आरएसएस बैन पर अखिलेश-भाजपा आमने-सामने, चैटजीपीटी बना नई सियासत का हथियार
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आरएसएस पर बैन लगाने की मांग उठाई, जिससे यूपी की सियासत गरमा गई। प्रेस कॉन्फ्रेंस में चैटजीपीटी का हवाला देकर उन्होंने आरएसएस पर सांप्रदायिकता फैलाने का आरोप दोहराया, जबकि उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने पलटवार करते हुए अखिलेश पर कट-पेस्ट राजनीति और वैचारिक भ्रम फैलाने का आरोप लगाया।


उत्तर प्रदेश की राजनीति में कभी-कभी पुरानी किताबें खुल जाती हैं, जो नई बहसों को जन्म दे देती हैं। शुक्रवार को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती के मौके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर बैन लगाने की मांग उठाई। उन्होंने न सिर्फ आचार्य नरेंद्र देव की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में इस मुद्दे को छुआ, बल्कि लखनऊ के सपा मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान तो एक अनोखा तीर चलाया। मोबाइल निकाला, चैटजीपीटी से सवाल किया- व्हाई आरएसएस बैन? और फिर उसके जवाब को पढ़ते हुए कहा कि सरदार पटेल ने ही आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था, क्योंकि संगठन पर महात्मा गांधी की हत्या की साजिश और सांप्रदायिकता फैलाने के गंभीर आरोप थे। अखिलेश ने जोड़ा, ये मैं नहीं कह रहा, चैटजीपीटी कह रहा है। यह दृश्य सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, लेकिन इससे राजनीति गरम हो गई। उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने तुरंत पलटवार किया- चैटजीपीटी से राजनीति नहीं होती, इसके लिए अध्ययन और समझ जरूरी है। आरएसएस को राष्ट्रवाद का प्रतीक बताते हुए उन्होंने सपा पर पुराने आरोप लगाए, जैसे आतंकवादियों के मुकदमे वापस लेना। यह बहस सिर्फ आज की नहीं, बल्कि 77 साल पुरानी है। ।
सबसे पहले बात सरदार पटेल की। लौह पुरुष के नाम से मशहूर वल्लभभाई पटेल ने आजादी के ठीक बाद देश को एकजुट किया। 562 रियासतों को भारत का हिस्सा बनाया, लेकिन आरएसएस पर उनका रुख सख्त था। 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के पांच दिन बाद, 4 फरवरी को पटेल ने गृह मंत्री के तौर पर आरएसएस पर पहला प्रतिबंध लगाया। कारण? हत्या की साजिश रचने और सांप्रदायिक हिंसा भड़काने का आरोप। पटेल ने खुद कहा था कि आरएसएस की गतिविधियां देश के अस्तित्व के लिए खतरा हैं। उस समय देश दंगों की आग में जल रहा था। विभाजन के जख्म ताजा थे, और आरएसएस पर हिंदू महासभा के साथ मिलकर मुसलमानों के खिलाफ हिंसा फैलाने का इल्जाम लगा। प्रतिबंध के दौरान संगठन की शाखाएं बंद हो गईं, और इसके संस्थापक एम.एस. गोलवलकर जेल में बंद हो गए। लेकिन 1949 में कुछ शर्तों के साथ- जैसे संविधान का पालन और हिंसा से दूर रहना- बैन हटा लिया गया। पटेल ने पत्र लिखकर चेतावनी दी कि अगर आरएसएस ने अपना रंग नहीं बदला, तो फिर से कार्रवाई होगी।
यह पहला बैन था, लेकिन आखिरी नहीं। 1975 में इंदिरा गांधी की इमरजेंसी के दौरान दूसरा बैन लगा। आरएसएस को विपक्षी ताकत के रूप में देखा गया, जो जेपी आंदोलन में सक्रिय था। संगठन के लाखों स्वयंसेवक जेलों में डाले गए। फिर 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद तीसरा बैन। इस बार आरोप था कि आरएसएस ने सांप्रदायिक तनाव भड़काया। बैन सिर्फ 10 दिन चला, लेकिन यह दिखाता है कि सरकारें समय-समय पर आरएसएस की विचारधारा पर सवाल उठाती रहीं। आज आरएसएस दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है, लाखों शाखाओं के साथ। यह भाजपा की वैचारिक मां है, और इसका प्रभाव चुनावों से लेकर सामाजिक मुद्दों तक फैला है। लेकिन अखिलेश का बयान इसी पुरानी किताब का एक पन्ना पलटना है। उन्होंने कहा, आरएसएस आज भी सांप्रदायिकता फैला रहा है। आज के समय में सरदार पटेल जैसे किसी की जरूरत है जो फिर से बैन लगाए। चैटजीपीटी का सहारा लेना मजाकिया लगा, लेकिन यह डिजिटल युग की राजनीति का नया रंग है। युवा वोटर सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो देखकर हंसते हैं, लेकिन गहराई में यह सवाल उठाता है- क्या इतिहास को एआई से पढ़ना काफी है?
