बिहार से असम तक घुसपैठियों का मुद्दा बीजेपी की नई चुनावी रणनीति, मोदी ने विपक्ष को दिया सीधा संदेश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के पूर्णिया में अपनी रैली से सियासत में तूफान ला दिया है। घुसपैठ का मुद्दा उठाकर उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की जमीन तैयार कर दी। पूर्णिया में 15 सितंबर को नया एयरपोर्ट शुरू करते हुए मोदी ने करीब 40 हजार करोड़ की योजनाओं का तोहफा दिया, लेकिन उनका असली निशाना विपक्षी इंडिया गठबंधन था। उन्होंने साफ कहा, ‘चाहे जितना जोर लगा लें, एक भी घुसपैठिए को बिहार में नहीं रहने देंगे।’ यह बयान उस वक्त आया जब विपक्ष ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के जरिए विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के खिलाफ माहौल बना रहा है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव SIR को वोटर लिस्ट से खास समुदाय के नाम हटाने की साजिश बता रहे हैं।पूर्णिया का इलाका सीमांचल में आता है, जहां जनसांख्यिकी का मुद्दा हमेशा गर्म रहता है। मोदी ने कहा, ‘बिहार, असम, बंगाल जैसे राज्यों में घुसपैठ ने डेमोग्राफी बिगाड़ दी है। कांग्रेस और राजद घुसपैठियों की ढाल बन रहे हैं।’ उन्होंने विपक्ष पर देश की सुरक्षा को दांव पर लगाने का आरोप लगाया। रैली में एक अनोखा नजारा देखने को मिला, जब निर्दलीय सांसद पप्पू यादव मंच पर मोदी के साथ दिखे। पप्पू, जो अक्सर कांग्रेस के साथ कैंपेन करते हैं, इस बार भाजपा के मंच पर थे। दोनों के बीच हंसी-मजाक का वीडियो वायरल हो गया। पप्पू ने कहा कि वे बाढ़ प्रभावितों की मदद के लिए मोदी से मिले, लेकिन विपक्ष इसे भाजपा की सियासी चाल मान रहा है।

विपक्ष ने भी पलटवार किया। तेजस्वी यादव ने कहा, ‘घुसपैठ रोकने की जिम्मेदारी केंद्र की है, जो भाजपा के पास है। फिर बिहार में घुसपैठिए कैसे आ रहे हैं?’ इंडिया गठबंधन की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने 16 दिनों में 110 विधानसभा सीटें कवर कीं। राहुल और तेजस्वी ने भागलपुर, जहानाबाद जैसे इलाकों में ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’ का नारा बुलंद किया। उनका दावा है कि SIR के बहाने अल्पसंख्यक वोटरों को निशाना बनाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर टिप्पणी की कि अगर वोटर लिस्ट में गड़बड़ी साबित हुई, तो SIR के नतीजे रद्द हो सकते हैं। विपक्ष ने संसद में हंगामा किया, जिसमें मल्लिकार्जुन खरगे और अखिलेश यादव शामिल थे।घुसपैठ का सवाल दोनों पक्षों को उलझा रहा है। भाजपा का कहना है कि विपक्ष वोट बैंक की खातिर घुसपैठियों का साथ दे रहा है। दूसरी ओर, महागठबंधन पूछता है कि केंद्र सरकार सीमा सुरक्षा में क्यों नाकाम है? आंकड़े बताते हैं कि पूर्वी भारत में लाखों अवैध प्रवासी हैं, जो रोजगार और सुरक्षा को प्रभावित कर रहे हैं। पूर्णिया में मोदी ने कहा, ‘भारत में कानून चलेगा, घुसपैठियों की मनमानी नहीं।’ लेकिन तेजस्वी का सवाल है कि बांग्लादेश सीमा पर घुसपैठ क्यों बढ़ रही है? दोनों तरफ से सवालों की बौछार है, जवाब कोई नहीं दे रहा।

