बिहार चुनाव 2025: आईआरसीटीसी घोटाले ने तेजस्वी यादव की मुख्यमंत्री महत्वाकांक्षा को दिया बड़ा झटका

आईआरसीटीसी घोटाले में लालू प्रसाद, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव पर आरोप तय। बिहार चुनाव से ठीक पहले राजनीतिक हलचल, सीबीआई और ईडी की जांच में भ्रष्टाचार के सबूत सामने। चुनावी माहौल पर असर और तेजस्वी की मुख्यमंत्री महत्वाकांक्षा पर सवाल।

अजय कुमार, वरिष्ठ पत्रकार

बिहार की राजनीति हमेशा से ही दिलचस्प रही है, जहां परिवारवाद, जातीय समीकरण और भ्रष्टाचार के आरोप चुनावी जंग का हिस्सा बनते हैं। लेकिन इस बार, नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार को एक बड़ा झटका लगा है। दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने आईआरसीटीसी घोटाला मामले में लालू यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी और बेटे तेजस्वी यादव के खिलाफ आरोप तय कर दिए हैं। यह फैसला 13 अक्टूबर 2025 को आया, जब कोर्ट ने कहा कि सीबीआई की जांच में भ्रष्टाचार और आपराधिक साजिश के पर्याप्त सबूत मिले हैं। अब इस मामले में मुकदमा चलेगा, और यह बिहार की चुनावी सरगर्मियों में आग की तरह फैल रहा है। क्या यह फैसला तेजस्वी यादव की मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पर पानी फेर देगा? या फिर आरजेडी इसे राजनीतिक साजिश बताकर जनता के बीच विक्टिम कार्ड खेलकर फायदा उठाएगी? 

सबसे पहले बात करते हैं इस घोटाले की जड़ों की। आईआरसीटीसी घोटाला कोई नया नहीं है, लेकिन इसका असर अब चुनावी मौसम में ज्यादा महसूस हो रहा है। मामला 2004 से 2009 के बीच का है, जब लालू प्रसाद यादव केंद्र में रेल मंत्री थे। सीबीआई के मुताबिक, उस वक्त आईआरसीटीसी के दो होटलों रांची और पुरी के बीएनआर होटलों के रखरखाव और संचालन के ठेके एक निजी कंपनी सुजाता होटल्स प्राइवेट लिमिटेड को दिए गए। आरोप है कि यह ठेके पक्षपातपूर्ण तरीके से दिए गए, और बदले में लालू परिवार को पटना में कीमती जमीनें ‘गिफ्ट’ के रूप में मिलीं। ये जमीनें राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव से जुड़ी कंपनियों के नाम ट्रांसफर की गईं। सीबीआई की चार्जशीट में कहा गया है कि लालू यादव ने टेंडर प्रक्रिया को प्रभावित किया, और कंपनी के मालिक विजय और विनय कोचर बंधुओं ने लालू के करीबियों को फायदा पहुंचाया। सरला गुप्ता और विनोद कुमार जैसे लोग भी इस साजिश में शामिल बताए गए हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इसे मनी लॉन्ड्रिंग का मामला बनाया, और 80 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति जब्त की। रांची में रेडिसन होटल प्रोजेक्ट के लिए आईआरसीटीसी ने रेलवे की जमीन सस्ते में दी, लेकिन बदले में दिल्ली के नेहरू प्लेस में राबड़ी देवी और तेजस्वी के नाम पर फ्लैट्स मिले, जिनकी कीमत करीब 4.5 करोड़ बताई जाती है।

कोर्ट में सुनवाई के दौरान का दृश्य भी काफी नाटकीय था। जज ने पूछा, ‘लालू प्रसाद कहां हैं?’ लालू हाथ जोड़कर खड़े हुए और बोले, ‘मैं यहां हूं, निर्दोष हूं।’ राबड़ी और तेजस्वी ने भी खुद को बेकसूर बताया, लेकिन कोर्ट ने आईपीसी की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धाराओं के तहत आरोप तय कर दिए। कोर्ट का कहना था कि सीबीआई के दस्तावेज प्रथम दृष्टया आरोप साबित करने के लिए काफी हैं। अब 27 अक्टूबर से इस मामले की रोजाना सुनवाई होगी, जो छठ पूजा के बाद शुरू होगी। यह टाइमिंग चुनावी दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि बिहार में दो चरणों में वोटिंग नवंबर में होनी है।

अब सवाल यह है कि क्या यह फैसला बिहार चुनाव पर असर डालेगा? बिहार की जनता जाति, विकास और रोजगार जैसे मुद्दों पर वोट देती है, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोप भी चुनावी बहस का हिस्सा बनते हैं। तेजस्वी यादव खुद को युवाओं का आइडल बताते हैं क्रिकेटर से राजनेता बने, फिटनेस प्रेमी और ‘नौकरी देने वाले’ नेता के रूप में। 2020 के चुनाव में महागठबंधन की 110 सीटों में उनकी भूमिका अहम थी। लेकिन अब आईआरसीटीसी केस ने उनकी इमेज पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सीबीआई रिपोर्ट में साफ कहा गया कि टेंडर में हेराफेरी हुई, और परिवार को ‘बेनामी’ संपत्ति मिली। हालांकि आरोप अभी साबित नहीं हुए, लेकिन आरोप तय होने से जनता में संदेह पैदा हो सकता है। हालिया सीवोटर सर्वे में 55 फीसदी युवा (18-35 साल) कहते हैं कि भ्रष्टाचार के आरोपी को मुख्यमंत्री नहीं बनाना चाहिए। 2024 लोकसभा चुनाव में आरजेडी को सिर्फ 4 सीटें मिलीं, और इसका एक कारण परिवार की छवि को ही माना गया। सोशल मीडिया पर #TejaswiCorrupt जैसे ट्रेंड चल रहे हैं, जहां भाजपा समर्थक उन्हें ‘डायनेस्टिक भ्रष्टाचारी’ बता रहे हैं।

