यूपी सियासत में OBC का नया दौर कांग्रेस की कमेटी से बदलेगा वोटों का खेल?

उत्तर प्रदेश में OBC राजनीति का नया अध्याय खुल रहा है। कांग्रेस ने अति पिछड़ी जातियों को प्रमुखता देकर सियासी समीकरण बदलने की तैयारी की है। 2027 चुनाव से पहले यह रणनीति SP-BJP के लिए चुनौती बन सकती है। जानिए कांग्रेस की OBC कमेटी कैसे यूपी की राजनीति में बदलाव ला सकती है।

अजय कुमार, वरिष्ठ पत्रकार

उत्तर प्रदेश की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों पर टिकी रही है। यहां हर चुनाव में वोट बैंक की जंग छिड़ जाती है। 2027 के विधानसभा चुनाव भले ही अभी डेढ़ साल दूर हैं, लेकिन पार्टियां अभी से मैदान सजाने लगी हैं। खासकर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) पर सबकी नजर टिकी है, जो राज्य की लगभग 50 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। 403 सीटों वाली इस विधानसभा में कम से कम 300 सीटों पर OBC वोट निर्णायक माने जाते हैं। ऐसे में कांग्रेस ने अपनी OBC रणनीति को मजबूत करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। पार्टी ने OBC विभाग की नई प्रदेश कार्यकारिणी घोषित कर दी है, जिसमें अति पिछड़ी जातियों को खास तवज्जो दी गई है। यह कदम न सिर्फ कांग्रेस की वापसी की कोशिश है, बल्कि समाजवादी पार्टी के PDA फॉर्मूले को चुनौती देने वाला भी लगता है। 

कांग्रेस की इस नई कार्यकारिणी में कुल 197 नेताओं को जगह दी गई है। इसमें 31 उपाध्यक्ष, 71 महासचिव और 95 सचिव शामिल हैं। सबसे खास बात यह है कि OBC की सभी प्रमुख जातियों, खासकर अति पिछड़ी जातियों को 65 फीसदी हिस्सेदारी दी गई है। बाकी 35 फीसदी अन्य OBC जातियों के लिए आरक्षित है। यह फॉर्मूला ‘जितनी आबादी, उतना हक’ के सिद्धांत पर आधारित लगता है। उदाहरण के तौर पर, बंजारा, पसमांदा मुस्लिम, प्रजापति, बिंद, राजभर, निषाद जैसी अति पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधियों को प्रमुख पद सौंपे गए हैं। उपाध्यक्षों में ओम प्रकाश ठाकुर, अशोक विश्वकर्मा, राम गनेश प्रजापति, द्वारिकेश मंडेला, नारायण सिंह पटेल, विनोद कुमार पाल, संजय सिंह, राम नरेश मौर्य जैसे नाम शामिल हैं। महासचिवों में जितेंद्र पटेल (संगठन प्रभारी), वीरेंद्र कुशवाहा, पवन विश्वकर्मा, राजेश्वरी पटेल, महिपाल सैनी, बबलू वर्मा निषाद, वेदपाल शाक्य, राजीव सैनी, नीरज कुमार मौर्य, मोहित पाल, दिलीप राजभर, रघुराज सिंह पाल जैसे 71 नेता हैं। वहीं, सचिवों की सूची में प्रेम सिंह कुशवाहा, अशोक कुमार पाल, राजेंद्र कुमार यादव, धीरेंद्र बघेल, शिवपाल यादव, उमाकांत पाल, ऊषा यादव, फरजान मंसूरी जैसे 95 नाम हैं।

इस कार्यकारिणी में जातीय संतुलन का खास ध्यान रखा गया है। यादवों को 30, कुर्मी को 18, प्रजापति को 13, नाई को 10, पसमांदा मुस्लिम को 15, मौर्या-कुशवाहा-सैनी-शाक्य को 18, राजभर को 7, पाल को 14, निषाद को 7, बनिया को 5, विश्वकर्मा को 6, लोधी-राजपूत को 4, जाट-गुर्जर को 10, बंजारा को 1, चौहान को 2 और अन्य को 11 जगह मिली है। OBC विभाग के प्रदेश अध्यक्ष मनोज यादव ने इसे राहुल गांधी के सामाजिक न्याय के विजन से जोड़ा है। उन्होंने कहा कि यह समावेशी संगठन बनाने की दिशा में बड़ा कदम है, जहां हर बिरादरी को प्रतिनिधित्व मिले। मनोज यादव ने भाजपा पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने OBC को सालों से उलझाए रखा है। रोहिणी आयोग की सिफारिशों के बावजूद अति पिछड़ों को आरक्षण नहीं दिया जा रहा। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) और निषाद पार्टी जैसे दल अति पिछड़ों को आरक्षण का वादा करके सत्ता में आए, लेकिन मंत्री और विधायक बनने के बाद कुछ नहीं किया। अब चुनाव नजदीक आते ही ओम प्रकाश राजभर जैसे नेता विपक्ष के दरवाजे खटखटा रहे हैं। यादव ने जोर देकर कहा कि राहुल गांधी ही OBC, EBC (अति पिछड़ा वर्ग) और दलितों की असली लड़ाई लड़ रहे हैं।

