बिहार चुनाव से पहले BJP की रणनीति रामलला मंदिर ध्वजारोहण में दलित-पिछड़ों को संदेश

अयोध्या की पावन धरती 25 नवंबर को इतिहास की सबसे बड़ी धार्मिक और राजनीतिक घड़ियों में से एक का साक्षी बनने जा रही है। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के 161 फीट ऊँचे मुख्य शिखर पर स्थापित 42 फीट लंबे ध्वजस्तंभ पर विजय और समरसता का प्रतीक ध्वज फहराया जाएगा। विवाह पंचमी के शुभ अवसर पर होने वाला यह आयोजन राम और सीता के दिव्य विवाह का स्मरण कराएगा, लेकिन इसके साथ ही देश के सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्य में भी गहरा संदेश छोड़ेगा। इस बार मंदिर ट्रस्ट ने समारोह की थीम “समरस समाज” रखी है। इसका उद्देश्य केवल उच्च‑प्रोफ़ाइल हस्तियों को मंच पर लाने तक सीमित नहीं है। ग्राम प्रधान, अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के प्रतिनिधि, स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता और जमीनी स्तर के रामभक्त शामिल होंगे। बताया जा रहा है कि 8,000 से अधिक अतिथि समारोह में उपस्थित होंगे, जिनमें लगभग 3,000 स्थानीय लोग होंगे। यह पहल न केवल सामाजिक समावेशिता को दिखाती है बल्कि भाजपा की चुनावी रणनीति का भी हिस्सा है, जिससे पिछड़े और दलित वोटों पर पकड़ मजबूत करने का संदेश जाता है।
सबसे बड़ा आकर्षण राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू होंगी, जो इस ध्वजारोहण का मुख्य अतिथि होंगी। देश की सर्वोच्च नागरिक और आदिवासी पृष्ठभूमि की महिला द्वारा ध्वज फहराना न केवल प्रतीकात्मक होगा, बल्कि यह पिछले प्राण प्रतिष्ठा समारोह की आलोचना का भी प्रतिकार है। विपक्ष ने पहले आरोप लगाया था कि राष्ट्रपति को आमंत्रित न करना समाज के वंचित वर्ग के प्रति उपेक्षा है। अब, उनके हाथों ध्वज फहराने से यह स्पष्ट संदेश जाएगा कि मंदिर हर वर्ग का है और सभी की आस्था का सम्मान करता है। 23 नवंबर से ही मंदिर परिसर और अयोध्या के आसपास रस्में शुरू होंगी। गलियों और मंदिर परिसर में भव्य सजावट, साधु-संतों का आगमन, श्रद्धालुओं की भीड़ और सुरक्षा व्यवस्था सीसीटीवी, ड्रोन, अतिरिक्त पुलिस बल, यातायात नियंत्रण और स्वास्थ्य सुविधाएँ सब कुछ ऐतिहासिक आयोजन के अनुरूप किया जा रहा है। यह केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक मंच के निर्माण का प्रतीक भी है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति पर इसका असर महत्वपूर्ण रहेगा। 2024 के लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल में भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। फैज़ाबाद समेत कई सीटों पर हार ने दिखा दिया कि केवल राम मंदिर और हिंदुत्व एजेंडा ही पर्याप्त नहीं हैं; स्थानीय असंतोष और दलित-ओबीसी वोट बैंक की अनदेखी भारी पड़ सकती है। इस बार “समरस समाज” का संदेश और सामाजिक प्रतिनिधित्व भाजपा के लिए खोया जनाधार वापस पाने का अवसर हो सकता है।