इस मुद्दे की शुरुआत 15 अगस्त 2025 को लाल किले से हुई, जब मोदी ने ‘हाई पावर डेमोग्राफी मिशन’ की घोषणा की। उन्होंने कहा, ‘साजिश के तहत देश की डेमोग्राफी बदली जा रही है। घुसपैठिए नौजवानों का रोजगार और बहन-बेटियों की सुरक्षा को खतरा बना रहे हैं। इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।’ यह मिशन सीमावर्ती इलाकों में जनसांख्यिकी पर नजर रखेगा और अवैध प्रवासियों को वापस भेजेगा। मोदी ने कहा कि यह हमारे पूर्वजों की आजादी की सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 103 मिनट के भाषण में उन्होंने विकसित भारत 2047 का खाका भी खींचा। विपक्ष ने इसे सियासी ड्रामा बताया, लेकिन भाजपा इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल मानती है। मिशन में ड्रोन सर्विलांस और डेटाबेस अपडेट जैसे कदम शामिल होंगे।मोदी का असम दौरा भी इसी मुद्दे को और हवा देता है। 14 सितंबर को असम में कई परियोजनाएं शुरू करते हुए उन्होंने कांग्रेस को घेरा। ‘कांग्रेस घुसपैठियों और आतंकवादियों की समर्थक है। मैं शिव भक्त हूं, जहर पी सकता हूं, लेकिन देश की एकता पर आंच नहीं आने दूंगा,’ उन्होंने कहा। असम में 2021 में भाजपा ने इसी मुद्दे पर जीत हासिल की थी। मोदी ने चुनौती दी, ‘जो घुसपैठियों को बचाएंगे, देश उन्हें माफ नहीं करेगा।’ यह बयान 2026 के असम और पश्चिम बंगाल चुनावों को देखते हुए दिया गया, जहां घुसपैठ फिर से सियासी हथियार बनेगा।

झारखंड में भाजपा को इस मुद्दे पर 2024 में हार मिली। लेकिन महाराष्ट्र में योगी आदित्यनाथ ने ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा दिया, जो बांग्लादेश संकट से प्रेरित था। बिहार में सीमांचल का मुद्दा गर्म है, जहां SIR के जरिए 50 लाख से ज्यादा नाम कटने की आशंका जताई जा रही है। चुनाव आयोग इसे पारदर्शी प्रक्रिया बताता है, लेकिन विपक्ष इसे अल्पसंख्यक विरोधी कदम कहता है।भाजपा की रणनीति साफ है विकास के साथ सुरक्षा का मुद्दा जोड़कर वोटरों को लुभाना। पूर्णिया रैली में 40 हजार करोड़ की परियोजनाएं इसका हिस्सा हैं। दूसरी ओर, तेजस्वी की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ 10 जिलों की 66 सीटों को कवर कर रही है। दोनों पक्षों में आरोप-प्रत्यारोप तेज हैं। सवाल वही है घुसपैठ की जिम्मेदारी किसकी? केंद्र सरकार सीमा सुरक्षा का दावा कर रही है, लेकिन विपक्ष इसे वोट बैंक की सियासत बता रहा है।यह बहस अब राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गई है। डेमोग्राफी मिशन अगर कामयाब रहा, तो पूर्वी भारत और पूर्वोत्तर की सुरक्षा मजबूत हो सकती है। लेकिन इसका सियासीकरण खतरा है। अगर यह सिर्फ वोटों का खेल बन गया, तो असल मुद्दा पीछे छूट जाएगा। बिहार की जनता अब तय करेगी कि विकास, सुरक्षा या वोट अधिकार कौन सा मुद्दा हावी होगा। चुनाव नजदीक हैं, और सियासी पारा चढ़ता जा रहा है। राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखकर ही इस बहस को आगे बढ़ाना होगा, वरना सवालों का जवाब सवालों में ही उलझकर रह जाएगा।

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