अखिलेश का हमला सिर्फ आरएसएस तक सीमित नहीं रहा। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर तंज कसे। कहा, हमारे सीएम जी आजकल बच्चों को गोद में उठाकर फोटो खिंचवा रहे हैं, लेकिन किसानों की समस्याओं से मुंह फेर लेते हैं। गन्ने की कीमतें बढ़ाने में सालों लग गए, जबकि सरकार चीनी मिलों से मुनाफा कमा रही है। खाद की किल्लत, डीजल महंगा, धान खरीद ठप- ये सब किसानों का दर्द है। अखिलेश ने आरोप लगाया कि मंडियां प्राइवेट कंपनियों को बेची जा रही हैं, ताकि किसान लुट जाएं। स्वास्थ्य सेवाओं पर भी निशाना साधा- सपा के समय मुफ्त इलाज था, अब भाजपा राज में अस्पतालों में गड़बड़ी है। दाएं हाथ का प्लास्टर बाएं पर बांध देते हैं। गोरखपुर को स्पेन जैसा बनाने के दावे पर व्यंग्य किया- गूगल पर क्योटो की तस्वीरें देख लो, असल में वहां गांजा पकड़ा जा रहा है। और कानून-व्यवस्था पर? बिहार में सपा नेता की हत्या का जिक्र कर कहा, यूपी में बेटियां सबसे असुरक्षित हैं। भ्रष्टाचार चरम पर है, भर्तियों में भेदभाव।
यह सब सुनकर भाजपा की तरफ से पलटवार तेज आया। ब्रजेश पाठक ने कहा, सपा का पढ़ाई-लिखाई से कोई लेना-देना नहीं। अखिलेश कट-पेस्ट की राजनीति करते हैं। उन्होंने आरएसएस को राष्ट्रभक्ति और एकता का प्रतीक बताया, जो आजादी के बाद से राष्ट्रवाद फैला रहा है। सपा पर गंभीर आरोप लगाए- 2012-17 में आतंकवादियों के मुकदमे वापस लिए, जैसे वाराणसी, अयोध्या बम ब्लास्ट के आरोपी। सपा ने प्रदेश का इस्लामीकरण किया, घुसपैठियों के वोटों पर चुनाव लड़े। वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने भी कहा, आरएसएस पर बैन का हवाला देकर अखिलेश भटकाव पैदा कर रहे हैं। सपा ने आतंकियों को संरक्षण दिया। पाठक ने सवाल किया, पीएफआई और सिमी जैसे संगठनों पर बैन के समय अखिलेश चुप क्यों थे? ये वोट बैंक की राजनीति है। भाजपा का दावा है कि योगी राज में यूपी की बेटियां सुरक्षित हैं, कानून-व्यवस्था देश में नंबर वन है।
यह बहस सिर्फ व्यक्तिगत हमलों तक नहीं रुकती। यह विचारधाराओं की टक्कर है। आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई, जब देश स्वराज की लड़ाई लड़ रहा था। लेकिन गांधीजी ने इसे सांप्रदायिक कहा था। पटेल ने बैन लगाया, लेकिन नेहरू सरकार ने इसे राजनीतिक हथियार बनाया। आज भाजपा आरएसएस को अपनी ताकत मानती है, जबकि विपक्ष इसे सांप्रदायिकता का स्रोत। अखिलेश का चैटजीपीटी वाला स्टंट युवाओं को आकर्षित करता है, लेकिन पाठक सही कहते हैं कि राजनीति के लिए इतिहास की गहरी समझ जरूरी। सरदार पटेल ने देश एकजुट किया, लेकिन वे धर्म के नाम पर विभाजन के खिलाफ थे। क्या आज की राजनीति में आरएसएस की भूमिका एकता बढ़ा रही है या तनाव? यह सवाल अनुत्तरित है।
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में ऐसी बहसें चुनावी मैदान तैयार करती हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों में सपा-कांग्रेस गठबंधन ने आरएसएस-भाजपा पर सांप्रदायिकता के आरोप लगाए थे। अब 2027 के विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और अखिलेश इसे मुद्दा बना रहे हैं। लेकिन आम आदमी क्या सोचता है? किसान गन्ने का दाम चाहता है, नौजवान नौकरी, बेटियां सुरक्षा। आरएसएस बैन की बहस पुरानी हो चुकी है, लेकिन अगर यह सांप्रदायिक सद्भाव तोड़ रही है, तो सरकार को सोचना चाहिए। पटेल ने कहा था- आरएसएस को संविधान का पालन करना होगा। अगर ऐसा हो रहा है, तो बैन की बात क्यों? अगर नहीं, तो विपक्ष की मांग जायज।
बहरहाल, यह बहस लोकतंत्र की खूबसूरती है। अखिलेश ने चैटजीपीटी से सवाल किया, तो भाजपा ने इतिहास से जवाब दिया। लेकिन असली परीक्षा जनता की है। क्या हम इतिहास से सीखेंगे या फिर वोट के लिए पुरानी जंग लड़ेंगे? सरदार पटेल जैसे नेताओं की जरूरत आज भी है- जो देश को जोड़ें, न तोड़ें। उत्तर प्रदेश को विकास चाहिए, नफरत नहीं। अगर राजनीतिक दल इसे समझें, तो बेहतर। वरना, यह चक्र चलता रहेगा।
				
					