बिहार की राजनीति पर भी इसका प्रभाव स्पष्ट है। 2023 के जाति सर्वेक्षण के अनुसार ईबीसी 36%, ओबीसी 27%, एससी 19% और एसटी 1.6% हैं। कुल मिलाकर 84% आबादी इन्हीं वर्गों की है। पिछड़े और दलित वर्ग के समर्थन के बिना कोई भी गठबंधन या पार्टी सफलता की कल्पना नहीं कर सकती। 2020 विधानसभा चुनाव में एनडीए ने इन वोटों के दम पर कुल 243 में 125 सीटें जीती थीं। पिछड़े वर्ग के भीतर निषाद, केवट, तेली, कुर्मी और कुम्हार जैसी 113 जातियाँ सबसे अधिक वंचित मानी जाती हैं। इस बार अयोध्या के ध्वजारोहण में इन्हीं जातियों के जमीनी चेहरे शामिल किए जा रहे हैं। यह संदेश बिहार और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों में जाएगा कि भाजपा दलित-ओबीसी वर्ग को पहचान और सम्मान दे रही है।ट्रस्ट में हुए बदलाव भी इस दिशा में संकेत देते हैं। कृष्ण मोहन, जो अनुसूचित जाति से आते हैं, को हाल ही में ट्रस्ट में शामिल किया गया। वे पूर्व आईएफएस अधिकारी हैं और प्राण प्रतिष्ठा में यजमान रहे। उनकी नियुक्ति दिवंगत कामेश्वर चौपाल की जगह हुई। यह कदम दलित समुदाय को प्रतिनिधित्व देने जैसा प्रतीत होता है और मंदिर के सामाजिक समावेशिता वाले संदेश को और मजबूत करता है।
धार्मिक दृष्टि से देखें तो विवाह पंचमी का दिन राम और सीता के दिव्य विवाह की स्मृति का दिन है। गर्भगृह के दूसरे तल पर श्रीराम यंत्र की स्थापना पूरी हो चुकी है। मंदिर परिसर में भव्य ग्रंथागार का निर्माण भी किया जा रहा है, जिसमें रामायण की विभिन्न भाषाओं की मूल प्रतियाँ रखी जाएँगी। यह अयोध्या को वैश्विक स्तर पर रामकथा और भारतीय संस्कृति का केंद्र बनाने की दिशा में ऐतिहासिक कदम है।पिछली बार प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान उद्योगपतियों और फिल्मी हस्तियों को बुलाया गया था, जबकि जमीनी स्तर के लोग उपेक्षित रहे। राहुल गांधी ने इसे “मोदी का इवेंट” कहते हुए आलोचना की थी। इस बार अतिथि सूची में आमजन और वंचित वर्ग को प्राथमिकता दी जा रही है। लगभग 5,000 अतिथियों में स्थानीय और वंचित समूहों को प्राथमिकता दी जाएगी, जिससे यह संदेश जाएगा कि मंदिर अब हर वर्ग का है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के लिए यह आयोजन पंचायत और विधानसभा चुनावों की रणनीति का हिस्सा भी है। योगी आदित्यनाथ की छवि और हिंदुत्व एजेंडे ने 2022 में दलित और ओबीसी वोटों को एकजुट किया, लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन ने पूर्वांचल की कई सीटें जीत लीं। यादव, कुर्मी, दलित और मुस्लिम वोट बैंक सपा के पक्ष में गया। इस बार भाजपा ने 70 नए जिला अध्यक्ष नियुक्त किए हैं, जिनमें 25 ओबीसी और 6 एससी शामिल हैं। रामलला मंदिर के ध्वजारोहण के माध्यम से पिछड़े-दलित वोट बैंक पर भाजपा की पकड़ मजबूत करने का प्रयास किया जा रहा है। ध्वजारोहण समारोह से पहले और बाद में अयोध्या दीपावली जैसा जगमगाएगी। मंदिर के आसपास के रास्तों का सौंदर्यीकरण, होटल और धर्मशालाओं में सजावट, हर घर में दीपों की रौशनी यह सब इस आयोजन को अभूतपूर्व बनाएगा। हजारों साधु-संत, रामभक्त और आमजन इस ऐतिहासिक पल के गवाह बनेंगे।
25 नवंबर का अयोध्या ध्वजारोहण केवल झंडा फहराने तक सीमित नहीं है। यह आयोजन सामाजिक समावेशिता, राजनीतिक रणनीति और धार्मिक गौरव का संगम है। जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अपने करकमलों से ध्वज फहराएँगी, तो यह दृश्य केवल अयोध्या ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए संदेश होगा कि यह मंदिर सबका है।आने वाले चुनावों में इसका क्या असर पड़ेगा, यह तो वक्त बताएगा। लेकिन इतना निश्चित है कि 25 नवंबर का दृश्य भारतीय समाज और राजनीति में लंबे समय तक याद रखा जाएगा। रामलला का यह मंदिर अब केवल भव्य वास्तुशिल्प नहीं, बल्कि समाज की विविधता, समावेशिता और एकता का प्रतीक बनकर उभर चुका है।