बिहार चुनाव 2025: मोदी के ‘हनुमान’ चिराग ने बनाया समीकरण, नीतीश की स्टीयरिंग दिल्ली के हवाले
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एनडीए ने सीट शेयरिंग का ऐतिहासिक फॉर्मूला तय किया है। बीजेपी और जेडीयू को 101-101 सीटें, एलजेपी (रामविलास) को 29 सीटें मिलीं। चिराग पासवान बने बड़ा चेहरा, नीतीश की भूमिका सीमित। मोदी फैक्टर के साथ एनडीए फिर सत्ता की जंग में उतरा है।


बिहार की राजनीति में एक बार फिर बड़ा समीकरण बन गया है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने विधानसभा चुनाव 2025 के लिए सीट शेयरिंग का ऐतिहासिक फॉर्मूला तय कर लिया है। दिल्ली और पटना में पिछले चार दिनों से चली लंबी बैठकों और रणनीतिक चर्चाओं के बाद आखिरकार यह फैसला सामने आया। बीजेपी और जेडीयू को 101-101 सीटें, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 29, जबकि जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 6-6 सीटें दी गईं। कुल 243 में से 240 सीटों पर सहमति बन चुकी है। यह बंटवारा केवल संख्याओं का खेल नहीं, बल्कि बिहार की स्टीयरिंग पॉलिटिक्स के अंत और नई दिल्ली-केंद्रित राजनीति की शुरुआत का संकेत है।इस बार एनडीए में पहली बार बीजेपी और जेडीयू बराबरी की स्थिति में हैं। 2020 में जेडीयू को 115 और बीजेपी को 110 सीटें मिली थीं। तब बीजेपी 74 सीटें जीतकर बड़ी पार्टी बनी और जेडीयू 43 पर सिमट गई। इसी आंकड़े को आधार बनाकर बीजेपी ने इस बार बराबरी की मांग रखी। नीतीश कुमार ने अंततः इस पर मुहर लगाई, लेकिन यह उनके राजनीतिक भविष्य पर बड़ा सवाल छोड़ गया है। पिछले तीन दशकों में पहली बार जेडीयू इतनी कम सीटों पर लड़ेगी।2005 में जेडीयू 139 और बीजेपी 102 सीटों पर थी, 2010 में जेडीयू 141 और बीजेपी 102। अब 2025 में दोनों 101-101 पर हैं। यानी जिस नीतीश ने कभी बीजेपी को छोटा भाई बनाया था, वो अब बराबर की कुर्सी पर बैठे हैं।
इस पूरे फॉर्मूले में सबसे बड़ा विजेता चिराग पासवान माने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनकी नजदीकी अब खुलकर सामने है। 2020 में एलजेपी (रामविलास) ने अकेले लड़कर बीजेपी-जेडीयू दोनों को कई सीटों पर नुकसान पहुंचाया था। फिर भी इस बार एनडीए ने उन्हें 29 सीटें देकर गठबंधन में वापस लाया। चिराग ने सोशल मीडिया पर लिखा, “प्रधानमंत्री का विश्वास मेरा सबसे बड़ा सम्मान है। बिहार फिर एनडीए के साथ चमकेगा।” उनका ‘मोदी का हनुमान’ वाला टैग अब एनडीए की चुनावी रणनीति का हिस्सा बन गया है।मांझी और कुशवाहा को 6-6 सीटें मिलीं। दोनों ने अधिक दावे किए थे, पर अंततः सहमति जताई। बीजेपी का उद्देश्य छोटे दल साधकर ‘महागठबंधन’ की संभावनाओं को कमज़ोर करना है।बिहार की राजनीति में ‘स्टीयरिंग पॉलिटिक्स’ शब्द नीतीश कुमार के लिए बनाया गया था। 2005 से 2015 तक वो कहते रहे “बारात किसी की हो, दूल्हा नीतीश ही होगा।” लेकिन अब यह वाक्य इतिहास बन गया है। एनडीए ने स्पष्ट किया है कि 2025 का चुनाव ‘मोदी के चेहरे पर’ लड़ा जाएगा, नीतीश के नहीं।
हाल ही में जब मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 75 लाख महिलाओं को 10 हज़ार रुपये ट्रांसफर किए गए, तो कार्यक्रम का उद्घाटन दिल्ली से प्रधानमंत्री ने किया, नीतीश मौजूद न थे। राजनीतिक हलकों में इसे ‘नीतीश की कमज़ोर पकड़’ का संकेत माना जा रहा है।एनडीए की रणनीति पूरी तरह जातिगत समीकरणों पर टिकी है। चिराग को पासवान बहुल सीटें, मांझी को महादलित इलाके, और कुशवाहा को कोइरी-कुर्मी बेल्ट दी गई हैं। बीजेपी और जेडीयू के बीच ‘सीट स्वैपिंग’ भी की गई है जहां बीजेपी कमज़ोर है, वहां जेडीयू के उम्मीदवार लड़ेंगे और इसके उलट। उद्देश्य है एंटी-इनकंबेंसी को काटना।दूसरी तरफ महागठबंधन में अभी तक सीट बंटवारे पर सहमति नहीं हुई है। आरजेडी 120-130, कांग्रेस 25-30 और वाम दल 10-15 सीटों की मांग कर रहे हैं। तेजस्वी यादव की “हर घर नौकरी” यात्रा ने कुछ जोर पकड़ा है, लेकिन एनडीए की एकजुटता के आगे वह फिलहाल कमज़ोर दिख रही है। महागठबंधन ने एनडीए पर “विकास के नाम पर जुमलेबाज़ी” का आरोप लगाया है, वहीं एनडीए ने कहा है कि “डबल इंजन की गति से बिहार बदला है।”
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह चुनाव नीतीश कुमार के लिए निर्णायक साबित हो सकता है। 74 वर्ष की आयु में उन्होंने कई बार राजनीतिक यू-टर्न लिए हैं, लेकिन इस बार उनकी भूमिका ‘समान साझेदार’ से अधिक ‘प्रतीकात्मक नेता’ की है। बीजेपी अब स्पष्ट रूप से नेतृत्वकारी भूमिका में है। विपक्ष उनके कद पर तंज कस रहा है। पप्पू यादव ने कहा, “नीतीश अब दिल्ली की राह पकड़ेंगे, पटना उनसे छूट गया है।एनडीए अपना चुनाव ‘विकास की गारंटी’ के नाम पर लड़ेगा। पीएम आवास, उज्ज्वला, आयुष्मान और बिजली-सड़क योजनाओं को उपलब्धि बताया जाएगा। वहीं विपक्ष बेरोजगारी, पलायन और बाढ़ जैसे मुद्दों को मुख्य हथियार बनाएगा। दोनों तरफ जनसंपर्क अभियान तेज़ हो चुके हैं। राज्य में दो चरणों में मतदान 6 और 11 नवंबर को होगा, गिनती 14 नवंबर को। यह चुनाव केवल सीटों का नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति की दिशा का है। क्या नीतीश कुमार फिर से कमाल दिखाएंगे या मोदी फैक्टर सब पर भारी पड़ेगा? जनता इस बार सिर्फ नेताओं को नहीं, बल्कि संपूर्ण गठबंधन की विश्वसनीयता को तौलेगी। इतना तो पक्का है बिहार की स्टीयरिंग अब दिल्ली के हाथ में है।



