बिहार में बोलेगा योगी फैक्टर, रैलियों से बदल सकते हैं सियासी समीकरण

योगी आदित्यनाथ बिहार चुनाव में एनडीए के स्टार प्रचारक बनकर उभरे हैं। उनकी सख्त छवि, हिंदुत्व की राजनीति और प्रभावशाली भाषण शैली से चुनावी माहौल गर्म है। सीमांचल में उनकी रैलियों से एनडीए को मजबूती मिल सकती है। बिहार में उनकी लोकप्रियता ब्रांड वैल्यू में बदल रही है।

अजय कुमार, वरिष्ठ पत्रकार

भारतीय राजनीति में कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जो सिर्फ अपने राज्य तक सीमित नहीं रहते, बल्कि पूरे देश में अपनी छाप छोड़ते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन्हीं में से एक हैं। आज जब बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो रही हैं, तो योगी जी की लोकप्रियता का मीटर फिर से ऊंचाई छू रहा है। एनडीए के उम्मीदवारों की तरफ से उनकी रैलियों की मांग इतनी ज्यादा है कि लगता है, योगी जी बिना चुनावी मैदान में उतरे ही बाजी पलट सकते हैं। बिहार में दो चरणों में होने वाले चुनावों में योगी आदित्यनाथ करीब 20 से ज्यादा सभाओं को संबोधित कर सकते हैं। यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि उनकी बढ़ती हुई ब्रांड वैल्यू का सबूत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद अगर कोई नेता है जिसकी रैलियों में भीड़ उमड़ती है और लोग ध्यान से सुनते हैं, तो वो योगी जी ही हैं।

योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक यात्रा गोरखपुर के मठ से शुरू हुई, लेकिन आज वो पूरे देश के लिए एक मिसाल बन चुके हैं। 2017 में जब वो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, तो कई लोगों को लगा कि एक साधु राजनीति में कितना टिक पाएंगे। लेकिन उन्होंने साबित किया कि सख्त प्रशासन और साफ-सुथरी छवि से कोई भी राज्य बदल सकता है। यूपी में कानून-व्यवस्था पर उनकी जीरो टॉलरेंस पॉलिसी ने अपराधियों को काबू में किया। माफिया और गुंडों के खिलाफ बुलडोजर एक्शन ने पूरे देश में चर्चा बटोरी। लोग कहते हैं कि योगी जी की वजह से यूपी में अब महिलाएं रात को भी सुरक्षित महसूस करती हैं। इसी छवि की वजह से बिहार जैसे राज्य में भी उनकी मांग बढ़ रही है, जहां कानून-व्यवस्था हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है। बिहार के लोग अपने यहां भी योगी जैसा मुख्यमंत्री चाहते हैं, जो बातें कम करे और काम ज्यादा।

अब बात करें बिहार चुनाव की। 2025 के विधानसभा चुनाव में बिहार की 243 सीटों के लिए 6 और 11 नवंबर को वोटिंग होनी है। एनडीए गठबंधन में बीजेपी और जेडीयू के बीच सीटों का बंटवारा हो चुका है, जहां दोनों पार्टियां लगभग बराबर सीटों पर लड़ रही हैं। लेकिन चुनावी रणनीति में स्टार प्रचारकों की भूमिका बहुत अहम होती है। यहां योगी जी की एंट्री हो रही है। सूत्रों के मुताबिक, वो उत्तर प्रदेश से सटे जिलों के अलावा सीमांचल इलाके में ज्यादा फोकस करेंगे। पूर्णिया, अररिया, कटिहार, दरभंगा, मधुबनी और सीतामढ़ी जैसे जिलों में उनकी रैलियां हो सकती हैं। सीमांचल में मुस्लिम आबादी ज्यादा है, और यहां घुसपैठ जैसे मुद्दे हमेशा गर्म रहते हैं। योगी जी की हिंदुत्व वाली छवि और सख्त रुख यहां एनडीए को फायदा पहुंचा सकता है। पिछली बार 2020 के चुनाव में भी योगी जी ने बिहार में 18 रैलियां की थीं, और उनमें से 12 सीटों पर बीजेपी जीती थी। यानी उनकी स्ट्राइक रेट 67 प्रतिशत रही। इसी तरह, हरियाणा विधानसभा चुनाव में 64 प्रतिशत से ज्यादा और महाराष्ट्र में तो 95 प्रतिशत तक स्ट्राइक रेट थी। ये आंकड़े बताते हैं कि जहां योगी जी जाते हैं, वहां वोटरों का मन बदल जाता है।