यह सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है। यूपी में OBC राजनीति का इतिहास गहरा है। 1990 के दशक से मंडल कमीशन की सिफारिशों ने पिछड़ों को राजनीतिक ताकत दी। लेकिन यूपी में OBC को दो हिस्सों में बांटा जाता है – पिछड़ी और अति पिछड़ी। अति पिछड़ी जातियां जैसे कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, भर, मांझी, मछुआ  कुल 17 जातियां  दशकों से SC (अनुसूचित जाति) में शामिल होने की मांग कर रही हैं। इनकी आबादी करीब 10 फीसदी है, लेकिन OBC के 27 फीसदी आरक्षण में इन्हें यादव-कुर्मी जैसा लाभ नहीं मिल पाता। मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ तक सभी ने इन जातियों को SC में डालने का वादा किया, लेकिन अदालती अड़चनों और राजनीतिक दबावों में यह अधर में लटका रहा। 2016 में अखिलेश सरकार ने अधिसूचना जारी की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द कर दी। योगी सरकार ने 2019 में केंद्र को प्रस्ताव भेजा, लेकिन अभी तक कोई फैसला नहीं।

कांग्रेस इस कमजोरी को अपना हथियार बना रही है। मनोज यादव ने ठेका भर्ती प्रथा पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि सरकारी नौकरियों में ठेके पर भर्ती से श्रमिक शोषित हो रहे हैं। रोजगार नहीं मिल रहा, और जो मिलता है वह अस्थायी। कांग्रेस राज्यव्यापी जन आंदोलन छेड़ेगी और पिछड़ों-अति पिछड़ों का हक दिलाएगी। पार्टी की योजना है कि OBC विभाग के तहत मंडल स्तर पर सामाजिक न्याय सम्मेलन आयोजित होंगे। लखनऊ से शुरू होकर पूरे प्रदेश में फैलेंगे ये। अंत में एक बड़ी रैली होगी, जहां BJP की ‘पिछड़ा विरोधी’ नीतियों को बेनकाब किया जाएगा। यह एजेंडा जाति जनगणना से भी जुड़ता है। राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्तर पर OBC नेताओं का पैनल बनाया है, जो जनगणना के फायदे लोगों तक पहुंचाएगा। यूपी में OBC आबादी 52 फीसदी बताई जाती है, लेकिन सटीक आंकड़े न होने से आरक्षण का मुद्दा उलझा रहता है।

अब सवाल यह है कि क्या कांग्रेस का यह दांव कामयाब होगा? देखिए तो समाजवादी पार्टी (SP) ने पहले ही PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूला चला दिया है। अखिलेश यादव OBC को साधने के लिए छोटे दलों से गठबंधन कर रहे हैं। बसपा मायावती की अगुवाई में दलित-OBC गठजोड़ की कोशिश में लगी है। वहीं, BJP ने OBC मोर्चा को मजबूत किया है। केशव प्रसाद मौर्य और स्वतंत्र देव सिंह जैसे नेता अति पिछड़ों को लुभा रहे हैं। लव-कुश फॉर्मूला (लोधी-कुशवाहा) से BJP ने 2022 में कामयाबी पाई। लेकिन 17 अति पिछड़ी जातियों का मुद्दा BJP के गले की हड्डी बन गया है। सुभासपा और निषाद पार्टी के साथ गठबंधन के बावजूद ये जातियां नाराज हैं। ओम प्रकाश राजभर ने हाल ही में योगी सरकार पर आरक्षण न देने का आरोप लगाया। ऐसे में कांग्रेस को मौका मिल सकता है।

यूपी की सियासत में OBC का महत्व कम नहीं। पूर्वी UP में राजभर-निषाद, पश्चिमी में जाट-गुर्जर, मध्य में कुशवाहा-मौर्य जैसी जातियां फैली हैं। 2022 चुनाव में BJP ने OBC वोटों से 255 सीटें जीतीं, लेकिन अब SP-BSP का गठजोड़ और कांग्रेस की नई ऊर्जा चुनौती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कांग्रेस राहुल गांधी के ‘न्याय’ एजेंडे को जमीन पर उतार पाई, तो 2027 में कम से कम 100 सीटें हासिल कर सकती है। लेकिन चुनौतियां भी हैं। पार्टी का संगठन कमजोर है, और स्थानीय स्तर पर BJP-SP का दबदबा। फिर भी, यह OBC कमेटी एक सकारात्मक शुरुआत है। मनोज यादव ने कहा, ‘राहुल जी की सोच सबको साथ लेकर चलना है।’ अगर यह सपना हकीकत बना, तो यूपी की राजनीति में नया अध्याय लिखा जाएगा।

बहरहाल, यह साफ है कि 2027 का चुनाव जातीय समीकरणों पर लड़ा जाएगा। कांग्रेस की यह रणनीति OBC के सबसे कमजोर हिस्से अति पिछड़ों  को निशाना बना रही है। क्या यह PDA को तोड़ पाएगी? या BJP फिर से OBC का किला बरकरार रखेगी? समय बताएगा। लेकिन एक बात पक्की है  आम OBC मतदाता अब सिर्फ वादों पर नहीं भरोसा करेगा। उसे ठोस काम चाहिए। और कांग्रेस अगर आंदोलन चला पाई, तो खेल बदल सकता है। यूपी के सियासी आसमान में तारे चमकने लगे हैं, बस देखना है कौन उन्हें पकड़ पाता है।

Related Articles

Back to top button