इमरजेंसी के विरोध में खुशवंत सिंह ने लौटाया पद्म भूषण, इंदिरा सरकार को कड़ा संदेश

कांग्रेस सरकार ने ही खुशवंत सिंह को पद्मश्री दिया था, लेकिन गोल्डन टेंपल वाली घटना से वह नाराज हो गए थे। ऐसी स्थिति हुई कि उन्होंने मुझे बुलाया और अपने घर से बाहर आकर पद्म भूषण सम्मान मेरे हाथ में दे दिया। हालांकि 2007 में उन्हें पद्म विभूषण सम्मान भी मिला, जो कांग्रेस की सरकार में ही दिया गया।

खुशवंत सिंह देश के वह लेखक थे, जिन्होंने भारत के विभाजन पर खूब लिखा तो वहीं सिख इतिहास पर भी शानदार पुस्तकें लिखीं। उनके पिता सरदार सोभा सिंह दिल्ली के निर्माताओं में से एक थे, जिन्होंने अंग्रेजी राज में कई इमारतों को तैयार कराया। खुशवंत सिंह सांसद रहे और सरकारों के भी करीबी रहे। उनकी पहचान एक लेखक से कहीं ज्यादा थी। उन्हें 1974 में कांग्रेस राज में पद्मभूषण सम्मान मिला था। यह वही दौर था, जब इंदिरा गांधी की सरकार थी। लेकिन 1984 में उन्हीं इंदिरा गांधी की ओर से स्वर्ण मंदिर में कराए गए ऑपरेशन ब्लू स्टार का विरोध किया और सम्मान भी लौटा दिया था।

इस बारे में सिख इतिहास की जानकारी रखने वाले सरदार तरलोचन सिंह ने दिलचस्प वाकया सुनाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार ने ही खुशवंत सिंह को पद्मश्री दिया था, लेकिन गोल्डन टेंपल वाली घटना से वह नाराज हो गए थे। ऐसी स्थिति हुई कि उन्होंने मुझे बुलाया और अपने घर से बाहर आकर पद्म भूषण सम्मान मेरे हाथ में दे दिया। हालांकि 2007 में उन्हें पद्म विभूषण सम्मान भी मिला, जो कांग्रेस की सरकार में ही दिया गया। ANI से पॉडकास्ट में तरलोचन सिंह ने कहा कि दिल्ली को बनाने में सिखों का बड़ा योगदान रहा है, जिसे आज लोग नहीं जानते। उन्होंने कहा, ‘1911 में पुरानी दिल्ली को देश की राजधानी घोषित किया गया। इसके बाद नई दिल्ली बनाई गई। सारे ठेकेदार सिख थे। सर सोभा सिंह, बिशाखा सिंह, सरदार मोहन सिंह, राय बहादुर रंजीत समेत पांच लोग थे। इन 4 ठेकेदारों ने ही दिल्ली का निर्माण किया।’

उन्होंने बताया कि मोहम्मद अली जिन्ना दिल्ली में जिस घर में रहते थे, वह कोठी बिशाखा सिंह की थी। उन्होंने कहा, ‘खुशवंत सिंह का सिख इतिहास में जो योगदान है, वह किसी और का नहीं है। उन्होंने सिख इतिहास पर किताब लिखी। उन्होंने सिखों के बारे में खूब लेख लिखे और दुनिया को बताया कि उनका योगदान क्या है। तरलोचन सिंह ने कहा कि जब गोल्डन टेंपल में ऐक्शन हुआ तो खुशवंत सिंह ने मुझसे बात की। उन्होंने मुझसे पूछा कि आखिर वहां क्या हुआ है। इस पर खुशवंत सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और दुनिया को गोल्डन टेंपल में क्या हुआ, उसके बारे में बता दिया। इस पर इंदिरा गांधी बहुत नाराज हुईं। अंत में मुझे ज्ञानी जैल सिंह ने 15 दिनों की जबरिया छुट्टी पर भेज दिया।

यही नहीं तरलोचन सिंह ने कहा कि भारत और सिख इतिहास में महाराजा रणजीत सिंह एक बड़ी हस्ती हैं, लेकिन उनके बारे में एक भी चैप्टर पुस्तकों में नहीं है। उन्होंने कहा कि महाराजा रणजीत सिंह ऐसे शासक थे, जिन्होंने सेकुलरिज्म का असली मतलब तक समझाया। उन्होंने कहा कि महाराजा ने काशी विश्वनाथ, स्वर्ण मंदिर और लाहौर की सुनहरी मस्जिद को बराबर सोना दान में दिया। इसके अलावा पुरी के जगन्नाथ मंदिर के लिए कोहिनूर हीरा देकर गए। उन्होंने बताया कि यही सेकुलरिज्म है, जिसमें सभी धर्मों का सम्मान किया जाए।

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