बिहार चुनाव: कर्पूरी ठाकुर की विरासत पर सियासी बिसात, अति पिछड़ों के वोटों पर जंग छिड़ी
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अति पिछड़ों का वोटबैंक केंद्र में है। महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को सीएम और मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम बनाया, जबकि एनडीए ने कर्पूरी ठाकुर की विरासत से भावनात्मक अपील की। रोजगार, सामाजिक न्याय और विकास के वादों के बीच मुख्य जंग अति पिछड़ों के वोटों के लिए है।


बिहार की धरती पर चुनावी बिगुल बज चुका है। विधानसभा चुनाव 2025 की रणभेरी के साथ ही सियासी दलों ने अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिए हैं। एक तरफ महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर विपक्षी एकता का संदेश दिया, तो दूसरी ओर डिप्टी सीएम के रूप में मुकेश सहनी को आगे बढ़ाकर अति पिछड़े वर्ग के वोटों को साधने की कोशिश की। लेकिन एनडीए ने भी चुप नहीं बैठा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को जननायक कर्पूरी ठाकुर के पैतृक गांव पितौंझिया से चुनावी अभियान का शंखनाद किया। यह महज संयोग नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति है, जहां कर्पूरी ठाकुर की छवि को केंद्र में रखकर अति पिछड़ों की भावनाओं को जगाया जा रहा है। बिहार में 36 फीसदी आबादी वाले इस वोटबैंक पर सभी की नजर टिकी है, जो चुनाव का खेल पलट सकता है।
महागठबंधन की इस घोषणा ने सियासी हलचल तेज कर दी। 23 अक्टूबर को पटना में हुई संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूर्व राजस्थान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तेजस्वी को सीएम फेस घोषित किया। साथ ही मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम का चेहरा बनाया गया, जो केवट जाति से हैं। यह फैसला महज औपचारिकता नहीं, बल्कि ओबीसी और अति पिछड़े वर्ग को एक साथ लपेटने की चाल है। तेजस्वी यादव यादव समाज से आते हैं, जो बिहार के प्रमुख पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। वहीं, मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) अति पिछड़ों, खासकर मल्लाह-केवट समुदाय के बीच मजबूत पकड़ रखती है। सहनी ने घोषणा के बाद बीजेपी पर अपनी पार्टी तोड़ने का आरोप लगाया और कहा कि वे सीट शेयरिंग पर अडिग रहेंगे। यह दांव एनडीए के कोर वोटबैंक में सेंध लगाने का है, क्योंकि केवट-मल्लाह वोट बिहार में करीब तीन फीसदी हैं और एनडीए का मजबूत आधार रहे हैं।
तेजस्वी ने शुक्रवार से ही प्रचार का आगाज किया। सहरसा के सिमरी बख्तियारपुर में सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अगर जनता उन्हें सीएम बनाती है, तो 14 लाख नौकरियां देंगे। उन्होंने नीतीश सरकार पर तंज कसा कि फैक्टरियां गुजरात में बन रही हैं, लेकिन जीत बिहार में चाहिए। महागठबंधन की यह रणनीति साफ है युवाओं को रोजगार का लॉलीपॉप देकर और सामाजिक न्याय के नाम पर वोट बटोरना। लेकिन विपक्ष पर बीजेपी ने पलटवार किया। गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे ने इसे कांग्रेस का ‘लॉलीपॉप’ बताया, जो महज दिखावा है। लालू प्रसाद यादव ने भी अशोक गहलोत से बंद कमरे में बात की, जहां नीतीश कुमार के सीएम पद पर सवाल उठाए गए। महागठबंधन का दावा है कि तेजस्वी के नेतृत्व में वे एनडीए को कड़ी टक्कर देंगे, लेकिन सीट शेयरिंग पर अभी घमासान जारी है। आरजेडी ने 143 उम्मीदवारों की सूची जारी की, जिसमें पांच सीटों पर कांग्रेस के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारे।
एनडीए की ओर से जवाब तुरंत आया। प्रधानमंत्री मोदी ने कर्पूरी ठाकुर के गांव से अभियान शुरू कर अति पिछड़ों को सीधा संदेश दिया। पितौंझिया गांव, जो समस्तीपुर जिले में है, कर्पूरी ठाकुर की जन्मभूमि है। यहां पहुंचकर मोदी ने कहा कि वे कर्पूरी जी को नमन करने आए हैं। उनका आशीर्वाद ही है कि नीतीश कुमार जैसे पिछड़े परिवार के लोग आज सत्ता में हैं। मोदी ने कर्पूरी ठाकुर की विरासत को याद करते हुए कहा कि आजाद भारत में सामाजिक न्याय की लड़ाई में उनकी भूमिका अमिट है। उन्होंने आरक्षण को 10 साल आगे बढ़ाने का श्रेय एनडीए को दिया और कहा कि पहले मेडिकल कोटे में पिछड़ों को जगह नहीं थी, लेकिन अब है। कर्पूरी ठाकुर मातृभाषा में शिक्षा के समर्थक थे, इसलिए नई शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा पर जोर दिया गया। अब गरीब का बच्चा अपनी भाषा में पढ़-लिख सकता है।
