जमानत के फैसले पर पूर्व CJI चंद्रचूड़ का हमला, बोले ‘बेला त्रिवेदी को भेजते

पूर्व CJI ने कहा कि उनके कार्यकाल में 21000 लोगों को जमानत दी गई। उन्होंने कहा कि SC में मुकदमों का आवंटन रैंडम तरीके से कम्प्यूटर द्वारा किया जाता है, इसलिए इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं रही कि कौन सा केस किस जज के पास जाएगा।

Ex CJI DY Chandrachud: देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (Ex CJI) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने उन आरोपों का खंडन करते हुए उन्हें खारिज किया है, जिसमें कहा गया है कि वे जमानत के वैसे मामलों को जानबूझकर जस्टिस बेला त्रिवेदी को भेज देते थे, जिनमें जमानत नहीं देना होता था या जमानत देने में कम रूचि रखते थे। इंडिया टुडे के कॉन्क्लेव में इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ये आरोप निराधार हैं और अदालत में दर्ज रिकॉर्ड के खिलाफ हैं। पूर्व CJI ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों का आवंटन रैंडम तरीके से कम्प्यूटर द्वारा किया जाता है, इसलिए इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं रही कि कौन सा केस किस जज के पास जाएगा।

उन्होंने कहा, “ये बेबुनियाद आरोप लगाना तो ठीक है, लेकिन तथ्य इसके ठीक उलट हैं। जब मैं भारत का मुख्य न्यायाधीश था और मैंने कहा था कि हम जमानत को प्राथमिकता देंगे, तो दो साल के अपने मुख्य न्यायाधीश के कार्यकाल में हमने 21,000 मामलों में जमानत दी। भारत के 21,000 से ज़्यादा लोगों को उस दौरान जमानत मिली है।”

हरेक हकदार को जमानत मिली: जस्टिस चंद्रचूड़
इसके साथ ही पूर्व CJI ने जोर देकर कहा कि उनके कार्यकाल में हरेक हकदार को जमानत मिली है। उन्होंने अपने जबाव के पक्ष में कांग्रेस नेता पवन खेड़ा के मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि फरवरी 2023 में पवन खेड़ा को असम पुलिस ने दिल्ली हवाई अड्डे पर कांग्रेस के महाधिवेशन के लिए रायपुर जाने वाली उड़ान में सवार होते समय गिरफ़्तार कर लिया था। अडानी-हिंडनबर्ग विवाद पर एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ उनकी टिप्पणी को लेकर उत्तर प्रदेश और असम में उन पर कई प्राथमिकी दर्ज की गईं थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले में दखल देते हुए उन्हें उसी दिन अंतरिम ज़मानत दे दी थी और बाद में गिरफ़्तारी से सुरक्षा भी बढ़ा दी थी।

जमानत के मामलों की सुनवाई SC की हर बेंच करती है
जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि ऐसे में बताइए कि उन्हें किसने यह सुरक्षा दी थी। उन्होंने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट ही है, जिसने खेड़ा को यह राहत और सुरक्षा प्रदान की थी। इसके आगे उन्होंने कहा कि जमानत के मामले सिर्फ जस्टिस बेला त्रिवेदी को सौंपने का यह आंकलन और आरोप तथ्यात्मक रूप से गलत है। उन्होंने कहा कि जमानत के मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की हर बेंच करती है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में जमानत के पहुंचने वाले अधिकांश मामले आपराधिक मामले होते हैं, जिन्हें रैंडमली कम्प्यूटर द्वारा आवंटित किया जाता है। दरअसल, ऐक ऐसी धारणा रही है कि जस्टिस बेला त्रिवेदी कम ही फरियादियों को जमानत देती थीं और उनका रुख इस मामले में सबसे सख्त रहा है।

एक-दो शिकायतों को व्यवस्थागत मुद्दा नहीं बना सकते
उन्होंने कहा कि जब कोई जज रिटायर होते हैं या किसी पीठ में उनकी पुनर्नियुक्ति होती है तो मामलों को पीठों को सौंपने का तरीका काफी पुराने समय से चली आ रही परंपरा के मुताबिक ही होता है। उन्होंने दो टूक कहा कि किसी एक-दो शिकायतों को व्यवस्थागत मुद्दा नहीं बनाया जा सकता है क्योंकि व्यवस्था के तथ्य बहुत अलग हैं। उन्होंने फिर अपनी उस बात को दोहराया कि जमानत एक नियम होना चाहिए, जबकि जेल अपवाद। यानी अधिक से अधिक मामलों में जमानत दी जानी चाहिए।

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