सात साल बाद भी 69 हजार शिक्षक अभ्यर्थियों को नहीं मिला न्याय
उत्तर प्रदेश में 69 हजार शिक्षक भर्ती अभ्यर्थियों का सात साल लंबा संघर्ष, आरक्षण हनन का आरोप, सुप्रीम कोर्ट में अटका मामला। अभ्यर्थियों ने मंत्री आवास पर प्रदर्शन किया, बेरोजगारी और न्याय की मांग जताई। सरकार की लचर पैरवी से हताशा, बच्चों की पढ़ाई और युवाओं के भविष्य पर असर।


लखनऊ की सड़कों पर एक बार फिर गूंजे नारे। ‘योगी बाबा न्याय करो, सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करो!’ ये आवाजें 69 हजार शिक्षक भर्ती के उन अभ्यर्थियों की हैं, जो सालों से बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। शनिवार को राजधानी के गोमती नगर इलाके में बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह के आवास के बाहर सैकड़ों अभ्यर्थी इकट्ठा हो गए। हाथों में बैनर थामे, नारेबाजी करते हुए उन्होंने मंत्री के घर का घेराव कर दिया। नाराजगी इतनी थी कि कुछ अभ्यर्थियों ने सामूहिक आत्मदाह तक की धमकी दे डाली। पुलिस ने हल्का बल प्रयोग कर प्रदर्शनकारियों को इको गार्डन की ओर खदेड़ दिया, लेकिन उनका गुस्सा ठंडा होने का नाम नहीं ले रहा। ये अभ्यर्थी ज्यादातर आरक्षित वर्ग अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं। उनका आरोप है कि 2018 की इस भर्ती में आरक्षण के नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई गई। परिणाम आया तो सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को फायदा हुआ, जबकि आरक्षित वर्ग के हजारों योग्य उम्मीदवार बाहर हो गए।
सात साल हो चुके हैं इस भर्ती को। फरवरी 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार ने परिषदीय स्कूलों में 68,500 सहायक शिक्षकों की भर्ती निकाली। लाखों युवाओं ने आवेदन किया। परीक्षा हुई, मेरिट लिस्ट बनी, लेकिन विवाद तब शुरू हुआ जब आरक्षण कोटे में गड़बड़ी सामने आई। अभ्यर्थियों का कहना है कि 25 प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर भी गलत तरीके से सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को जगह दी गई। इससे आरक्षित वर्ग के करीब 20 हजार अभ्यर्थी प्रभावित हुए। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में मामला पहुंचा। लंबी सुनवाई के बाद 13 अगस्त 2024 को डबल बेंच ने अभ्यर्थियों के हक में फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि 6,800 सीटों पर इन आरक्षित अभ्यर्थियों की तत्काल नियुक्ति हो। लेकिन सरकार ने इसे मानने से इनकार किया। अपील दाखिल की और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।
अब यहीं समस्या है। सुप्रीम कोर्ट में केस लंबे समय से अटका पड़ा है। अगली सुनवाई 28 अक्टूबर को तय है, लेकिन पिछले एक साल से 22 से ज्यादा तारीखें मिल चुकी हैं। हर बार यही होता है अभ्यर्थी कोर्ट पहुंचते हैं, लेकिन सरकार की तरफ से कोई वकील पेश नहीं होता। बेंच नाराज होकर नई तारीख दे देती है। अभ्यर्थी धनंजय गुप्ता, जो देवरिया से लखनऊ का सफर तय कर आए थे, ने बताया, ‘हम कोर्ट के दरवाजे खटखटा रहे हैं, लेकिन सरकार तो आ ही नहीं रही। ये कैसा न्याय है? हम शिक्षक बनने का सपना देखते हैं, लेकिन बेरोजगारी हमें तोड़ रही है।’ धनंजय जैसे सैकड़ों अभ्यर्थी हर बार किराया-भाड़ा खर्च कर लखनऊ आते हैं। कई तो परिवार से झगड़ चुके हैं। त्योहार बीत जाते हैं, बच्चे अच्छे स्कूल नहीं जा पाते। एक महिला अभ्यर्थी कल्पना राजपूत ने आंसू भरी आवाज में कहा, ‘हरदोई से आती हूं, लेकिन हर बार उम्मीद टूट जाती है। परिवार वाले ताने मारते हैं कि क्या हासिल हो रहा है? लेकिन हार मानना तो नामुमकिन है।’
