कर्नाटक में बदलते समीकरण सिद्धारमैया बनाम शिवकुमार की सियासत में कौन होगा अगला खिलाड़ी
कर्नाटक की राजनीति में सत्ता परिवर्तन की चर्चा तेज है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच खींचतान बढ़ी है। बिहार चुनावों के बाद कैबिनेट फेरबदल और नेतृत्व परिवर्तन पर अब सबकी निगाहें कांग्रेस हाईकमान पर टिकी हैं।


कर्नाटक की राजनीति इस समय एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहाँ सत्ता की गहमागहमी और कांग्रेस के अंदरूनी खींचतान ने राज्य की राजनीति में नई उथल-पुथल मचा दी है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच सत्ता संतुलन की रस्साकशी अब खुलकर सामने आने लगी है। जैसे-जैसे राज्य सरकार का ढाई साल का कार्यकाल पूरा होने को है, नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं ने पूरे कर्नाटक में सियासी गर्मी बढ़ा दी है।मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सोमवार को एक बड़ा बयान देकर यह साफ कर दिया कि बिहार विधानसभा चुनावों के बाद कर्नाटक मंत्रिमंडल में फेरबदल किया जाएगा। मैसूरु एयरपोर्ट पर मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर वह कांग्रेस हाईकमान से चर्चा करेंगे। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से अब तक किसी नेतृत्व परिवर्तन को लेकर कोई निर्देश नहीं मिला है। सिद्धारमैया ने कहा कि यह पूरी तरह पार्टी नेतृत्व का फैसला होगा। उनके इस बयान ने राज्य में चल रही अटकलों को कुछ समय के लिए थाम जरूर दिया है, लेकिन सियासी गलियारों में हलचल अभी भी जारी है।
कांग्रेस के भीतर यह चर्चा लंबे समय से चल रही है कि 2023 के विधानसभा चुनावों के बाद सत्ता संभालते समय सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच ‘सत्ता साझा’ यानी पावर-शेयरिंग का एक समझौता हुआ था। इसके मुताबिक, सिद्धारमैया पहले ढाई साल तक मुख्यमंत्री रहेंगे और उसके बाद सत्ता शिवकुमार को सौंप दी जाएगी। यह फार्मूला अब फिर से चर्चा में है क्योंकि 20 नवंबर को सिद्धारमैया सरकार का ढाई साल का कार्यकाल पूरा हो रहा है। इसी के साथ यह कयास भी लगाए जा रहे हैं कि 21 या 26 नवंबर को डी.के. शिवकुमार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं।हालांकि जब पत्रकारों ने मुख्यमंत्री से इस बारे में सवाल किया तो वे कुछ नाराज नजर आए। उन्होंने पलटकर पूछा कि यह बात आपको किसने बताई? क्या शिवकुमार ने आपसे यह कहा? यह प्रतिक्रिया बताती है कि दोनों नेताओं के बीच सब कुछ सामान्य नहीं है। यद्यपि दोनों सार्वजनिक रूप से यह कहते हैं कि वे एकजुट हैं और कांग्रेस की सरकार स्थिर है, लेकिन अंदरखाने की खींचतान अब किसी से छिपी नहीं है।
कांग्रेस के कई वरिष्ठ मंत्री और विधायक खुलकर सिद्धारमैया के समर्थन में आ चुके हैं। आवास मंत्री जमीर अहमद खान ने तो यहां तक कह दिया कि सिद्धारमैया 2028 तक मुख्यमंत्री रहेंगे और शिवकुमार को अगली बार मौका मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि शिवकुमार कांग्रेस के समर्पित नेता हैं और उनकी महत्वाकांक्षा स्वाभाविक है। उधर, दलित मुख्यमंत्री की मांग भी लगातार जोर पकड़ रही है। समाज कल्याण मंत्री एच.सी. महादेवप्पा जैसे नेताओं ने कहा है कि दलित मुख्यमंत्री का सपना अभी भी जिंदा है, लेकिन इस पर अंतिम निर्णय हाईकमान को ही करना होगा।कर्नाटक कांग्रेस के अंदर इस समय कई स्तरों पर गतिविधियाँ चल रही हैं। एक ओर शिवकुमार खेमे के समर्थक सत्ता हस्तांतरण की तारीख तय करने की मांग कर रहे हैं, तो दूसरी ओर सिद्धारमैया गुट सरकार को पूरा कार्यकाल देने पर अड़ा है। इसी बीच, सार्वजनिक कार्य मंत्री सतीश जारकीहोली दिल्ली जाकर आलाकमान से मुलाकात करने वाले हैं। उन्हें कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (KPCC) का अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा है। उधर, खुद शिवकुमार भी बिहार चुनाव प्रचार के बाद दिल्ली जाने की तैयारी में हैं, जहाँ वे संगठन और सरकार दोनों में बदलाव को लेकर बात कर सकते हैं।
