों और छात्रों के लिए हमेशा प्रेरणास्त्रोत बना रहेगा।