प्रदर्शन के दौरान माहौल गरम था। सुबह दस बजे के आसपास अभ्यर्थी मंत्री आवास पहुंचे। बैनरों पर लिखा था ‘सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करो, अन्यथा इस्तीफा दो!’ नारे लगे ‘ओम प्रकाश राजभर इस्तीफा दो, केशव मौर्य इस्तीफा दो!’ अभ्यर्थियों का गुस्सा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और सूबे के पिछड़ा वर्ग नेता ओम प्रकाश राजभर पर भी फूटा। उनका कहना है कि ये नेता चुनाव में दलित-पिछड़े वोट मांगते हैं, लेकिन कोर्ट में उनके हक की लड़ाई लड़ने की जहमत तक नहीं उठाते। प्रदर्शन की अगुवाई धनंजय गुप्ता, रवि पटेल, अमित मौर्य और अमरेंद्र पटेल जैसे नेताओं ने की। अमरेंद्र ने चेतावनी दी, ‘अगर सरकार ने 28 अक्टूबर को वकील नहीं खड़ा किया, तो हम बिहार के गांव-गांव जाकर बताएंगे कि यूपी की सरकार दलित विरोधी है। वोट तो लेती है, लेकिन न्याय नहीं देती।’ पुलिस ने करीब आधे घंटे बाद हस्तक्षेप किया। महिला पुलिसकर्मियों ने महिलाओं को घसीटते हुए गाड़ियों में बिठाया। प्रदर्शनकारी चिल्ला रहे थे, ‘हम यहां न्याय मांगने आए हैं, दबाने नहीं!’ आखिरकार उन्हें इको गार्डन छोड़ दिया गया।
ये पहला प्रदर्शन नहीं है। पिछले पांच सालों में अभ्यर्थी 100 से ज्यादा बार मंत्री आवास, डिप्टी सीएम आवास और यहां तक कि सीएम आवास तक घेर चुके हैं। अगस्त 2025 में भी ऐसा ही हंगामा हुआ था, जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई। अभ्यर्थियों का कहना है कि सरकार की लचर पैरवी ही सबकी जड़ है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस आगस्टीन जार्ज मसीह बार-बार नाराजगी जता चुकी है। लेकिन सरकार चुप्पी साधे रहती है। डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने बेसिक शिक्षा विभाग को पत्र लिखा है कि मामले में संज्ञान लें और अभ्यर्थियों को जल्द न्याय दिलाएं। मगर जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान करती है। अभ्यर्थी पूछते हैं अगर रामराज है, तो ये बेरोजगारी क्यों? सीएम योगी बिहार जाकर कहते हैं कि यूपी में सब ठीक है, लेकिन हमारे साथ हो रहा ये भेदभाव क्या है?
इस भर्ती का असर सिर्फ अभ्यर्थियों तक सीमित नहीं। उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। लाखों बच्चे बिना अच्छे टीचर के पढ़ रहे हैं। आरक्षित अभ्यर्थी अगर नौकरी पा लें, तो न सिर्फ परिवार चलेंगे, बल्कि शिक्षा का स्तर भी सुधरेगा। लेकिन देरी से सबका नुकसान हो रहा है। एक सर्वे के मुताबिक, ऐसे लंबे मुकदमों से युवाओं में हताशा बढ़ रही है। कई अभ्यर्थी अब प्राइवेट जॉब्स की तलाश में हैं, लेकिन उनका सपना तो सरकारी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का था। उमाकांत मौर्य जैसे अभ्यर्थी बताते हैं कि अम्बेडकर नगर से आने वालों को रास्ते में ही पुलिस ने रोक लिया। डर का माहौल है, लेकिन हिम्मत नहीं टूट रही।
अब सारी नजरें 28 अक्टूबर पर हैं। अगर उस दिन भी सरकार का वकील गायब रहा, तो आंदोलन और तेज हो सकता है। अभ्यर्थी कहते हैं हम चुप नहीं बैठेंगे। पिछड़ा दलित संयुक्त मोर्चा जैसे संगठन भी मैदान में हैं। वे मांग कर रहे हैं कि सरकार तुरंत पैरवी करे और हाईकोर्ट के फैसले का पालन करे। सवाल ये है कि क्या यूपी सरकार इन युवाओं की पुकार सुनेगी? या फिर ये संघर्ष और लंबा खिंचेगा? लाखों परिवारों की उम्मीदें इन्हीं जवाबों पर टिकी हैं। एक तरफ बेरोजगारी का दर्द, दूसरी तरफ न्याय की आस। ये कहानी सिर्फ 69 हजार अभ्यर्थियों की नहीं, पूरे सूबे के युवाओं की है। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला जल्द आए और इनका इंतजार खत्म हो।
				
					