यह दौरा महज सभा नहीं, बल्कि भावनात्मक अपील है। मोदी ने बेगूसराय और समस्तीपुर में सभाओं के दौरान लोगों से मोबाइल की लाइट जलवाई और पूछा कि इतनी रोशनी में भी बिजली की कमी क्यों? यह विकास का संदेश है, जो अति पिछड़ों तक पहुंचेगा। कर्पूरी ठाकुर को 2024 में भारत रत्न देने का फैसला भी इसी कड़ी का हिस्सा था। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यह घोषणा हुई, जिससे एनडीए ने बिहार के पिछड़े वोटरों को अपने पाले में किया। अब विधानसभा चुनाव में वही फॉर्मूला दोहराया जा रहा है। मोदी ने कांग्रेस पर निशाना साधा कि उन्होंने कर्पूरी जी को हमेशा अपमानित किया, जबकि आज आरजेडी उनका साथी बनकर चुनाव लड़ रही है। यह बात अति पिछड़ों के दिल को छू सकती है, क्योंकि कर्पूरी ठाकुर को सभी दल अपना बताते हैं, लेकिन उनकी सादगी और ईमानदारी आज भी याद की जाती है।
कर्पूरी ठाकुर की कहानी बिहार की सियासत का आईना है। 1924 में समस्तीपुर के पितौंझिया गांव में जन्मे कर्पूरी नाई समाज से थे, जो अति पिछड़ा वर्ग का हिस्सा है। वे देश के पहले ऐसे नेता बने, जिन्होंने मंडल कमीशन से पहले ओबीसी को आरक्षण दिया। 1977 में मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने 26 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया। इसमें अति पिछड़ों को 12 फीसदी और अन्य पिछड़ों को 8 फीसदी कोटा दिया। कानू, कुम्हार, मल्लाह, निषाद, कहार, बढ़ई जैसी 113 जातियां अति पिछड़ा वर्ग में आती हैं। यह कदम क्रांतिकारी था, लेकिन ब्राह्मण-भूमिहार लॉबी ने विरोध किया। कर्पूरी जी को इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन उनकी विरासत बनी रही। वे दो बार मुख्यमंत्री रहे 1970-71 और 1977-79। सादगी के प्रतीक थे वे। गांव के लोग बताते हैं कि बड़े पापा भूखे भी सो जाते थे, लेकिन गरीबों का दुख कभी न सहते। आज सभी दल जेडीयू, आरजेडी, बीजेपी खुद को उनका अनुयायी बताते हैं। नीतीश कुमार ने इन्हीं की छाया में अति पिछड़ों पर पकड़ बनाई, लेकिन अब तेजस्वी और मोदी की जोड़ी चुनौती दे रही है।
बिहार में अति पिछड़ा वर्ग का वोटबैंक चुनावी कुंजी है। 36 फीसदी आबादी होने से यह सत्ता की चाबी है। 2010 के चुनाव में जेडीयू ने इन्हें साधकर बहुमत पाया, लेकिन 2020 में महागठबंधन ने सेंध लगाई। छोटी-छोटी जातियां जैसे लुहार, प्रजापति, धीमर, तुरहा, बाथम, मांझी, राजभर, नोनिया, चंद्रवंशी अकेली कमजोर हैं, लेकिन गठबंधन से ताकतवर हो जाती हैं। आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम है। कर्पूरी ठाकुर ने इन्हें कानूनी हक दिया, लेकिन आज भी संघर्ष जारी है। राहुल गांधी ने हाल ही में कहा कि 50 फीसदी आरक्षण की दीवार तोड़ेंगे, नीतीश सरकार पर आरोप लगाया कि वे अति पिछड़ों के लिए कुछ नहीं कर रहे। आरजेडी ने ‘अति पिछड़ा जागाओ, तेजस्वी सरकार बनाओ’ रैली की, जहां मंगनी लाल मंडल जैसे नेताओं को शामिल किया। दूसरी ओर, एनडीए ने पीएम मत्स्य योजना का जिक्र किया। मोदी ने कहा कि 2014 में योजना शुरू की, जिससे बिहार मछली निर्यातक बन गया। नीतीश का अभिनंदन करते हुए बोले कि उत्पादन दोगुना हो गया। यह मल्लाह समुदाय को सीधा संदेश है कि विकास एनडीए से ही आएगा।
महागठबंधन की सहनी पॉलिटिक्स को मोदी ने काउंटर प्लान से जवाब दिया। सहनी केवट-मल्लाह वोटों पर नजर रखते हैं, जो एनडीए का गढ़ है। लेकिन मोदी ने विकास के आंकड़ों से अपील की। बिहार में मछली उत्पादन 2014 से दोगुना होकर 8 लाख टन पहुंचा, किसान क्रेडिट कार्ड मछुआरों को मिला। यह आंकड़े ग्रामीण अति पिछड़ों को प्रभावित करेंगे। जन सुराज जैसे नए खिलाड़ी भी मैदान में हैं, लेकिन मुख्य जंग एनडीए और महागठबंधन के बीच है। तेजस्वी की नौकरी गारंटी और मोदी का सामाजिक न्याय दोनों ही वादे अति पिछड़ों को लुभाने के हैं।
चुनावी जंग में कर्पूरी ठाकुर का नाम बार-बार आएगा। उनकी जन्म शताब्दी पर सभी ने कार्यक्रम किए, लेकिन असल परीक्षा वोटों में है। बिहार की 243 सीटों पर अति पिछड़ों के 100 से ज्यादा विधायक बन सकते हैं। अगर एनडीए उनकी भावनाओं को जोड़ ले, तो बहुमत पक्का। वरना महागठबंधन का दांव चलेगा। सियासत की यह बिसात अब जनता के हाथ में है। क्या कर्पूरी जी का आशीर्वाद मोदी-नीतीश को मिलेगा या तेजस्वी की नई हवा चलेगी? समय बताएगा, लेकिन एक बात साफ है अति पिछड़ों का वोट ही राज तय करेगा।