तेजस्वी का बचाव है कि यह ‘राजनीतिक साजिश’ है। वे कहते हैं कि मोदी सरकार सीबीआई और ईडी को चुनावी हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है। और सच भी है कि इस केस की टाइमिंग संदिग्ध लगती है। 2017 में सीबीआई ने केस दर्ज किया, 2018 में चार्जशीट दाखिल हुई, लेकिन 2025 में जब तेजस्वी खुद को सीएम कैंडिडेट घोषित करते हैं, तभी आरोप तय होते हैं। 2019 लोकसभा चुनाव में आरजेडी को एक भी सीट नहीं मिली, और उस वक्त भी ईडी की कार्रवाई का असर पड़ा था। लेकिन 2020 में महागठबंधन ने ‘विक्टिम कार्ड’ खेलकर 110 सीटें जीतीं। तेजस्वी अब भी इसे भुनाने की कोशिश कर रहे हैं रैलियों में कहते हैं, ‘मैं निर्दोष हूं, भाजपा मुझे सता रही है क्योंकि बिहार बदल रहा है।’ आरजेडी कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर #JusticeForTejaswi चला रहे हैं। लेकिन क्या यह कार्ड काम करेगा? बिहार की जनता अब ज्यादा जागरूक हो गई है। लोकसभा 2024 की हार ने दिखाया कि ‘विक्टिम’ कार्ड पुराना पड़ रहा है। ईबीसी और अपर कास्ट इसे ‘ड्रामा’ मानते हैं। नीतीश कुमार, जो एनडीए के चेहरे हैं, ‘विकास बनाम भ्रष्टाचार’ पर फोकस कर रहे हैं।

लालू परिवार के लिए ऐसे मामले नए नहीं हैं। चारा घोटाला, लैंड फॉर जॉब्स जैसे 10 से ज्यादा केस चल रहे हैं। 1997 से जेल-बेल का सिलसिला है, लेकिन आरजेडी का कोर वोट बैंक एमवाई (मुस्लिम-यादव) और दलित कभी नहीं डगमगाया। 2019 में लालू जेल में थे, फिर भी 16 फीसदी वोट मिले। तो क्या आईआरसीटीसी चार्जशीट से कोई फर्क नहीं पड़ेगा? कोर वोटर्स पर शायद नहीं, लेकिन स्विंग वोटर्स पर जरूर। पूरे देश का इतिहास बताता है कि इन्हीं स्विंग वोटर्स से हार-जीत तय होती है। चार्जशीट ने तेजस्वी पर ‘लालू 2.0’ का ठप्पा लगा दिया, जो युवा वोट (40 फीसदी) को भटका सकता है। ऐसे लोग जो सोचते थे कि तेजस्वी को एक मौका देना चाहिए, अब हिचक सकते हैं। 2020 चुनाव में एक फीसदी से कम वोटों ने एनडीए को सरकार बनाने का मौका दिया। हरियाणा चुनाव में भी यही हुआ।

इसके अलावा, महागठबंधन में कलह बढ़ सकती है। तेजस्वी सीएम कैंडिडेट हैं, लेकिन कांग्रेस ने अभी तक खुलकर समर्थन नहीं किया। राहुल गांधी वोटर अधिकार यात्रा में सवालों से बचते रहे। उदित राज जैसे कांग्रेसी कहते हैं कि तेजस्वी आरजेडी का फेस हैं, लेकिन गठबंधन का नहीं। सीट शेयरिंग पर विवाद सुलझ चुका है, लेकिन लिस्ट अभी नहीं आई। अब यह आशंका है कि कांग्रेस और अन्य पार्टियां तेजस्वी से दूरी बना सकती हैं या मोलभाव बढ़ा सकती हैं। हाल ही में आरजेडी को और झटका लगा, जब दो कद्दावर विधायकों विभा देवी और प्रकाश वीर ने इस्तीफा दे दिया और जेडीयू में शामिल होने की अटकलें हैं। यह चुनाव से पहले आरजेडी की कमजोरी दिखाता है।

कुल मिलाकर, आईआरसीटीसी घोटाला बिहार चुनाव को और रोचक बना रहा है। एक तरफ एनडीए विकास और सुशासन का नारा दे रही है, दूसरी तरफ महागठबंधन नौकरी, शिक्षा और सामाजिक न्याय पर फोकस कर रहा है। तेजस्वी की रणनीति साफ है नौकरी के वादों के साथ ‘सताए गए योद्धा’ की इमेज जोड़ना। लेकिन अगर ट्रायल में सबूत मजबूत निकले, तो उनकी ‘आइडल’ इमेज चूर-चूर हो सकती है। याद रखें, 2017 में इसी केस ने नीतीश कुमार को तेजस्वी से गठबंधन तोड़ने पर मजबूर किया था। बिहार की जनता क्या फैसला करेगी, यह वक्त बताएगा। लेकिन इतना तय है कि राजनीति में आरोप और साजिश का खेल जारी रहेगा, और असली विजेता वही होगा जो जनता के दिल में जगह बनाएगा। चुनावी जंग में कानूनी लड़ाई का यह मोड़ बिहार की सियासत को नई दिशा दे सकता है।

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