राज्य के भीतर ‘नवंबर क्रांति’ शब्द भी तेजी से फैल रहा है। इसका अर्थ यह लगाया जा रहा है कि नवंबर में कर्नाटक की राजनीति में कोई बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। कुछ मंत्रियों के विभाग बदलने, कुछ नए चेहरों के शामिल होने और संगठन में फेरबदल जैसी संभावनाएँ प्रबल हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने संकेत दिए हैं कि वे 15 नवंबर के आसपास दिल्ली जाकर पार्टी हाईकमान से इन मुद्दों पर विस्तार से बात करेंगे।उधर, शिवकुमार फिलहाल संयमित बयान दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि नेतृत्व परिवर्तन के विषय पर मुख्यमंत्री और वे जो कहें, वही सही माना जाए, बाकी किसी की राय मायने नहीं रखती। यह बयान उन्होंने कन्नड़ राज्योत्सव कार्यक्रम के दौरान दिया, जब उनसे बार-बार सत्ता परिवर्तन को लेकर सवाल किए जा रहे थे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान दिखाता है कि शिवकुमार फिलहाल हाईकमान के भरोसे हैं और वे चाहते हैं कि जो भी निर्णय हो, वह ऊपर से आए।
लेकिन अंदरूनी स्तर पर उनकी सक्रियता बढ़ गई है। खबरें हैं कि उन्होंने मुख्यमंत्री खेमे की उस कोशिश को भी विफल किया जिसमें गृह मंत्री जी. परमेश्वर को ‘तीसरा विकल्प’ बनाने की चर्चा चल रही थी। शिवकुमार ने कई वरिष्ठ विधायकों से संपर्क बढ़ाया है और पार्टी के पुराने नेताओं को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। यह साफ है कि वह राजनीतिक रूप से बहुत सतर्क तरीके से हर कदम रख रहे हैं।इस पूरे घटनाक्रम का असर सिर्फ कांग्रेस के अंदर ही नहीं, बल्कि राज्य की जनता पर भी पड़ेगा। आम मतदाता यह देख रहा है कि सत्ता संघर्ष की चर्चा में विकास के मुद्दे पीछे छूट रहे हैं। अगर आने वाले दिनों में हाईकमान नेतृत्व परिवर्तन या फेरबदल को लेकर कोई फैसला नहीं लेता, तो यह अस्थिरता का माहौल बना सकता है। वहीं अगर जल्दबाज़ी में बदलाव होता है, तो यह पार्टी के भीतर असंतोष को और भड़का सकता है।
कांग्रेस हाईकमान फिलहाल ‘वेट एंड वॉच’ की नीति पर चल रहा है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की टीम इस पूरे प्रकरण को ध्यान से देख रही है। सूत्रों का कहना है कि कोई भी बड़ा फैसला बिहार चुनावों के बाद ही लिया जाएगा ताकि राजनीतिक असर का आकलन किया जा सके। फिलहाल पार्टी यह नहीं चाहती कि कर्नाटक जैसी बड़ी इकाई में अस्थिरता का संदेश जाए, खासकर तब जब केंद्र में भी विपक्षी एकता को मजबूत करने की कवायद चल रही है।राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि कर्नाटक की यह लड़ाई सिर्फ दो नेताओं की महत्वाकांक्षा का टकराव नहीं है, बल्कि कांग्रेस के भविष्य की दिशा तय करने वाली परीक्षा भी है। अगर पार्टी इन हालात में संतुलन बना लेती है, तो यह कांग्रेस के संगठनात्मक कौशल की मिसाल होगी। लेकिन अगर मामला बिगड़ गया, तो विपक्ष इसे कांग्रेस की अंदरूनी कमजोरी के रूप में पेश करेगा।
फिलहाल सिद्धारमैया ने साफ कहा है कि कोई भी बड़ा बदलाव पार्टी हाईकमान के आदेश पर ही होगा। यह बयान उन्हें समय देता है और उन्हें जनता के बीच ‘स्थिर मुख्यमंत्री’ की छवि बनाए रखने में मदद करता है। दूसरी ओर शिवकुमार इस वक्त धैर्य के साथ मौके का इंतजार कर रहे हैं। दोनों के बीच यह मौन संघर्ष आने वाले हफ्तों में और गहरा सकता है।कर्नाटक की सियासत में यह पहला मौका नहीं है जब सत्ता साझेदारी पर बहस छिड़ी हो, लेकिन इस बार मामला ज्यादा संवेदनशील है क्योंकि राज्य की राजनीति का केंद्र अब सीधे दिल्ली से जुड़ गया है। बिहार चुनावों के नतीजे के बाद जो भी फैसला होगा, वह सिर्फ कर्नाटक ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण भारत में कांग्रेस की स्थिति को प्रभावित करेगा। फिलहाल राज्य में सत्ता परिवर्तन की सुगबुगाहट थमी नहीं है, और जनता यह जानने के इंतज़ार में है कि 20 नवंबर के बाद कर्नाटक की गद्दी पर कौन बैठेगा सिद्धारमैया या शिवकुमार।