योगी जी की लोकप्रियता का राज क्या है? सबसे पहले तो उनका बोलने का अंदाज। वो बिना लाग-लपेट के सीधे बात करते हैं। भीड़ से आंख मिलाकर संवाद करते हैं, जैसे घर के बड़े बुजुर्ग सलाह दे रहे हों। उनका नारा ‘बंटोगे तो कटोगे’ महाराष्ट्र और हरियाणा चुनावों में टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। अब बिहार में भी इसकी चर्चा शुरू हो गई है। योगी जी कहते हैं कि हिंदू एकजुट रहें, तो कोई ताकत उन्हें हरा नहीं सकती। राम मंदिर और महाकुंभ जैसे आयोजनों ने उनकी हिंदुत्व वाली इमेज को और मजबूत किया है। बिहार के लोग राम मंदिर से भावनात्मक रूप से जुड़े हैं, क्योंकि वहां से कई लोग अयोध्या जाते हैं। योगी जी की सख्त प्रशासक वाली छवि भी लोगों को आकर्षित करती है। यूपी में उन्होंने निवेश बढ़ाया, रोजगार दिए और इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारा। बिहार में भी लोग ऐसी ही लीडरशिप चाहते हैं। एक सर्वे में देखा गया कि युवा वोटर योगी जी को मॉडल मुख्यमंत्री मानते हैं।

लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि योगी जी का बिहार दौरा ज्यादा असर नहीं डालेगा। विपक्षी नेता जैसे पप्पू यादव ने कहा है कि बिहार गांधी, जेपी और लोहिया की धरती है, जहां नफरत की जगह नहीं। वो कहते हैं कि योगी जी पहले भी आए थे, लेकिन बिहार की संस्कृति अलग है। महागठबंधन में तेजस्वी यादव जैसे नेता युवाओं और ओबीसी वोटरों पर फोकस कर रहे हैं। वो कहते हैं कि योगी जी की सख्ती सिर्फ शो है, असल में विकास की बात होनी चाहिए। लेकिन आंकड़े कुछ और कहानी बयां करते हैं। 2020 में योगी जी की रैलियों ने एनडीए को सीमांचल में मजबूती दी थी। इस बार भी बीजेपी ‘कारपेट बॉम्बिंग’ की रणनीति अपनाने वाली है, जिसमें मोदी, शाह और योगी जैसे नेता पूरे राज्य में घूमेंगे।

योगी जी की पॉपुलैरिटी सिर्फ चुनाव तक सीमित नहीं। सोशल मीडिया पर देखिए, एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लोग कह रहे हैं कि बिहार चुनाव में योगी जी की डिमांड सबसे ज्यादा है। एक यूजर ने लिखा कि भावी प्रधानमंत्री योगी जी का असर हर जगह है। दूसरे ने कहा कि योगी जी की एक सभा चुनावी नतीजे बदल सकती है। ये बातें बताती हैं कि आम आदमी योगी जी को कैसे देखता है – एक मजबूत नेता के रूप में, जो वादे निभाता है। यूपी में उन्होंने कोरोना काल में अच्छा मैनेजमेंट किया, महाकुंभ को सफल बनाया और अब बिहार में घुसपैठ जैसे मुद्दों पर बोलेंगे। ये मुद्दे सीमांचल में गर्म हैं, जहां बांग्लादेशी घुसपैठ की शिकायतें आती रहती हैं। योगी जी का कहना है कि अवैध घुसपैठ देश की सुरक्षा के लिए खतरा है, और वो इसे रोकने के लिए सख्त कदम उठाते हैं।

अब सवाल ये है कि क्या योगी जी बिहार में एनडीए की नैया पार लगा पाएंगे? नीतीश कुमार की जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन मजबूत है, लेकिन महागठबंधन भी कम नहीं। तेजस्वी यादव रोजगार और विकास पर बात कर रहे हैं। लेकिन योगी जी का ट्रैक रेकॉर्ड देखें, तो लगता है कि वो नैरेटिव सेट करने में माहिर हैं। उनकी बातें वोटरों को एकजुट करती हैं। जैसे महाराष्ट्र में ‘बंटोगे तो कटोगे’ ने हिंदू वोटों को गोलबंद किया, वैसे ही बिहार में भी हो सकता है। बिहार-यूपी सीमा पर 19 सीटें हैं, जहां त्रिकोणीय मुकाबला है। यहां योगी जी का प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि यूपी से सटे इलाकों में उनकी फॉलोइंग ज्यादा है।

कुल मिलाकर, योगी आदित्यनाथ आज की राजनीति में एक ब्रांड बन चुके हैं। वो सिर्फ यूपी के सीएम नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर एक चेहरा हैं जो हिंदुत्व, विकास और सख्ती का मिश्रण पेश करते हैं। बिहार चुनाव में उनकी रैलियां न सिर्फ एनडीए को मजबूत करेंगी, बल्कि पूरे देश में उनकी लोकप्रियता को और बढ़ावा देंगी। लोग कहते हैं कि योगी जी जहां जाते हैं, वहां जीत की खुशबू आती है। अब देखना ये है कि बिहार की जनता उनका स्वागत कैसे करती है। चुनावी मौसम में योगी जी का तूफान कितना असरदार होगा, ये वक्त बताएगा। लेकिन इतना तय है कि राजनीति में ऐसे नेता कम ही होते हैं जो बिना डरे अपनी बात रखें और जनता को जोड़ें। योगी जी इसी कड़ी में हैं, और उनकी कहानी अभी लंबी चलने वाली है।

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